रांची। एनडीए में शामिल जदयू के प्रमुख और बिहार के सीएम नीतीश कुमार के सुर इन दिनों बदले-बदले से हैं। इनके तेवर अब बता रहे हैं कि एक बार फिर नीतीश कुमार पलटी मारनेवाले हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण के बाद से ही नीतीश कुमार की नाराजगी झलक रही है। शुरुआत में लगा कि मंत्रिमंडल में भागीदारी को लेकर कोई कसक रह गयी हो, लेकिन उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि मंत्रिमंडल में जदयू की भागीदारी नहीं होगी। इससे राजनीतिक विश्लेषकों के कान खड़े हो गये। नीतीश के बयान के मायने भी निकाले जाने लगे हैं। इसी बीच गिरिराज सिंह के एक ट्वीट ने विवाद खड़ा किया, जिस पर जदयू प्रवक्ताओं ने पूरी भाजपा को ही निशाने पर ले लिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिना नीतीश की शह पर जदयू के प्रवक्ता भाजपा पर हमला नहीं कर सकते। फिर भाजपा और जदयू के बीच खटास की छोटी-छोटी बातें मीडिया में सुर्खियां बनने लगीं और इस पर नीतीश का चुप रहना बड़ा सवाल खड़ा करता है। इधर, भाजपा भी इस हालात पर अलर्ट मोड में नजर आ रही है। अमित शाह ने गिरिराज सिंह को बयानबाजी से मना जरूर किया है, लेकिन जदयू का रुख अड़ियल नजर आ रहा है। जदयू ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि जदयू का समझौता सिर्फ बिहार में हुआ है। देश के अन्य राज्यों में वह अकेले चुनाव लड़ेगी। फिर तीन तलाक पर अलग स्टैंड और कश्मीर से धारा 370 हटाने का विरोध, इस बात की ओर साफ संकेत दे रहा है कि सीएम नीतीश कुमार वोट बैंक को भी खुश रखना चाहते हैं और सीएम की कुर्सी भी बची रहे। साथ ही साथ उनकी नजर अभी से 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव पर भी है। नीतीश की पार्टी जदयू यह मान कर चल रही है कि 2024 के चुनाव में विपक्ष की तरफ से कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जो राष्टÑीय स्तर पर भाजपा को चुनौती दे सके। मायावती, ममता, अखिलेश यादव और अब तो राहुल गांधी भी नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में नहीं हैं। जदयू यह मान कर चल रही है कि बंगाल से अब ममता की विदाई तय है, ऐसे में नीतीश कुमार ही एकमात्र नेता हैं, जो विपक्ष की पसंद बन सकते हैं। जदयू की इस पैंतरेबाजी पर प्रकाश डाल रहे हैं आजाद सिपाही के सिटी एडिटर राजीव।
Browsing: स्पेशल रिपोर्ट
आज की खबर विशेष में हम चर्चा कर रहे हैं झारखंड की सबसे बड़ी खबर की। झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी पर कानूनी शिकंजा कस गया है। भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में बुधवार सुबह रांची के नामकुम बागीचा स्थित फादर स्टेन स्वामी के घर पर महाराष्ट्र एटीएस और पुलिस ने दबिश दी। पुलिस ने घर को खंगाला। कंप्यूटर खोले, हार्ड डिस्क लिया। कुछ कागजात भी जब्त किये। बता दें कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में उनके घर दूसरी बार छापा पड़ा है। इससे पहले 28 अगस्त 2018 को भी महाराष्ट्र पुलिस ने उनके घर पर छापेमारी की थी। फादर स्वामी पर कोरेगांव में हिंसक और भड़काऊ भाषण देने का आरोप है, जिसके बाद हिंसा हो गयी थी। हिंसा ने बाद में दंगे का रूप ले लिया था। स्टेन स्वामी के ऊपर देशद्रोह का भी मामला चल रहा है। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि मामले में एनआइए ने भी स्टेन स्वामी को टारगेट पर रखा है, क्योंकि यह मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश से जुड़ा है। पूरे मामले में फादर स्वामी के खिलाफ कई अलग-अलग एफआइआर दर्ज हैं। इधर छापेमारी के बाद स्टेन स्वामी मीडिया के सामने आये और अपना पक्ष रखा। पेश है हमारे राज्य समन्वय संपादक दीपेश कुमार की विस्तृत रिपोर्ट।
खबर विशेष में आज हम बात कर रहे हैं पश्चिम बंगाल के मौजूदा हालात की। लोकसभा चुनाव में भाजपा के हाथों करारी हार के बाद टीएमसी समर्थक जल्लाद की भूमिका में आ गये हैं। आरएसएस और भाजपा कार्यकर्ताओं को मारपीट कर उन्हें फांसी पर लटका दे रहे हैं। पश्चिम बंगाल में अपराधियों का बड़ा गिरोह अपने ललाट पर टीएमसी की पट्टी बांध कर उतर गये हैं। उनके हाथों में खुलेआम तलवार, बम और रिवाल्वर हैं। वे चुन-चुन कर आरएसएस और भाजपाइयों को ठिकाने लगा रहे हैं। वे कितने कू्रर हो गये हैं, आप इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि भाजपाइयों को मारपीट कर उन्हें पेड़ से लटका दिया जा रहा है। उनकी इस टोली में रोहिंग्या भी शामिल हो गये हैं। वे खुलेआम सड़कों पर उतर गये हैं और चुन-चुन कर उन लोगों को मौत के घाट उतार रहे हैं, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में भाजपा का साथ दिया था। चहुंओर दहशत का आलम है। आम लोगों की जिंदगानी घरों में कैद हो गयी है। बड़ा सवाल यह है कि पश्चिम बंगाल में इन गुंडों की गुंडई को आप क्या कहेंगे! क्या इसे लोकतंत्र या संविधान की हत्या कहेंगे या फिर एक राजनीतिक दल की हैवानियत। निश्चित तौर पर पश्चिम बंगाल में दीदीराज का कू्रर सच जान कर आपकी रूह कांप उठेगी। कारण बंगाल का जर्रा-जर्रा खून का प्यासा हो गया है। दिनदहाड़े फांसी दी जा रही है। पुलिस मूकदर्शक बनी है। यहां तक कि बंगाल की मुखिया ममता दीदी खुद सड़क पर उतर कर जय श्रीराम का नारा लगानेवालों को धमका रही हैं। भाजपा के कार्यालय का निशान मिटा कर अपनी पार्टी का चिह्न अंकित कर रही हैं। और तो और भारत वर्ष में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का नारा लगानेवाले को पुलिस से खिंचवा रही हैं। आलम यह है कि पश्चिम बंगाल में अब खुल कर दीदी दोहरी नागरिकता को बढ़वा दे रही हैं। वहां की सच्चाई आम लोगों के सामने नहीं आ रही है। लोकसभा चुनाव से पहले और चुनाव परिणाम के बाद क्या है बंगाल का सच, इससे पर्दा उठा रहे हैं आजाद सिपाही के राजनीतिक संपादक ज्ञानरंजन।
17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में सबसे चौंकानेवाला परिणाम उत्तरप्रदेश की अमेठी सीट का रहा, जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भाजपा की स्मृति इरानी ने पटखनी दी। इससे पहले 1977 में अमेठी ने संजय गांधी को खारिज किया था, लेकिन उसका कारण इमरजेंसी थी। इस बार राहुल गांधी को खारिज कर अमेठी ने यह संदेश दे दिया है कि चुनावी राजनीति में कोई भी प्रत्याशी या पार्टी अपरिहार्य नहीं रह गया है। राहुल गांधी की हार के कारणों की समीक्षा कांग्रेस अपने स्तर से कर रही है और शायद उसका नतीजा आम लोगों के सामने नहीं आये, लेकिन अंग्रेजी अखबार दि हिंदू के उमर राशिद ने अमेठी के लोगों से राहुल गांधी की हार के कारणों को जानने की कोशिश की। उनकी यह रिपोर्ट पिछले दिनों प्रकाशित हुई। हम यहां उस रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं।
झारखंड की राजनीति में अभी कहीं खुशी कहीं गम का दौर चल रहा है। भाजपा जहां लोकसभा चुनाव में मिली…
झारखंड के अर्जुन पर मोदी ने किया भरोसा
बहुत दिन बाद बाबूलाल मरांडी का हुआ मोहभंग
पार्टी में बहुत बड़ी टूट का कारण भी रहे हैं प्रदीप यादव
पार्टी को जैसा चाहा, वैसा नचाया, बाबूलाल भी लगाते रहे मुहर
समर्पित कार्यकर्ताओं को किनारे रखा, अपनों को दी तरजीह
विधानसभा में विधायक दल का नेता कैसे रहेंगे!
आज हम चर्चा करेंगे कि क्या लोकसभा में जिन भाजपा विधायकों ने अपनी सीट पर पार्टी प्रत्याशी को जीत नहीं दिलायी है, उनका टिकट कटेगा! यह सवाल इसलिए किया जा रहा है क्योंकि चुनाव पूर्व ही पार्टी ने अपने सभी विधायकों को ताकीद कर रखी थी कि यदि उनके क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी की हार होगी, तो विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट देने पर पार्टी विचार नहीं करेगी। भाजपा के पांच विधायकों को छोड़ अन्य सभी विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्र में पार्टी प्रत्याशी को बढ़त दिलायी है। मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा, स्पीकर दिनेश उरांव, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी, विधायक बिमला प्रधान और शिवशंकर उरांव के विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा है। राजमहल से भाजपा प्रत्याशी हेमलाल मुर्मू अपने विधानसभा क्षेत्र बरहेट और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और चाईबासा से प्रत्याशी लक्ष्मण गिलुआ अपने विधानसभा क्षेत्र चक्रधरपुर से भी हार गये हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या भाजपा छह महीने बाद होनेवाले विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने निर्देशों को अमल में लायेगी। इसको लेकर भाजपा के अंदरखाने क्या चल रहा है, इस पर प्रकाश डाल रहे हैं ज्ञान रंजन।
लोकसभा चुनाव में महागठबंधन की झारखंड में करारी हार के बाद हाहाकार मच गया है। गंभीर संकट से जूझ रही खासकर कांग्रेस में हड़कंप मच गया है। हार से पैदा हुए हालात की समीक्षा के साथ पार्टी को संकट से बाहर निकालने पर चर्चा तेज हो गयी है। अब तो सीधे-सीधे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार पर सवाल उठने लगे हैं। इसी को देखते हुए झारखंड कांग्रेस की कमान संभाल रहे डॉ अजय कुमार ने भी पद से इस्तीफा दे दिया है। झारखंड में कांग्रेस की हार इस लिहाज से भी असाधारण है कि पार्टी एक बार फिर आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पायी। कारण पांच महीने बाद ही झारखंड में विधानसभा का चुनाव है। ऐसे में लोकसभा की हार-जीत काफी अहम हो जाती है। इस हाल के बाद यह तय माना जा रहा कि कांग्रेस को संकट के दौर से उबारने के लिए अब संगठन के तौर-तरीकों से लेकर रीति-नीति में व्यापक और निर्णायक बदलाव का दबाव ज्यादा बढ़ गया है। इधर, एक बार फिर पूर्व सांसद फुरकान अंसारी और उनके पुत्र विधायक इरफान अंसारी ने नेतृत्व पर सीधा सवाल खड़ा कर दिया है।
खबर विशेष में आज हम बात कर रहे हैं भाजपा के संथाल फतह की रणनीति की। लंबे अरसे के बाद भाजपा ने आखिरकार इस लोकसभा चुनाव में संथाल फतह कर ही ली। फतह ऐसी की झारखंड के सबसे बड़े आदिवासी नेता को मुंह की खानी पड़ी। इतना ही नहीं झाविमो और कांग्रेस के दिग्गजों को भी उनके ही मैदान में जबरदस्त पटखनी दी। चाहे वह झाविमो के प्रदीप यादव हों या चुन्ना सिंह, कांग्रेस के आलमगीर आलम या झामुमो के शशांक शेखर भोक्ता और सीता सोरेन। सभी को उसके ही किले में घुसकर भाजपा ने परास्त किया है। भाजपा ने यह करिश्मा एक दिन में नहीं किया है। पिछले पांच वर्ष से संथाल पत: पर भाजपा काम कर रही थी। आदिवासी बहुल इस इलाके में विकास की बयार के साथ आमजन को जोड़कर भाजपा ने यह करिश्मा किया है। विकास के साथ संगठन को भी भाजपा ने यहां विकसित किया है। नतीजा सामने है, भाजपा ने संथाल की तीन सीट में से दो पर जीत हासिल की है। कैसे संथाल के किले पर भाजपा ने किया कब्जा, कौन थे इसके सूत्रधार और कैसे गुरुजी के अजेय रथ को भाजपा ने संथाल में रोका इसपर प्रकाश डाल रहे हैं आजाद सिपाही के राजनीतिक संपादक ज्ञान रंजन।
झारखंड की राजनीति में नेताओं का उतार-चढ़ाव होता रहता है। खासकर क्षेत्रीय दलों के अच्छे और बुरे दिन आते रहते हैं। आज से कुछ महीने पहले झारखंड की राजनीति में यह कयास लगाया जाने लगा था कि धीरे-धीरे सुदेश महतो की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है और कुर्मी मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग उनसे दूर चला गया है। इस तबके ने झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के राजनीतिक भविष्य के बारे में चमकदार टिप्पणी शुरू की। लोग तो यह भविष्यवाणी भी करने लगे थे कि झारखंड में लोकसभा की अधिकांश सीटें महागठबंधन के खाते में चली जायेंगी और यहां भाजपा को मुंह की खानी पड़ेगी। कोई भाजपा को पांच सीटें दे रहा था, तो कोई छह। बड़ी मुश्किल से कुछ लोग भाजपा के खाते में सात सीटें डाल रहे थे। वह भी अगर-मगर के साथ। झारखंड की अधिकांश मीडिया का भी कमोबेश यही कयास था। लेकिन कहते हैं, राजनीति में अवसर आते हैं और वह अवसर आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो के लिए भी आया। देश को मजबूत नेतृत्व देने की खातिर उन्होंने भाजपा से बिना शर्त हाथ मिलाया। उन्हें इसका पुरस्कार भी मिला और भाजपा आलाकमान ने उन्हें गिरिडीह सीट सौंप दी। पिछले दो चुनावों में सिल्ली से लगातार हार के बावजूद उम्मीदों का दामन थामे सुदेश महतो अपने मिशन में लग गये और पूरी ईमानदारी से भाजपा के साथ गले मिल कर मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के अभियान में जुट गये। नतीजा सामने हैं। सुदेश ने एक बार फिर न सिर्फ खुद को साबित कर दिखाया है, बल्कि एनडीए के वोट बैंक में इजाफा और विपक्ष के वोट बैंक के बिखराव का बड़ा कारण बन गये। एनडीए को 12 सीटों पर मिली जीत में सुदेश महतो की पार्टी आजसू का भी सम्यक प्रयास है। इस लोकसभा चुनाव में सुदेश महतो और उनकी पार्टी आजसू ने झारखंड की 25 सीटों पर अपनी पकड़ दिखायी है। इसी का नतीजा रहा कि इन 25 सीटों में से एक-दो सीटों को छोड़ दें, तो सभी सीटों पर जीत के अंतर का रिकॉर्ड बनाने की होड़ दिखायी पड़ी। आज झारखंड का जो राजनीतिक परिदृश्य बन गया है, उसमें सुदेश कुमार महतो की प्रासंगिकता अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं की बनिस्बत ज्यादा बेहतर बनी है। भविष्य की संभावनाएं भी दिखने लगी हैं। इस लिहाज से अपने व्यक्तिगत और चारित्रिक गुणों के कारण सुदेश महतो झारखंड की संपूर्ण राजनीति के लिए डार्क हॉर्स साबित हो रहे हैं। लोकसभा सहित आगामी विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव जिताऊ चेहरे की गारंटी तय करने वाले चेहरे के रूप में सुदेश की भी व्यावहारिक स्वीकार्यता होने लगी है। बशर्ते भाजपा भी लोकसभा की तरह विधानसभा में भी पूरे विश्वास के साथ इस चेहरे पर दांव खेले। अन्य क्षेत्रीय दलों के नेताओं की तुलना में सुदेश महतो की राजनीतिक पकड़ क्यूं सबसे मजबूत और सटीक रूप में सामने उभर कर आयी है, चुनाव परिणाम के तथ्यों और सुदेश की प्रासंगिकता की गहन विवेचना कर रहे हैं आजाद सिपाही के सिटी एडिटर राजीव।