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आक्रामकता दिखाते-दिखाते कहीं किसी लपेटे में आ गये, तो विधायकी भी जायेगी और जनता की उम्मीदों पर पानी भी फिरेगा
अच्छे-खासे राजनीतिक करियर को उलझाने का काम कर रहे जयराम महतो
जनता की आवाज हैं, उसे जनता के लिए ही बचा कर रखें, सही जगह आक्रामकता दिखायें
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड विधानसभा के पहली बार सदस्य बने जयराम महतो एक बार फिर विवादों में घिर गये हैं। तीन दिन पहले उन्होंने सीसीएल के एक आवास को लेकर जो कुछ किया, उससे यह बात साफ हो गयी है कि पावर ने इस आंदोलनकारी नौजवान को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। वास्तव में अपनी जिस आक्रामकता पर जयराम महतो इतराते हैं, वही उनके जी का जंजाल बनती जा रही है। लोग कहने लगे हैं कि यह आक्रामकता नहीं, बेवकूफी है। राजनीति में आक्रामकता काम के प्रति होनी चाहिए, न कि व्यवहार में दिखनी चाहिए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सचिन तेंदुलकर का है। कई बार खेल के मैदान पर गेंदबाज उन पर भद्दी टिप्पणी, जिसे स्लेजिंग कहते हैं, किया करते थे। उन्हें चिढ़ाने की कोशिश किया करते थे। यह इसलिए, ताकि सचिन अपना आपा खो दें और गलत निर्णय लेकर आउट हो जायें। लेकिन सचिन धैर्य नहीं खोते थे। गुस्सा तो उन्हें भी आता था, लेकिन वह इस गुस्से का इजहार अपने बल्ले से करते थे, न कि बातचीत और व्यवहार से। धोनी का भी उदाहरण ले लिया जाये, तो उन्हें तो कैप्टेन कूल ही कहा जाता था। खेल के मैदान में कई बार ऐसे मौके आये, जहां चाहते तो धोनी भी अपना आपा खो सकते थे। लेकिन वह उस दौरान शांत रहते, दुनिया को दिखाते कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। लेकिन क्या वाकई उन्हें फर्क नहीं पड़ता था। पड़ता जरूर था, लेकिन वह अपने रणनीतिक कौशल से विपक्षी टीम को धूल चटा देते थे। वह अपने प्रदर्शन के जरिये आक्रामकता दिखाते, न कि चिल्ला कर, गाली देकर और व्यवहार या आचरण से। जयराम महतो को अगर राजनीति में लंबी पारी खेलनी है, तो उन्हें कुछ ऐसा ही करना होगा। व्यवहार में संयम बरतना होगा, धैर्य रखना होगा, तभी वह सही दिशा में आगे बढ़ पायेंगे। निर्णय लेने की क्षमता बढ़ेगी। कहावत है न, जो गरजते हैं, वह बरसते नहीं। लगता है कि उसी दिशा में जयराम जाने की तैयारी कर रहे हैं। जनता ने बहुत उम्मीदों के साथ उन्हें विधायक बनाया है। लेकिन वह जनता के हित के बारे में कम और खुद के हित के बारे में ज्यादा सोचेंगे, तो फिर हो जायेगा बेड़ा गर्क। अगर जयराम महतो को जनता से सचमुच प्यार है, उसके विकास के बेहतरी के बारे में कुछ काम करना है, तो यह धैर्य से होगा, विजन से होगा। अगर आक्रामकता दिखाते-दिखाते कहीं किसी लपेटे में आ गये, तो विधायकी भी जायेगी और जनता की उम्मीदों पर पानी भी फिरेगा। जयराम महतो के इस नये विवाद का क्या हो सकता है उनके करियर पर असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
दुनिया के चर्चित समाजशास्त्री और राजनीतिक सिद्धांतों के टीकाकार मैक्समुलर ने एक बार कहा था कि किसी भी व्यक्ति के लिए शिखर पर पहुंचना आसान है, लेकिन शिखर पर टिके रहना बहुत कठिन और संयम का काम है। उन्होंने कहा था कि यह बात जीवन के हर क्षेत्र में समान रूप से लागू होती है। चाहे वह राजनीति हो या खेल, विज्ञान हो या कला-संस्कृति या फिर सामाजिक जीवन। मैक्समुलर के इस कथन को कई बार कसौटियों पर कसा गया, लेकिन हर बार यह बात सच साबित हुई है। अब झारखंड की छठी विधानसभा के सदस्य जयराम महतो को ही ले लें। झारखंड की राजनीति में किसी धूम्रकेतु की तरह उभरे जयराम महतो पहली बार विधायक बने हैं और चुनाव जीतने के बाद से वह जिस आक्रामक ढंग से व्यवहार कर रहे हैं, उससे मैक्समुलर का कथन एक बार फिर पूरी तरह सही साबित होता है।
क्या है पूरा मामला
25 दिसंबर की देर रात बोकारो के बेरमो में जयराम महतो खूब गरजे। सर्द रात में अपनी एसयूवी के बोनट पर दरबार लगा दिया। बीच-बीच में कंबल ओढ़ कर झपकी भी लेते रहे, अधिकारियों को खरी-खोटी सुनाते रहे। उस रात चंद्रपुरा थाना क्षेत्र के मकोली ओपी स्थित सेंट्रल कॉलोनी में रात भर ड्रामा चला। दरअसल, जयराम महतो ने ढोरी एरिया के परियोजना पदाधिकारी के आवास संख्या- डी/02 को अपने नाम से आवंटित करने के लिए जीएम को आवेदन दिया था। लेकिन यह क्वार्टर प्रशिक्षु पदाधिकारियों को आवंटित कर दिया गया। इससे नाराज जयराम के समर्थक प्रशिक्षु खनन पदाधिकारियों को क्वार्टर से निकाल रहे थे। उन्हें धमका रहे थे। मामला सुलझाने के लिए पुलिस पहुंची, तो जवाब में विधायक जयराम भी आ गये। तू-तड़ाक करने लगे। समझाने गये अधिकारियों से भी उन्होंने नोक-झोंक की। अब प्रशासन ने झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) के विधायक जयराम महतो और उनके 6 समर्थकों पर सीसीएल क्वार्टर पर कब्जा करने और चोरी का मुकदमा दर्ज कर दिया है और जयराम महतो नयी मुसीबत में घिर गये हैं।
राजनीति में टेढ़ी उंगली से नहीं सीधी उंगली से काम चलाना पड़ता है
इस नये विवाद के बाद जयराम महतो ने अपने समर्थकों से कहा कि अगर उन्हें अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेना है, तो इसके लिए उन्हें अपने बच्चों को तैयार करना होगा। उन्हें बताना होगा कि उनके साथ किसने अन्याय किया है। जब उनके बच्चे तैयार हो जायेंगे, तभी वे बड़े अधिकारियों से लड़ पायेंगे। तभी झारखंड को सुधार पायेंगे। इस मुद्दे पर सफाई देते हुए जयराम ने कहा कि यह स्थानीय और ग्रामीण लोगों के स्वाभिमान की लड़ाई है। साढ़े पांच हजार ऐसे क्वार्टर हैं, जिन पर कब्जा है। इसी को लेकर ग्रामीण लगातार आवाज उठा रहे हैं। अगर सही रास्ते से काम नहीं निकल रहा है, तो उंगली टेढ़ी करें, खुद प्रबंधन और प्रशासन आयेगा। उन्होंने कहा कि मुझे क्वार्टर की किसी वस्तु की जरूरत नहीं है। पुलिस प्रशासन स्थानीय लोगों के साथ गलत व्यवहार कर रहा था, इसलिए मैं रात को 2 बजे आया। लेकिन जयराम महतो को यह भी समझना पड़ेगा कि उंगली टेढ़ी करने का मतलब यह नहीं कि वह अपने पद की मर्यादा भूल जायें, शालीन आचरण को तिलांजलि दे दें। ऐसा नहीं है कि उस रात पुलिस उन्हें जवाब नहीं दे सकती थी। बखूबी दे सकती थी। लेकिन पुलिस ने कानूनी रास्ता अख्तियार किया। उसने मुकदमा दर्ज कर दिया। जयराम महतो को समझना होगा कि राजनीति में टेढ़ी उंगली नहीं, सीधी उंगली से ही काम करना पड़ता है। कहने का मतलब यह है कि उंगली दिखे नहीं तो ज्यादा अच्छा।
पहले भी हो चुका है विवाद
ऐसा नहीं है कि जयराम महतो ने पहली बार इस तरह की भाषा बोली हो या ऐसा व्यवहार किया हो। डुमरी से चुनाव जीतने के फौरन बाद उन्होंने फोन पर एक नाजिर से जिस तरह बात की, उसकी चौतरफा आलोचना हुई। जयराम महतो ने उस नाजिर के साथ बातचीत में जिस सड़क छाप भाषा का इस्तेमाल किया, वह कहीं से भी किसी जन प्रतिनिधि के लिए उचित नहीं था। इस बारे में सवाल पूछे जाने पर उनका जवाब था, आपको मेरी धमकी दिखी, उन गरीबों का शोषण नहीं दिखा। एक सौ में एक मिस्टेक होगा। फिर विधानसभा सत्र के दौरान उन्होंने विधानसभा परिसर में एक मीडियाकर्मी के साथ अभद्रता के साथ बात की थी। अब एक सरकारी आवास के लिए उनका यह व्यवहार सवालों के घेरे में आ गया है।
पावर ने बदल दिया है जयराम महतो का मिजाज
जाहिर है कि जब एक जन प्रतिनिधि इस तरह का व्यवहार करेगा, तो उस पर सवाल उठेंगे। लेकिन जयराम महतो का दूसरा पक्ष भी है। वह एक आम शहरी और ग्रामीण की तरह खुद को पेश करते हैं। पिछले दिनों वह बोकारो में उस गन्ना जूस वाले के पास रुके थे, जहां वे अक्सर जूस पीने जाते हैं। उन्होंने जूस वाले से टिफिन मांग कर भोजन खाया था। विधायक पद की शपथ लेने के लिए नंगे पांव विधानसभा पहुंचे थे। लेकिन उनकी ये तमाम सकारात्मक बातें इन विवादों के पीछे छिप गयी हैं। लोग कहने लगे हैं कि पावर ने जयराम महतो को बदल दिया है। वह पावर के नशे में डूब गये हैं और उन्हें सही-गलत की पहचान नहीं रह गयी है।
बन रही है नकारात्मक छवि, बचना होगा जयराम को
जयराम महतो अभी राजनीति में नये हैं। यह सही है कि वह जिस आंदोलन के रास्ते राजनीति की सीढ़ियां चढ़े हैं, उसमें जबरदस्त आक्रामकता थी। लेकिन अब वह विधायक हैं। जनता के नुमाइंदे हैं। वह झारखंड के हर नागरिक के प्रति उत्तरदायी हैं। ऐसा नहीं है कि वह केवल अपने समर्थकों के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे में इस तरह का व्यवहार उनकी नकारात्मक छवि बना रहा है। इसका सीधा असर जयराम महतो के राजनीतिक करियर पर पड़ रहा है। लोग कह रहे हैं कि यदि वह इसी तरह अधिकारियों से उलझ कर विवादों में फंसते रहे, तो फिर जनहित के वे काम कैसे कर सकेंगे, जिनके लिए जनता ने उन्हें चुना है। जयराम महतो को यह नहीं भूलना चाहिए कि सिस्टम को सुधारने के लिए एक मानक प्रक्रिया होती है। हर किसी को उसके अनुसार ही आचरण करना होता है। यदि एक विधायक ही गलत व्यवहार करने लगेगा, तो फिर जनता भी वैसा ही करेगी और इसका नतीजा यही होगा कि व्यवस्था ध्वस्त हो जायेगी। जयराम महतो युवाओं के चहेते हैं और विधायक भी बने हैं। ऐसे में उन्हें अपने आचरण का ख्याल जरूर रखना चाहिए। अभिव्यक्ति की आजादी सभी को है, मगर कोई भी व्यक्ति हो या विधायक, उसे कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है।