भूली भटकी शूद्र जाति की एक नारी जा पहुंची मतंग ऋषि की कुटिया पर। नाम था शबरी। उसे सहारे की जरूरत थी। उसे छत चाहिए थी। उसे पेट पालने के लिए नियमित थोड़ा अन्न व जल चाहिए था।
ऋषि द्वार पर मिल गए। शबरी ने अनुनय विनय करते हुए शरण मांगी। वह कोई घड़ी ही ऐसी थी कि मतंग ऋषि ने उसकी जाति जानते हुए भी उसे शरण दे दी। बेचारी शबरी को सुरक्षित सहारा मिल गया।
लोगों को पता चला। वे चुप रहे। ऋषिओं को पता चला। उन्होंने बहुत बुरा मनाया। नाराज हुए। शबरी को निकाल देने की बात कही। कुछ ब्राह्मण भी उनके भी उनके साथ आ जुड़े। सब ने मतंग ऋषि का बहिष्कार कर दिया। सुलगता विरोध तीव्र हो गया।
एक दिन प्रात: के समय एक ब्राह्मण स्नान कर के आ रहा था।
रास्ते में शबरी मिल गई। बेचारी ब्राह्मण के साथ टकरा गई। प्रभात के समय का थोड़ा अंधेरा जो था। ब्राह्मण को बहुत बुरा लगा। बहुत ही बुरा भला कह दिया अछूत वृद्धा शबरी को। अनाप शनाप बोलते हुए ब्राह्मण पहुंच गया सरोवर पर। कर लिया स्नान। होना चाहता था शुद्ध।
किंतु यह क्या! जैसे ही स्नान किया, पूरे सरोवर का पानी रक्त जैसा हो गया। उसमें कीड़े तैरने लगे। अब यह पानी किसी भी काम का न रहा। इसको साफ करने के अनेक उपाय किए गए। सब बेकार रहे। कई दिन बीत गए इस काम में।
भगवान राम को बनवास मिला। वह इसी काल में दण्डकारण्य पहुंचे। तब वह सबसे पहले शबरी की कुटिया में पहुंचे। पूर्व में बीत चुकी घटना जानकर भगवान राम ने कहा- ब्राह्मणों द्वारा मतंग ऋषि का बहिष्कार तथा शबरी का अपमान ही दो कारण हैं जिसकी वजह से सरोवर की यह दुर्दशा हुई है। इसका जल उपयोग-योग्य नहीं रहा। अब यदि शबरी उस जल को छू भी लेती है तो सरोवर का जल स्वच्छ व पीने योग्य हो जाएगा।ऐसा ही किया गया। शबरी ने उस सरोवर में स्नान किया। जैसे ही उसने पानी में पाव डाले पानी निर्मल होग्या।