जीतनेवाले के हजार साथी होते हैं और हारनेवाले का कोई नहीं होता। यह कहावत सच है और यह विधानसभा चुनाव में भाजपा पर लागू होती है। महागठबंधन की जीत का सेहरा हेमंत सोरेन के सिर पर बंधा है। जाहिर है कि यह चुनाव भाजपा के लिए एक झटके के समान है और पार्टी हार के कारणों पर मंथन करने में जुटी है। राजनीतिक दृष्टि से झारखंड विधानसभा का यह चुनाव बेहद चौंकानेवाला रहा, क्योंकि महज छह महीने पहले जहां भाजपा ने राज्य की 14 में से 12 लोकसभा सीटों पर कब्जा किया था, वहीं इस चुनाव में वह बुरी तरह पराजित हो गयी। भाजपा के 12 सांसदों में से कोई भी पार्टी की झोली में अपने संसदीय क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटें डालने में सफल नहीं हो सका। इस चुनाव में भाजपा को मिली हार और उसके सांसदों के प्रदर्शन की पड़ताल करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

भाजपा का हर कार्यकर्ता यह जानने के लिए परेशान है कि जो पार्टी इसी साल मई में हुए लोकसभा चुनावों में झारखंड की 14 में से 12 सीटें जीतने में सफल रही थी, वह विधानसभा चुनाव में महज 25 सीटों पर सिमट कैसे गयी। मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष भी अपनी-अपनी सीट से कैसे चुनाव हार गये। पार्टी के कार्यकर्ता यह भी जानना चाहते हैं कि 65 प्लस सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही भाजपा वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव का भी प्रदर्शन क्यों नहीं दोहरा पायी, जबकि पार्टी ने स्टार प्रचारकों, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे कद्दावर नेता शुमार थे, का जमकर उपयोग चुनावी सभाओं में किया। प्रधानमंत्री ने जमशेदपुर में रघुवर दास का प्रचार किया, पर रघुवर अपने ही मंत्रिमंडल में सहयोगी रहे और बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे सरयू राय के हाथों 15 हजार से अधिक मतों से पराजित हो गये।
ऐसा नहीं है कि सवालों की यह शृंखला केवल भाजपा कार्यकर्ताओं को परेशान कर रही है। भाजपा का प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व भी इन सवालों का जवाब ढूंढ़ने के लिए परेशान है और हार की समीक्षा कर रहा है। चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा के केंद्रीय महासचिव राम माधव ने कहा है कि झारखंड में जो चुनाव के नतीजे आये हैं, वे अप्रत्याशित हैं। पार्टी इसकी समीक्षा करेगी। जमशेदपुर और लोहरदगा लोकसभा सीट के अंतर्गत आनेवाली विधानसभा सीटों पर तो भाजपा ने बहुत बुरा प्रदर्शन किया और यहां से एक भी सीट पार्टी जीत नहीं पायी। जमशेदपुर लोकसभा सीट पर इसी साल हुए चुनाव में भाजपा के विद्युतवरण महतो ने साढ़े छह लाख से अधिक मत लाकर जीत हासिल की थी। उन्होंने झामुमो के चंपई सोरेन को हराया था।
चंपई सोरेन को साढ़े तीन लाख से अधिक मत मिले थे। जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत छह विधानसभा सीटें बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका, जुगसलाई, जमशेदपुर पश्चिमी और पूर्वी आती हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा को इन सभी क्षेत्रों से बढ़त मिली थी, जबकि विधानसभा चुनाव में उसका सुपड़ा साफ हो गया। भाजपा के अंदरखाने कहा जा रहा है कि अन्य सीटोें पर तो जो हुआ सो हुआ, जमशेदपुर पश्चिमी और पूर्वी सीट तो पार्टी अपने अंतर्कलह से हारी। न जमशेदपुर पश्चिमी से सरयू राय का टिकट कटता और न वह सीएम के क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ते। ऐसा होने पर दोनों ही सीटों पर भाजपा ही जीतती। पर अब तो पार्टी पूरे जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र से ही साफ हो चुकी है। इसी तरह लोहरदगा सांसद सुदर्शन भगत के क्षेत्र में भी भाजपा का प्रदर्शन बेहद खराब रहा। लोकसभा चुनाव में सुदर्शन भगत ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे सुखदेव भगत को यहां से हराया था। इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें मांडर, गुमला, लोहरदगा, सिसई और बिशुनपुर के नाम शामिल हैं। लोकसभा चुनाव में सिसई और गुमला के अलावा बाकी तीन सीटों पर भाजपा ने बढ़त हासिल की थी। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मांडर, गुमला और सिसई सीट पर विजय हासिल की थी। झामुमो ने यहां एक सीट बिशुनपुर और आजसू ने लोहरदगा सीट पर जीत हासिल की थी। हाल में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी यहां से एक भी सीट नहीं जीत सकी। दुमका लोकसभा क्षेत्र में भी पार्टी विधानसभा चुनाव में सिर्फ सारठ सीट जीतने में सफल रही, जबकि लोकसभा सीट झामुमो के कब्जे में है। गोड्डा में पार्टी को देवघर और गोड्डा सीट पर जीत मिली। इसी तरह चतरा लोकसभा क्षेत्र में भी पार्टी सिर्फ सिमरिया और पांकी सीट ही जीत सकी।

आजसू सांसद का प्रदर्शन भी बेहतर नहीं
इस साल हुए लोकसभा चुनाव में गिरिडीह लोकसभा सीट आजसू के हिस्से में आयी। यहां से चंद्रप्रकाश चौधरी जीतकर संसद सदस्य बने। पर विधानसभा चुनाव में यहां भी आजसू का प्रदर्शन बेहतर नहीं कहा जायेगा। इस लोकसभा क्षेत्र की सिर्फ एक सीट गोमिया से ही आजसू के प्रत्याशी जीत सके। उसके प्रत्याशी डॉ लंबोदर महतो की जीत के पीछे भी सांसद से अधिक प्रत्याशी की लोकप्रिय छवि रही। हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र की पांच में से दो सीटों हजारीबाग और मांडू में ही भाजपा जीत हासिल कर सकी। खूंटी लोकसभा क्षेत्र में भी दो विधानसभा सीटें खूंटी और तोरपा पार्टी के हिस्से में आयीं। रांची लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें रांची, खिजरी, ईचागढ़, सिल्ली, हटिया और कांके के नाम शामिल हैं। यहां से लोकसभा चुनाव में भाजपा ने संजय सेठ को उतारा था और उन्होंने कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय को हराया था। उन्होंने हर विधानसभा सीट से बढ़त हासिल की थी।
लेकिन विधानसभा चुनाव में सिर्फ रांची, कांके और हटिया सीट से भाजपा के उम्मीदवारों को जीत मिली। यहां सांसद संजय सेठ के काम और जमीनी स्तर पर सक्रियता का लाभ पार्टी के उम्मीदवारों को मिला।

पांच साल में भाजपा ने 12 सीटें गंवायी
भाजपा के वर्ष 2014 और 2019 में विधानसभा चुनाव में किये गये प्रदर्शन की बात करें, तो पार्टी वर्ष 2014 में जहां अकेले अपने दम पर 37 सीटें जीतने में सफल रही थी, वहीं 2019 के चुनाव में यह 25 सीटों पर सिमट गयी। पांच साल के अंतराल में पार्टी ने 12 विधानसभा सीटें गंवा दी और यह स्थिति भाजपा के लिए अच्छी नहीं कही जायेगी। 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो और कांग्रेस की आंधी चली और यहां राजद भी खुद को एक सीट पर जीत दिलाकर अपने को पुनर्जीवित करने में सफल रहा। विधानसभा चुनाव में भाजपा को जो अप्रत्याशित परिणाम मिले, उस बाबत पार्टी प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि पार्टी से कहीं न कहीं तो चूक हुई है। चुनाव में कई नकारात्मक बातें विपक्ष की ओर से फैलायी गयीं और उनका प्रतिकार पार्टी बेहतर ढंग से नहीं कर सकी। आजसू के साथ गठबंधन न होना भी एक कारण रहा। नतीजों के बाद भाजपा हार के कारणों की समीक्षा कर रही है। पार्टी अब ग्राम स्तर तक अपने संगठन को मजबूत करेगी तथा विधानसभा में सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभायेगी।
वहीं झामुमो प्रवक्ता डॉ तनुज खत्री का कहना है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा की पराजय की कई वजहें रहीं और उनमें से एक वजह यह थी कि हेमंत सोरेन के चेहरे पर हुए इस चुनाव में भाजपा उनका मुकाबला नहीं कर पायी। हेमंत को हराने के लिए प्रधानमंत्री दुमका और बरहेट तक गये, पर चुनाव के परिणाम झामुमो के पक्ष में ही आये।
महागठबंधन के घटक दल, जिसमें झामुमो, कांग्रेस और राजद एक रणनीति के तहत चुनाव लड़े और वोटों का बिखराव नहीं होने दिया। समाज के हर वर्ग को यह महसूस हुआ कि विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन ही उनके पास सर्वश्रेष्ठ विकल्प हैं और इसका नतीजा महागठबंधन के बेहतर प्रदर्शन के रूप में सामने आया। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया।

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