रांची। साल 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले की घटना है। रांची संसदीय सीट से आजसू पार्टी के उम्मीदवार…
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इस बार का चुनाव 2014 के मुकाबले भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण है। यह सच है कि लिोकसभा चुनाव में विपक्ष के वोटों का बिखराव नहीं हुआ तो भाजपा के समक्ष कड़ी चुनौती पेश आयेगी। पूर्व के उदाहरण भी इस बात को साबित करते हैं। एकीकृत बिहार के समय वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में झारखंड इलाके से भाजपा को 12 सीटें मिली थीं। लेकिन वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा एक सीट पर सिमट कर रह गयी थी। उस चुनाव में भी झामुमो, कांग्रेस, राजद और वामदलों का महागठबंधन हुआ था। एक सीट बाबूलाल मरांडी जीतने में सफल हुए थे। पिछली बार भाजपा के लिए हर मर्ज की दवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे, लेकिन इस बार भाजपा को इससे इतर मजबूत हथियार के साथ मैदान में उतरना होगा। कारण यह कि पिछली बार बाबूलाल मरांडी झामुमो और कांग्रेस के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे। वहीं झामुमो और कांग्रेस भी भाजपा के साथ साथ बाबूलाल मरांडी की मुखालफत कर रहे थे, लेकिन इस बार का सीन बहुत अलग है। महागठबंधन के तहत पिछली बार के सभी भाजपा विरोधी एक मंच पर जुट रहे हैं। ऐसे में भाजपा को विपक्ष के चौतरफा प्रहार का जवाब देने के लिए रणीनीति बनानी होगी। देखा जाये तो पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 47 लाख वोट लाकर 12 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि विपक्ष का वोट 54 लाख था, लेकिन जीत महज दो सीटों पर ही मिली थी। इस विषय पर प्रकाश डाल रहे हैं आजाद सिपाही के राजनीतिक संपादक ज्ञान रंजन।
रांची। बात कुछ साल पुरानी है। तब झारखंड अलग राज्य नहीं बना था। रांची के महात्मा गांधी नगर भवन में…
रांची। हमारे माननीय प्रदेश अध्यक्ष जी झाविमो के सांसद रह चुके हैं। उन्हें कांग्रेस के कल्चर के बारे में कुछ…
झारखंड में आॅल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, यानी आजसू एक प्रमुख राजनीतिक ताकत है और कम से कम प्रदेश की राजनीति में इसे किंगमेकर माना जाता है। एनडीए के घटक के रूप में आजसू पार्टी सरकार में भागीदार है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से भाजपा के साथ इसके रिश्ते में तल्खी आ गयी है। इसके कारण आजसू पार्टी अब भाजपा की सहयोगी पार्टी के रूप में नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र राजनीतिक ताकत के रूप में चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। लोकसभा चुनाव में उसने तीन सीटों पर लड़ने का मन बनाया है। इस स्थिति में भाजपा को महागठबंधन के साथ साथ आजसू से भी दो-दो हाथ करने होंगे। क्या है आजसू की रणनीति और ताकत, इसका आकलन कर रहे हैं आजाद सिपाही के सिटी एडीटर राजीव।
लोकसभा चुनाव की आहट शुरू होने के साथ ही सभी राजनीतिक दलों की चुनावी कसरत शुरू हो गयी है। उम्मीदवारों के चयन से लेकर बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को चुनाव के लिए तैयार करने का काम जोर पकड़ चुका है। जुलूस, सभा और रैली के साथ अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किये जा रहे हैं। इसके साथ ही प्रचार अभियान भी इस प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद प्रचार के लिए सरकारी और सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल बंद हो जाता है, इसलिए सभी राजनीतिक दल चुनाव की घोषणा से पहले इन स्थानों का अधिक से अधिक से अधिक इस्तेमाल करने की जुगत में रहते हैं। झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों का जायजा लेने के बाद यह बात साफ हो गयी है कि इस प्रचार युद्ध में झारखंड मुक्ति मोर्चा दूसरे राजनीतिक दलों से बहुत आगे है। राज्य के हर हिस्से में तीर-धनुष का पोस्टर-बैनर या होर्डिंग ही नजर आता है। यहां तक कि हाइवे के किनारे पेड़ों पर भी झामुमो के फ्लेक्स बोर्ड नजर आ रहे हैं। वह चाहे पार्टी का स्थापना दिवस हो या पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन का जन्म दिन या हेमंत सोरेन की संघर्ष यात्रा, झामुमो कार्यकर्ताओं ने प्रचार के लिए किसी अवसर को हाथ से जाने नहीं दिया है। राज्य भर में राजनीतिक दलों के प्रचार अभियान का जायजा लेती हुई आजाद सिपाही टीम की विशेष रिपोर्ट।
कलस्टर सम्मेलन के माध्यम से जनता को साध रही है भाजपा
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