कोरोना संकट के इस दौर में सोमवार 11 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर के मुख्यमंत्रियों से बात की और 25 मार्च से जारी लॉकडाउन पर चर्चा की, उनके सुझाव मांगे और उनकी समस्याओं की जानकारी ली। करीब छह घंटे तक चली बातचीत में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जिस तर्कपूर्ण और ठोस तरीके से अपनी बात रखी, उसकी चारों तरफ तारीफ हो रही है। पीएम मोदी के साथ बातचीत के दौरान हेमंत सोरेन ने कोरोना संकट की चर्चा नहीं की, क्योंकि इस पर तो हर कोई बात कर रहा था। हेमंत ने झारखंड के भविष्य के बारे में प्रधानमंत्री को बताया और उन्हें अपनी चिंताओं से अवगत कराया। ऐसा भी नहीं था कि हेमंत सोरेन राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के वशीभूत ऐसी बात कह रहे थे। उन्होंने केवल हकीकत बयां की और साफ किया कि झारखंड आज पूरी तरह केंद्र पर निर्भर है। हेमंत ने राज्य की बदहाल हो चुकी आर्थिक स्थिति और खाली खजाने की तस्वीर पीएम के सामने रख दी और मदद की गुहार लगायी। पीएम से बातचीत के इस दौर के बाद हेमंत सोरेन का एक नया रूप सामने आया है, जिसमें झारखंड के भविष्य के प्रति उनकी चिंता साफ दिखाई दे रही है। यह हकीकत है कि झारखंड की माली हालत बेहद खराब है और इसमें सुधार के लिए तत्काल कुछ ठोस कदम उठाने जरूरी हैं। राज्य सरकार इस दिशा में काम भी कर रही है, लेकिन उसे केंद्र की मदद की दरकार है। झारखंड की माली हालत की पृष्ठभूमि में पीएम के साथ हेमंत की बातचीत का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।
सोमवार 11 मई को करीब छह घंटे तक राज्य के मुख्यमंत्रियों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चली वीडियो कांफ्रेंसिंग के बाद जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी टीम के अधिकारी बाहर निकले, तो उनके चेहरे गंभीर थे। खास कर हेमंत सोरेन बेहद गंभीर थे, लेकिन उनके चेहरे पर एक संतोष झलक रहा था। उन्हें शायद संतोष इस बात का था कि उन्होंने पूरी मजबूती और तार्किक ढंग से झारखंड के बारे में प्रधानमंत्री को बता दिया है। हालांकि हेमंत ने पीएम के साथ हुई बातचीत पर कोई खास टिप्पणी नहीं की, लेकिन बातचीत में मौजूद एक अधिकारी ने बाद में बताया कि मुख्यमंत्री की बात बाकी सभी मुख्यमंत्रियों से अलग थी और इसलिए बातचीत का यह दौर झारखंड के लिए बेहद सकारात्मक रहा।
पीएम के साथ इस बातचीत में हेमंत सोरेन ने एक बार फिर साबित कर दिया कि झारखंड उनके लिए सबसे पहले है। एक मुख्यमंत्री के तौर पर वह राज्य के भविष्य के लिए चिंतित हैं। उनकी चिंता झारखंड की बदहाल माली हालत को लेकर है, बाहर से लौटनेवाले प्रवासी मजदूरों के लिए है और राज्य में जारी कल्याणकारी योजनाओं को धरातल पर उतारने की है। हेमंत ने न केवल झारखंड की हालत पर चिंता जतायी, बल्कि राज्य के वाजिब हक को भी सामने रखा। उन्होंने जिंदगी और जीविका के बीच संतुलन बनाकर कार्य करने की जरूरत बतायी, जिसे भारी समर्थन मिला। हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री द्वारा अपनी बात रखने के लिए दिये गये अवसर का पूरा लाभ उठाया। उन्होंने राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को किनारे रख कर केवल झारखंड के हितों की बात की। उन्होंने कोरोना के खिलाफ जारी जंग में झारखंड की स्थिति की मोटे तौर पर जानकारी दी, लेकिन उनका फोकस झारखंड के भविष्य पर रहा। एक सुलझे हुए राजनेता की तरह हेमंत सोरेन ने अपनी बात रखने में कहीं कोई चूक नहीं की। उन्होंने बाहर से लौटनेवाले प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की बात की और अपना रोडमैप भी बताया। ऐसा शायद पहली बार हुआ, जब किसी मुख्यमंत्री ने केवल समस्या पर बात नहीं की, बल्कि उसके समाधान के लिए अपनी सरकार द्वारा बनाये गये रोडमैप की भी चर्चा की और उसमें केंद्र का सहयोग मांगा। हेमंत ने जब मनरेगा मजदूरी और श्रम दिवस बढ़ाने की बात की, तो उनके दिमाग में प्रवासी मजदूर ही थे। इसी तरह उन्होंने राज्य के खाली खजाने की समस्या बतायी, तो उसे भरने के लिए जीएसटी के हिस्से का भुगतान की बात कही और कर प्रणाली में संशोधन कर राज्य की धन संग्रह शक्ति बढ़ाने में मदद के उपाय भी सुझाये। हेमंत ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर फोकस करने का जो सुझाव दिया, उसने दूसरे राज्यों को भी प्रभावित किया। हेमंत का कर संग्रह प्रणाली को थोड़ा बदलने का सुझाव भी सराहा गया।
हेमंत सोरेन को आनेवाले दिनों की चिंता है। वह अपने राज्य की आर्थिक स्थिति जानते हैं। उन्होंने पीएम के सामने पूरी स्थिति बयां की। हेमंत सोरेन को इस बात की चिंता है कि राज्य में विकास की गाड़ी को आगे कैसे बढ़ाया जाये। राज्य को करों और गैर कर राजस्व से होने वाली आय में आधे से अधिक की गिरावट आयी है।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में झारखंड के खजाने में कर और गैर कर राजस्व से 45 सौ करोड़ रुपये आने का अनुमान था, लेकिन महज 22 सौ करोड़ ही आये। इनमें केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के रूप में 22 सौ करोड़, अपने करों से 15 सौ करोड़ और खनन रॉयल्टी तथा गैर कर राजस्व के मद में एक हजार करोड़ मिलने का अनुमान था। लेकिन कोरोना ने सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। हेमंत ने सरफेस रेंट के 40 हजार करोड़ के बकाये के भुगतान की मांग भी की। हेमंत सोरेन की तात्कालिक चिंता राज्यकर्मियों के वेतन के 14 सौ करोड़ और पेंशन मद के नौ सौ करोड़ रुपये की है। उन्होंने साफ किया कि केंद्र सरकार यदि झारखंड को सभी बकाये का भुगतान कर देती है, तो राज्य की हालत सुधर जायेगी।
झारखंड की चिंताओं से पीएम को अवगत करा कर हेमंत सोरेन ने एक बड़ी लकीर खींची है। उनकी चिंता वाजिब है और प्रधानमंत्री ने उनकी बातों को ध्यान से सुना भी। अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है। झारखंड के मुख्यमंत्री ने अपना काम कर दिया है। उन्होंने साफ कर दिया कि राजनीति अपनी जगह है और शासन चलाना अपनी जगह। दोनों के घालमेल से किसी का भी हित नहीं हो सकता। झारखंड को मदद की जरूरत है और यदि यह मदद मिल गयी, तो खनिज संपदा से भरपूर यह राज्य न केवल अपने पैरों पर खड़ा हो जायेगा, बल्कि विकास की दौड़ में देश के दूसरे राज्यों को दिशा भी दिखायेगा। अब केंद्र को अपना दिल बढ़ा करना है।