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आजाद सिपाही संवाददाता रांची। परिवर्तन उलगुलान रैली में शनिवार को मोरहाबादी मैदान में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने संबोधन की…

इस बार का चुनाव 2014 के मुकाबले भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण है। यह सच है कि लिोकसभा चुनाव में विपक्ष के वोटों का बिखराव नहीं हुआ तो भाजपा के समक्ष कड़ी चुनौती पेश आयेगी। पूर्व के उदाहरण भी इस बात को साबित करते हैं। एकीकृत बिहार के समय वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में झारखंड इलाके से भाजपा को 12 सीटें मिली थीं। लेकिन वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा एक सीट पर सिमट कर रह गयी थी। उस चुनाव में भी झामुमो, कांग्रेस, राजद और वामदलों का महागठबंधन हुआ था। एक सीट बाबूलाल मरांडी जीतने में सफल हुए थे। पिछली बार भाजपा के लिए हर मर्ज की दवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे, लेकिन इस बार भाजपा को इससे इतर मजबूत हथियार के साथ मैदान में उतरना होगा। कारण यह कि पिछली बार बाबूलाल मरांडी झामुमो और कांग्रेस के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे। वहीं झामुमो और कांग्रेस भी भाजपा के साथ साथ बाबूलाल मरांडी की मुखालफत कर रहे थे, लेकिन इस बार का सीन बहुत अलग है। महागठबंधन के तहत पिछली बार के सभी भाजपा विरोधी एक मंच पर जुट रहे हैं। ऐसे में भाजपा को विपक्ष के चौतरफा प्रहार का जवाब देने के लिए रणीनीति बनानी होगी। देखा जाये तो पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 47 लाख वोट लाकर 12 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि विपक्ष का वोट 54 लाख था, लेकिन जीत महज दो सीटों पर ही मिली थी। इस विषय पर प्रकाश डाल रहे हैं आजाद सिपाही के राजनीतिक संपादक ज्ञान रंजन।