Browsing: स्पेशल रिपोर्ट

जी हां हम बात कर रहे हैं भारतीय राजनीति के इतिहास के काला अध्याय और स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे विवादस्पद काल की। या आप यूं कहें कि भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला दिन। यह दौर था, जब भारत आजादी के बाद अपने पैरों पर खड़ा होने की जद्दोजहद कर रहा था और अपने सुनहरे भविष्य की उड़ान भर ही रहा था कि अचानक उसके पंख को जकड़ लिया गया। देखते ही देखते भारत के स्वर्णमि इतिहास में आपातकाल का काला अध्याय जुड़ गया। इस काले अध्याय की रचयिता थीं भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी -द आयरन लेडी। आजाद सिपाही टीम ने इमरजेंसी लगाने के राजनीतिक कारणों, इंदिरा गांधी की रणनीति और इसके प्रभावों का आकलन करने की कोशिश की है।

बिहार और झारखंड में इन दिनों बस एक ही चर्चा है टिमटिमाते लालटेन के लौ की। कभी लालटेन की लौ से बिहार और झारखंड रोशन होता था। इसके सुप्रीमो लालू यादव नेताओं पर भारी पड़ते थे। लेकिन अब यह इतिहास की बात हो गयी है। अब झारखंड में टूट पर टूट और बिहार में नेता-कार्यकर्ता के बाद वोटरों का किनारा करने से पार्टी छिन्न-भिन्न होती नजर आ रही है। और चारा घोटाले में सजा की शैय्या पर लेटे-लेटे राजद के भीष्म पितामह यह सब अपनी आंखों से देख रहे हैं। अब तो यह सवाल उठने लगा है कि क्या बिहार में भी लालटेन की लौ बुझनेवाली है। हालात बता रहे हैं कि बिहार से भी राजद के जाने की बेला आ गयी है। बस इंतजार है तो सिर्फ 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव का। फिलहाल झारखंड में अब लालू का सितारा गर्दिश में चला गया है। टूट पर टूट ने झारखंड में राजद को झकझोर दिया है। अन्नपूर्णा देवी, गिरिनाथ सिंह जैसे दिग्गजों ने लोकसभा चुनाव के पहले ही राजद का दामन छोड़ दिया। अब रही-सही कसर गौतम सागर राणा और उनके चहेतों ने पूरी कर दी है। मौजूदा हालात पर नजर डाल रहे हैं राजीव।

खबर विशेष में आज हम बात कर रहे हैं कैसे विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही झारखंड में नक्सली एक बार फिर सक्रिय हो गये हैं। लोकसभा चुनाव के बाद झारखंड में नक्सली फिर से अपनी मांद से बाहर निकल आये हैं। 20 दिनों के भीतर एक के बाद एक नक्सलियों ने पांच घटनाओं को अंजाम देकर पुलिस को खुली चुनौती दे दी है। वे जनता में एक बार फिर खौफ पैदा करने के लिए सक्रिय हुए हैं। विधानसभा चुनाव से पहले नक्सलियों की मंशा यह है कि वे राजनीतिक दलों और पूंजीपतियों में अपने भय को स्थापित करें, ताकि चुनाव के समय उनकी पूछ हो और वे मुद्रा मोचन कर सकें। दरअसल केंद्र और राज्य सरकार के मजबूत इरादे के समक्ष नक्सलियों को अपनी जमीन खिसकती दिख रही थी। उनका आना-जाना मुश्किल हो गया था। संगठन के अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो गया था। वे मौके की तलाश में थे। इसी से तिलमिला कर नक्सलियों ने शुक्रवार की शाम सरायकेला में पांच पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी। हथियार लूट लिये। क्या है चुनाव के साथ नक्सली कनेक्शन इस पर प्रकाश डाल रहे हैं ज्ञान रंजन।

रांची। एनडीए में शामिल जदयू के प्रमुख और बिहार के सीएम नीतीश कुमार के सुर इन दिनों बदले-बदले से हैं। इनके तेवर अब बता रहे हैं कि एक बार फिर नीतीश कुमार पलटी मारनेवाले हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के बाद से ही नीतीश कुमार की नाराजगी झलक रही है। शुरुआत में लगा कि मंत्रिमंडल में भागीदारी को लेकर कोई कसक रह गयी हो, लेकिन उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि मंत्रिमंडल में जदयू की भागीदारी नहीं होगी। इससे राजनीतिक विश्लेषकों के कान खड़े हो गये। नीतीश के बयान के मायने भी निकाले जाने लगे हैं। इसी बीच गिरिराज सिंह के एक ट्वीट ने विवाद खड़ा किया, जिस पर जदयू प्रवक्ताओं ने पूरी भाजपा को ही निशाने पर ले लिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिना नीतीश की शह पर जदयू के प्रवक्ता भाजपा पर हमला नहीं कर सकते। फिर भाजपा और जदयू के बीच खटास की छोटी-छोटी बातें मीडिया में सुर्खियां बनने लगीं और इस पर नीतीश का चुप रहना बड़ा सवाल खड़ा करता है। इधर, भाजपा भी इस हालात पर अलर्ट मोड में नजर आ रही है। अमित शाह ने गिरिराज सिंह को बयानबाजी से मना जरूर किया है, लेकिन जदयू का रुख अड़ियल नजर आ रहा है। जदयू ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि जदयू का समझौता सिर्फ बिहार में हुआ है। देश के अन्य राज्यों में वह अकेले चुनाव लड़ेगी। फिर तीन तलाक पर अलग स्टैंड और कश्मीर से धारा 370 हटाने का विरोध, इस बात की ओर साफ संकेत दे रहा है कि सीएम नीतीश कुमार वोट बैंक को भी खुश रखना चाहते हैं और सीएम की कुर्सी भी बची रहे। साथ ही साथ उनकी नजर अभी से 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव पर भी है। नीतीश की पार्टी जदयू यह मान कर चल रही है कि 2024 के चुनाव में विपक्ष की तरफ से कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जो राष्टÑीय स्तर पर भाजपा को चुनौती दे सके। मायावती, ममता, अखिलेश यादव और अब तो राहुल गांधी भी नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में नहीं हैं। जदयू यह मान कर चल रही है कि बंगाल से अब ममता की विदाई तय है, ऐसे में नीतीश कुमार ही एकमात्र नेता हैं, जो विपक्ष की पसंद बन सकते हैं। जदयू की इस पैंतरेबाजी पर प्रकाश डाल रहे हैं आजाद सिपाही के सिटी एडिटर राजीव। 

आज की खबर विशेष में हम चर्चा कर रहे हैं झारखंड की सबसे बड़ी खबर की। झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी पर कानूनी शिकंजा कस गया है। भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में बुधवार सुबह रांची के नामकुम बागीचा स्थित फादर स्टेन स्वामी के घर पर महाराष्ट्र एटीएस और पुलिस ने दबिश दी। पुलिस ने घर को खंगाला। कंप्यूटर खोले, हार्ड डिस्क लिया। कुछ कागजात भी जब्त किये। बता दें कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में उनके घर दूसरी बार छापा पड़ा है। इससे पहले 28 अगस्त 2018 को भी महाराष्ट्र पुलिस ने उनके घर पर छापेमारी की थी। फादर स्वामी पर कोरेगांव में हिंसक और भड़काऊ भाषण देने का आरोप है, जिसके बाद हिंसा हो गयी थी। हिंसा ने बाद में दंगे का रूप ले लिया था। स्टेन स्वामी के ऊपर देशद्रोह का भी मामला चल रहा है। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि मामले में एनआइए ने भी स्टेन स्वामी को टारगेट पर रखा है, क्योंकि यह मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश से जुड़ा है। पूरे मामले में फादर स्वामी के खिलाफ कई अलग-अलग एफआइआर दर्ज हैं। इधर छापेमारी के बाद स्टेन स्वामी मीडिया के सामने आये और अपना पक्ष रखा। पेश है हमारे राज्य समन्वय संपादक दीपेश कुमार की विस्तृत रिपोर्ट।