नये साल 2021 में झारखंड के राजनीतिक दलों खासकर झामुमो-कांग्रेस और भाजपा को नयी चुनौतियों से रू-ब-रू होना पड़ेगा। नये साल में विधानसभा की एक सीट मधुपुर में उपचुनाव भी होना है। इसे लेकर 15 जनवरी को खरमास खत्म होते ही सियासी पारा चढ़ने लगेगा। यह चुनाव इस मायने में भी खास है कि दो उपचुनाव में एनडीए को हार मिली है। इस कारण इस बार एनडीए पूरे दमखम के
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29 दिसंबर को बतौर मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल का एक साल पूरा करनेवाले हेमंत सोरेन को इस दौरान विपक्ष के कई हमले झेलने पड़े। पर उन्होंने न सिर्फ विपक्ष के हमलों का करारा जवाब दिया बल्कि उन आरोपों को ढाल बनाकर बढ़ चले। विपक्ष के हमलों का जवाब देते हुए भी उन्होंने अपने विरोधियों पर कभी
भगवान बुद्ध का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव है। साफगोई और बिना लाग-लपेट के बातें कहना उनके व्यक्तित्व का हिस्सा।…
मुख्यमंत्री सोरेन के समक्ष चुनौतियों का विशाल पहाड़ खड़ा है और सही मायनों में सोरेन को मुख्यमंत्री पद के रूप में कांटों भरा ऐसा ताज मिला है। लेकिन सुकून की बात यह है कि वह उस पहाड़ पर खड़ा होकर भी झारखंड को नयी दिशा में हर पल सक्रिय हैं। हेमंत
व्यक्तित्व में काबिलियत हो तो प्रसिद्धि खुद-ब-खुद चलकर दरवाजे पर दस्तक देती है। बीते वर्ष 29 दिसंबर को दूसरी दफा झारखंड की सत्ता संभालनेवाले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ यही हो रहा है। कोरोना काल में उनके कार्यों की गूंज अंतरराष्टÑीय स्तर तक पहुंची
किसे तोड़ना है और किसे जोड़ना है। अब तो राजनीतिक दल इस नैतिकता को भी भूलते जा रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश में सात में से जदयू के छह विधायकों को भाजपा द्वारा अपने पाले में करने के बाद यह चर्चा आम हो गयी है। खासकर बिहार का राजनीतिक पारा एक बार फिर चढ़ गया है। बिहार में का बा, बिहार में इ बा के चुनावी जुमले के बाद अब यह चर्चा भी आम हो गयी है कि अभी बिहार में राजनीतिक बवाल बा। इतना कुछ होने के बाद भी जदयू के राष्टÑीय अध्यक्ष बिहार के सीएम नीतीश कुमार कुछ बोल नहीं पा रहे हैं। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि क्या नीतीश कुमार सत्ता के लिए इतने बेबस हो गये हैं कि कुछ बोल नहीं पा
मिठास की नगरी मधुपुर में चलेगा तीर या खिलेगा कमल? इस सीट पर उपचुनाव की सरगर्मियां तेज होने के साथ…
आज 25 दिसंबर है। लोग क्रिसमस की खुशियां मना रहे हैं। लेकिन इस बार नये साल की रौनक दिखायी नहीं…
लोकतंत्र में अपनी बात और मांग रखने का अधिकार सबको है। पर जब इस तरह की मांग कोई धर्म गुरु करता है, तो पता नहीं कुछ लोगों को यह बात पचती क्यों नहीं! चर्चाएं होने लगती हैं। झारखंड में तो ऐसे मसलों पर कुछ ज्यादा ही राजनीति गरमा जाती है। अभी-अभी राजधानी रांची में आर्च बिशप फेलिक्स टोप्पो ने यह मांग की कि इस सरकार में एक इसाई मंत्री होना चाहिए। इस मांग के बाद विरोधियों ने तो फन ही फैला लिया है। संभवत: झारखंड की राजनीति में पहली बार
केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में किसान आंदोलन की आग धधक रही है। उसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य बड़ा मुद्दा है। वहीं झारखंड में धान खरीद को लेकर किसानों की पीड़ा कम नहीं हो रही है। बेबस किसान अपनी कर्ज अदायगी या अन्य जरूरी सामानों की खरीद के लिए साहूकारों के हाथ 11 रुपये प्रति किलो
राजनीति में बाहुबली वही होता है, जिसके इशारे पर सत्ता कदमताल करती हो और पश्चिम बंगाल में अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भाजपा भी यहां बाहुबली होने का ख्वाब देख रही है। भाजपा ने बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में से 200 पर जीत का दावा करके राजनीति गरमा दी है। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए अमित शाह समेत भाजपा के तमाम बड़े नेताओं ने यहां पूरी ताकत झोंक रखी है।