झामुमो और भाजपा के बाद तीसरी मजबूत ताकत बनकर उभरी

आजसू ने इस बार संथाल के चुनाव मैदान में जोरदार दस्तक की है। उसके प्रत्याशी कई सीटों पर झामुमो और भाजपा के सामने चुनौती बनकर खड़े हैं। संथाल परंपरागत तौर पर झामुमो का गढ़ रहा है। भाजपा ने लगातार कोशिशों से झामुमो के समानांतर  अपना जनाधार विकसित किया।    लेकिन इस बार भाजपा और झामुमो दोनों के बीच आजसू ने तीसरी लकीर खींचने की पुरजोर कोशिश की है। पहली बार संथाल में ताल ठोंक कर चुनाव के मैदान में उतरी आजसू ने यह बता दिया है कि वह भी किसी से कम नहीं है। आजसू ने संथाल में 12 सीटों पर उम्मीदवार दिये हैं, जिनमें दो महिलाएं भी हैं। इन बारह में से पांच सीटें ऐसी हैं, जहां आजसू के प्रत्याशियों को बेहद मजबूत माना जा रहा है। ये सीटें हैं-राजमहल, पाकुड़, नाला, बोरियो और मधुपुर।

आजसू के केंद्रीय प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत कहते हैं कि यह पहली बार है, जब आजसू पूरी ताकत के साथ संथाल में चुनाव के मैदान में उतरी है। भगत कहते हैं कि आजसू ने इस बार गांव की सरकार का नारा दिया और इसका संथाल के लोगों ने दिल खोलकर स्वागत किया है। यह सच्चाई है कि झारखंड और पूरे देश में गांव आज भी उपेक्षित हैं।  आजसू ही एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो गांव और गांव के लोगों की बात करती है। झारखंड के लोग झूठ और लूट से ऊब चुके हैं। वे झूठ और लूट, दोनों से मुक्ति पाना चाहते हैं और यह विकल्प आजसू उन्हें दे रही है। भाजपा और झामुमो ने संथाल की जनता को बार-बार निराश किया है।

सकारात्मक राजनीति  कर रहे सुदेश

झारखंड की 53 सीटों पर उम्मीदवार उतारने के बाद उनके पक्ष में जोरदार अभियान में जुटे आजसू पार्टी सुप्रीमो सुदेश महतो झारखंड को सकारात्मक राजनीति का संदेश दे रहे हैं। वह मुद्दों पर बात कर रहे हैं। जामताड़ा में बुधवार को आयोजित रोड शो में सुदेश ने कहा कि यह चुनाव राष्टÑीय मुद्दों पर नहीं है। यह प्रदेश की समस्याओं पर केंद्रित है। आजसू की सरकार बनेगी, तो गांव की सरकार होगी। अब तक सेवा कराते आ रहे अधिकारियों को गांव की चौपाल में जाना पड़ेगा। जाहिर है आजसू का विजन ग्राम स्वराज का है और यह महात्मा गांधी के राजनीतिक आदर्शों से प्रे्ररित-प्रभावित है। यही विजन आजसू को अन्य दलों से अलग करता है।

इन सीटों पर आजसू की मजबूत मौजूदगी

संथाल में आजसू प्रत्याशियों की स्थिति पर नजर डालें, तो जिन पांच सीटों पर आजसू  मजबूत स्थिति में है, उनमें से एक है राजमहल सीट। यहां आजसू के मोहम्मद ताजुद्दीन भाजपा प्रत्याशी  अनंत ओझा को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। यहां अनंत के मुकाबले में झामुमो के केताबुद्दीन शेख और झाविमो के राजकुमार यादव हैं। इसी तरह बोरियो सीट पर पार्टी के प्रत्याशी ताला मरांडी का मुकाबला झामुमो के लोबिन हेंब्रम और भाजपा के सूर्यनारायण हांसदा से है। जामा सीट पर पार्टी ने स्टेफी टेरेसा मुर्मू को प्रत्याशी बनाया है। वह झामुमो की विधायक और प्रत्याशी सीता सोरेन को कड़ी टक्कर दे रही हैं। पाकुड़ सीट पर पार्टी ने अकील अख्तर को प्रत्याशी बनाया है, जो कांग्रेस के आलमगीर आलम को टक्कर दे रहे हैं। नाला सीट पर झामुमो के रवींद्रनाथ महतो के मुकाबले में पार्टी ने माधवचंद्र महतो को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने यहां सत्यानंद झा बाटुल को उम्मीदवार बनाया है। एक और महत्वूपर्ण सीट जामताड़ा की बात करें, तो यहां से आजसू ने विष्णु भैया की पत्नी चमेली देवी को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि यहां विधायक और कांग्रेस प्रत्याशी अच्छी स्थिति में हैं, पर चमेली देवी उन्हें कड़ी टक्कर दे रही हैं।

भविष्य पर है आजसू की निगाहें

झारखंड में भाजपा संग गठबंधन से अलग होने के बाद आजसू पार्टी झारखंड में भविष्य की राजनीति कर रही है। इस राजनीति मेें खुद को स्थापित करने के लिए सबसे पहले आजसू ने विचारधारा के स्तर पर खुद को मजबूत किया है और वैसे नेताओं को पार्टी में शामिल कराया है, जो कद्दावर हैं और जिन दलों में वे थे, वहां किसी वजह से असहज महसूस कर रहे थे। इनमें आजसू पार्टी के घाटशिला प्रत्याशी प्रदीप बलमुचू, छतरपुर से विधायक रहे राधाकृष्ण किशोर और पाकुड़ से विधायक रह चुके अकील अख्तर के नाम प्रमुख हैं। इसके अलावा भी अन्य नेताओं को पार्टी में शामिल कराकर आजसू ने खुद को झारखंड की राजनीति में मजबूत किया है। आजसू पार्टी का बुद्धिजीवी मंच, जिसका नेतृत्व डोमन साहू कर रहे हैं, साइलेंट रहकर आजसू को विचारधारा की ऊर्जा प्रदान कर रहा है और सुदेश महतो उस विचारधारा को अपनी जुबां से आवाज दे रहे हैं। पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत भी पार्टी की आइडियोलॉजी को धरातल पर उतारने में गंभीरता से जुटे हुए हैं। इस विधानसभा चुनाव के पूरे प्रचार अभियान में आजसू नेताओं के भाषण केवल अपने एजेंडे पर केंद्रित रहे और उन्होंने बेवजह आरोप-प्रत्यारोप में खुद को उलझने से बचाये रखा। यही कारण है कि आजसू की सभाओं में ग्रामीणों की भारी भीड़ उमड़ती रही और कहीं किसी सभा में कोई विवाद नहीं हुआ।

विरोधी दलों में मची खलबली

आजसू की सकारात्मक राजनीति की रणनीति ने भाजपा और कांग्रेस जैसे राष्टÑीय दलों के साथ-साथ झामुमो और झाविमो जैसी क्षेत्रीय पार्टियों में खलबली मचायी है। चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में तो हालत यहां तक पहुंच गयी कि दूसरे दलों के नेता भी आजसू नेताओं के भाषणों का वीडियो गौर से सुनते रहे। गांव की सरकार और अधिकारियों को पीपल-इमली पेड़ के नीचे लगी चौपाल में बैठाने की बात करनेवाली आजसू पार्टी ने केवल अपनी बात जनता के सामने रखी। चाहे एनआरसी जैसे मुद्दे हों या विस्थापन और बेरोजगारी जैसे प्रादेशिक मुद्दे, आजसू ने बेहद सुलझे ढंग से अपनी बात जनता की अदालत में पेश की। किसी पर व्यक्तिगत आरोप नहीं मढ़े।

अब 23 दिसंबर को आनेवाला चुनाव परिणाम चाहे कुछ भी हो, इतना तय हो गया कि आजसू ने वैकल्पिक राजनीतिक ताकत के रूप में खुद को स्थापित कर लिया है ।

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