विशेष
-संघ से खटपट के बाद पार्टी संगठन के लिए बड़ी हो गयी है चुनौती
-बड़ा सवाल: मोदी, शाह और योगी के बाद भाजपा का बड़ा चेहरा कौन
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
नरेंद्र मोदी सरकार के लगातार तीसरी बार शपथ ग्रहण करने और जेपी नड्डा के केंद्रीय मंत्री बनने के बाद अब सियासी हलकों में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर अटकलें तेज हो गयी हैं। नड्डा का कार्यकाल इसी महीने के अंत में खत्म हो रहा है और ऐसी चर्चा है कि उससे पहले भाजपा को नया अध्यक्ष मिल जायेगा। लेकिन भाजपा के लिए यह काम बहुत मुश्किल होता दिख रहा है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन के बाद अब इस बात की जरूरत महसूस की जाने लगी है कि भाजपा की कमान किसी ऐसे नेता को सौंपी जाये, जिसका अपना भी कुछ प्रभाव हो। भाजपा के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि अभी पार्टी में ऐसा कोई चेहरा तत्काल सामने नहीं है, जिसकी पहचान पूरे देश में हो। पार्टी में अभी हर स्तर पर एक ही सवाल है कि मोदी, शाह और योगी के बाद चौथा कौन। कुछ लोग इसका जवाब जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान और अनुराग ठाकुर के रूप में देते हैं, लेकिन ऐसा कहनेवालों का भी यही मानना है कि इनमें से पहले तीन तो केंद्रीय मंत्री हैं और अनुराग ठाकुर अपेक्षाकृत युवा हैं। इसके अलावा भाजपा के सामने दूसरी बड़ी समस्या संघ के साथ उसकी खटपट है। ऐसे में हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयानों के बाद माना जा रहा है कि अध्यक्ष पद के चुनाव में अब संघ की ही चलेगी। ऐसे में स्पष्ट है कि भाजपा के सामने नया अध्यक्ष चुनने की बड़ी चुनौती है। क्या है यह चुनौती और कौन से नाम चर्चा में हैं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार देश में एनडीए की सरकार बन गयी है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ लेकर मोदी सरकार का हिस्सा बन गये हैं। मोदी सरकार की नयी मंत्रिपरिषद के गठन के साथ ही भाजपा संगठन में बदलाव की नींव भी रख दी गयी है। जेपी नड्डा के मंत्रिमंडल में शामिल होने के साथ ही अब भाजपा को नये अध्यक्ष की तलाश करनी होगी। वैसे भी नड्डा का कार्यकाल इसी महीने के अंत में खत्म हो रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि भाजपा की कमान अब किसे मिलेगी और भाजपा इस चुनौती से कैसे निबटेगी।
2014 के बाद से नड्डा तीसरे अध्यक्ष
2014 में राजनाथ सिंह भाजपा अध्यक्ष थे और लोकसभा चुनाव में जीत के बाद वह केंद्र में मंत्री बन गये थे। इसके बाद भाजपा संगठन में बदलाव हुआ था और अमित शाह को पार्टी की कमान सौंपी गयी थी। अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष रहते हुए 2019 में लोकसभा चुनाव हुए थे। जीत के बाद अमित शाह मोदी कैबिनेट का हिस्सा बन गये थे, जिसके चलते उन्होंने भाजपा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। अमित शाह के बाद भाजपा की कमान जेपी नड्डा ने संभाली। नड्डा के भाजपा अध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल जनवरी 2023 में पूरा हो गया था, लेकिन लोकसभा चुनावों को देखते हुए जून 2024 तक बढ़ा दिया गया था।
कैसा रहा नड्डा का कार्यकाल
जेपी नड्डा के अध्यक्ष रहते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव हुए हैं। चुनाव नतीजे के बाद राजनाथ सिंह और अमित शाह की तरह जेपी नड्डा भी मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री बन गये हैं। जहां तक उनके कार्यकाल में पार्टी के चुनावी प्रदर्शन का सवाल है, तो यह मिला-जुला रहा। नड्डा अपने गृह प्रदेश हिमाचल में पार्टी को सत्ता में वापस नहीं ला सके, लेकिन मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पार्टी ने शानदार वापसी की। इतना ही नहीं, नड्डा के कार्यकाल में ही भाजपा को पहली बार ओड़िशा में ऐतिहासिक कामयाबी मिली और आंध्रप्रदेश में भी वह सत्ता में आयी। लोकसभा चुनाव में हालांकि भाजपा को 2019 के मुकाबले थोड़ी निराशा हाथ लगी, लेकिन वह अपने सहयोगियों की मदद से लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब हो गयी।
चूंकि नड्डा अब केंद्रीय मंत्री बन गये हैं, इसलिए अब पार्टी संगठन में बड़ा बदलाव दिखेगा। नड्डा के संभावित उत्तराधिकारी का चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं है। भाजपा अब समझ गयी है कि उसे कुछ दमदार चेहरों को पार्टी में सामने लाने की जरूरत है, क्योंकि आनेवाले दिनों में झारखंड, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, यूपी और कई अन्य राज्यों में चुनाव होनेवाले हैं। भाजपा को अब एक ऐसे चेहरे की जरूरत है, जिसका अखिल भारतीय प्रभाव हो और जिसकी पूरे देश में पहचान हो। ऐसे में नड्डा के उत्तराधिकारियों में पहले सीआर पाटिल, शिवराज सिंह चौहान और भूपेंद्र यादव का नाम चर्चा में था, लेकिन इन सभी को मोदी कैबिनेट में शामिल किये जाने के बाद अटकलों ने और जोर पकड़ लिया है।
अध्यक्ष पद से पहले राज्यों में होंगे संगठन चुनाव
भाजपा अपने नये अध्यक्ष के चुनाव से पहले नये सदस्यता अभियान की शुरूआत करेगी और उसके बाद राज्यों में संगठन के चुनाव करायेगी। तय नियमों के मुताबिक अध्यक्ष चुनने से पहले कम से कम 50 फीसदी राज्यों में पार्टी के संगठन का चुनाव होना जरूरी है। ऐसी स्थिति में नड्डा का कार्यकाल या तो बढ़ेगा या फिर किसी नेता को फिलहाल कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। भाजपा ने हाल ही में अपने संविधान में संशोधन कर पार्टी के शीर्ष निकाय संसदीय बोर्ड को आपातकालीन स्थिति में अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाने सहित अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार दिया है।
भाजपा में अध्यक्ष चुनने की यह होती है प्रक्रिया
भाजपा के संविधान के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव पार्टी के एक निर्वाचक मंडल की ओर से किया जाता है। निर्वाचक मंडल में राष्ट्रीय और राज्य परिषदों के सदस्य होते हैं। किसी राज्य के निर्वाचक मंडल के कोई भी 20 सदस्य किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रस्ताव कर सकते हैं, जो कम से कम चार कार्यकाल तक सक्रिय सदस्य रह चुका हो। साथ ही इनकी सदस्यता भी कम से कम 15 साल हो चुकी हो। कोई भी संयुक्त प्रस्ताव कम से कम पांच राज्यों से आना चाहिए, जहां राष्ट्रीय परिषद के लिए चुनाव पूरे हो चुके हों।
अध्यक्ष के चुनाव में एक पैटर्न रहा है
भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्षों की नियुक्ति में पार्टी का एक पैटर्न रहा है। राजनाथ सिंह के अध्यक्ष रहते हुए उत्तरप्रदेश के प्रभारी अमित शाह थे और चुनाव के बाद भाजपा के अध्यक्ष बने थे। अमित शाह के अध्यक्ष रहते हुए जेपी नड्डा यूपी के प्रभारी थे और 2019 के चुनाव के बाद पार्टी की कमान संभाली है। ऐसे में पहले पार्टी अध्यक्ष पद के लिए जो नाम चर्चा में थे, उन्हें अब केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जा चुका है। इसलिए नये नामों की चर्चा हो रही है।
इन नामों की चल रही थी चर्चा
पहले मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और पार्टी के दिग्गज नेता भूपेंद्र यादव जैसे नेताओं के नाम की चर्चा चल रही थी। लेकिन इन सभी नेताओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल गयी है। इस बार के चुनावी नतीजे जिस तरह से आये हैं और बहुमत से कम सीटें आयी हैं, उसके चलते ही भाजपा के लिए ऐसे अध्यक्ष की जरूरत है, जो पार्टी के खिसके सियासी आधार को दोबारा से वापस ला सके। 2024 के चुनाव में भाजपा को सबसे बड़ा झटका दलित वोटों के खिसकने से लगा। यूपी जैसे राज्यों में जहां परिणाम उम्मीद के अनुरूप नहीं रहे और महाराष्ट्र तथा राजस्थान में भी झटका लगा है। दलित ही नहीं, मोदी के नाम पर आया ओबीसी वोट भी अब छिटका है।
सवर्ण नेताओं के हाथ में रही है भाजपा की कमान
पिछले 15 साल से भाजपा की कमान सवर्ण नेताओं के हाथों में रही है। राजनाथ सिंह ठाकुर समुदाय से आते हैं तो जेपी नड्डा ब्राह्मण समाज से हैं। पीएम मोदी एक बार फिर से प्रधानमंत्री बने हैं, जिसके लिहाज से किसी सवर्ण समुदाय के नेता के ही अध्यक्ष बनने की संभावना मानी जा रही है। सवर्ण समुदाय भाजपा का कोर वोट बैंक है, जिसे नजरअंदाज करना भी मुश्किल लग रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा अध्यक्ष के लिए ऐसे चेहरे की तलाश है, जो मोदी-शाह के करीबी होने के साथ-साथ पार्टी संगठन को भी बखूबी समझता हो।
क्या है असली चुनौती
इसलिए भाजपा के नये अध्यक्ष के लिए पार्टी के अंदर और सरकार के साथ संतुलन बना कर चलने की चुनौती होगी। नये अध्यक्ष के लिए झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के चुनाव में बेहतर करके दिखाना होगा। पार्टी ऐसे नेता को कमान सौंपना चाहती है, जो भाजपा के सियासी मंझधार से निकाल कर दोबारा से फिर 2014 जैसे सियासी मुकाम दिला सके।
ये नाम हैं चर्चा में
अब भाजपा अध्यक्ष पद की दौड़ में पार्टी महासचिव विनोद तावड़े, बीएल संतोष, अनुराग ठाकुर, के लक्ष्मण, ओम माथुर, सुनील बंसल के अलावा स्मृति इरानी के नाम भी आगे चल रहे हैं। इनके अलावा वसुंधरा राजे सिंधिया, अन्नामलाई, तमिलसाई सुंदरराजन और राजीव चंद्रशेखर का नाम भी चर्चा में है। लेकिन इन सबके साथ मुश्किल यह है कि किसी का भी प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर नहीं है। कुछ नेताओं के पास संगठन चलाने का व्यापक अनुभव जरूर है, लेकिन हाल के दिनों में पार्टी के प्रदेश प्रभारियों पर जिस तरह के आरोप लगे हैं, उससे भी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व परेशान है।
संघ की इच्छा से ही चुना जायेगा नया अध्यक्ष
जानकार कहते हैं कि भाजपा भले ही राजनीतिक पार्टी हो, मगर संगठन में हमेशा संघ की ही चलती है, क्योंकि इसे चलाने वाले लोग ज्यादातर संघ से ही जुड़े होते हैं। मोहन भागवत ने हाल ही में बयान दिया था कि एक सच्चा सेवक मर्यादा का पालन करता है। जिसमें ‘मैंने किया’ का भाव नहीं होता, अहंकार नहीं होता। केवल वही व्यक्ति सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी होता है। पार्टी नेतृत्व को लेकर भागवत का यह बयान बेहद मायने रखता है। ऐसे में पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में संघ की भूमिका काफी अहम मानी जा रही है। भाजपा को आरएसएस का राजनीतिक संगठन माना जाता है, ऐसे में संघ अब नहीं चाहेगा कि आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन खराब हो।