विशेष
भारत को सतर्क रहने की जरूरत, धार्मिक कट्टरपंथ को बढ़ावा देने की रच रहे साजिश
भारत को अब अपनी पूर्वोत्तर सीमा पर बांग्लादेश से भी सतर्क रहना जरूरी
उधर तुर्किये और अजरबैजान पर भी दृष्टि रखने की जरूरत, तोड़नी होगी रीढ़

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
आतंक के खिलाफ भारत के ‘आॅपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बाद दक्षिण एशिया का कूटनीतिक परिदृश्य बदल गया है। पाकिस्तान और चीन की दोस्ती ‘आॅपरेशन सिंदूर’ के दौरान सामने आयी, तो इसके बाद अब भारत के ये दोनों दुश्मन देश बांग्लादेश की मदद से धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा देकर भारत के लिए परेशानी पैदा करने की कोशिश में जुट गये हैं। आतंक का यह त्रिकोण भारत के लिए नया टेंशन पैदा कर रहा है, जिस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। ‘आॅपरेशन सिंदूर’ के बाद से अचानक बांग्लादेश का रुख बदलता हुआ नजर आ रहा है और कूटनीति के जानकार बताते हैं कि मोहम्मद युनूस इन दिनों पाकिस्तान और चीन के साथ नजदीकी बढ़ाने में जुटे हुए हैं। यह सभी जानते हैं कि शेख हसीना के बांग्लादेश की सत्ता से हटने के बाद से ही बांग्लादेश-भारत के संबंध बहुत सहज नहीं रहे हैं। रणनीतिक रूप से बांग्लादेश का महत्व इसलिए अधिक है, क्योंकि भारत के उत्तर-पूर्व के सात राज्यों के अलावा भारत के पास समुद्र तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है। बांग्लादेश उस क्षेत्र में समुद्र का एकमात्र अभिभावक है। इसलिए पाकिस्तान-चीन-बांग्लादेश की यह नजदीकी कई लिहाज से भारत के लिए चिंताजनक है। बांग्लादेश का बदलता रवैया भारत के लिए खतरे की घंटी की तरह है। इसके अलावा भी अतीत की कड़वाहट को परे कर पाकिस्तान और बांग्लादेश भी लगातार नजदीक आ रहे हैं। विदेश मंत्री जयशंकर पहले कई बार कह चुके हैं कि भारत, बांग्लादेश के साथ सहयोगात्मक रिश्ते चाहता है, लेकिन उसे अपना दोहरा रवैया छोड़ना होगा। इसके बावजूद भारतीय कूटनीति को भारत के इर्द-गिर्द बनते एक त्रिकोण को कोई शक्ल लेने से पहले ही रोकना होगा। क्या है आतंक का यह नया त्रिकोण और कैसे भारत के लिए यह नया टेंशन है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

‘आॅपरेशन सिंदूर’ की सफलता और वैश्विक कूटनीति में भारत के दबदबे के बावजूद भारत की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है। ‘आॅपरेशन सिंदूर’ के दौरान पाकिस्तान-चीन गठजोड़ को धूल चटाने के बाद भारत के लिए एक नया टेंशन पैदा होने लगा है और यह है धार्मिक कट्टरपंथ और आतंक का त्रिकोण, जिसमें पाकिस्तान और चीन के साथ बांग्लादेश शामिल हो गया है।
भारत ने 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता में अहम भूमिका निभायी थी। उस समय बांग्लादेश के मुक्ति योद्धाओं ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में शरण ली और वहीं से पाकिस्तान के खिलाफ अपना स्वतंत्रता संग्राम लड़ा। स्वाभाविक रूप से बांग्लादेश के लोगों को पूर्वोत्तर भारत के लोगों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए, जिन्होंने कठिन समय में उनकी मदद की। लेकिन समय के साथ स्थिति उलटी होती चली गयी और आज पूर्वोत्तर भारत को बांग्लादेश से उत्पन्न कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

हाल ही में बांग्लादेश के एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी मेजर जनरल एएलएम फजलुर रहमान ने विवादास्पद बयान देते हुए कहा कि अगर भारत ने पाकिस्तान पर हमला किया, तो बांग्लादेश को भारत के सभी पूर्वोत्तर राज्यों पर कब्जा कर लेना चाहिए। यह बयान तब आया, जब 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 हिंदुओं की मौत हो गयी और भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया था। फजलुर रहमान पूर्व में बांग्लादेश राइफल्स (अब बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश) के प्रमुख रह चुके हैं और दिसंबर, 2024 में मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार द्वारा 2009 के बांग्लादेश राइफल्स विद्रोह की जांच के लिए गठित राष्ट्रीय स्वतंत्र आयोग के अध्यक्ष नियुक्त किये गये। उनके इस बयान पर बांग्लादेश सरकार ने सफाई देते हुए कहा कि ये उनके निजी विचार हैं और सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है। विदेश मंत्रालय ने साफ कहा कि बांग्लादेश संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, आपसी सम्मान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों का पालन करता है।

हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब बांग्लादेश की ओर से पूर्वोत्तर भारत को लेकर असंवेदनशील और विस्तारवादी संकेत मिले हों। बांग्लादेश का जनसंख्या घनत्व दुनिया में सबसे अधिक है और संसाधन सीमित हैं। ऐसे में अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि बांग्लादेश अवैध प्रवास को अपनी अनाधिकारिक नीति की तरह इस्तेमाल कर भारत के पूर्वोत्तर में जनसांख्यिकीय बदलाव लाने का प्रयास कर रहा है। वर्ष 1947 के विभाजन के बाद और फिर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लाखों हिंदू शरणार्थी भारत आये। समय के साथ बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रवासी भी अवैध रूप से भारत में घुसे, जो आर्थिक कारणों से भारत आ रहे थे। बांग्लादेश ने कभी इस अवैध घुसपैठ को स्वीकार नहीं किया, बल्कि जब भी भारत सीमा पर बाड़बंदी करता है या सुरक्षा कड़ी करता है, तो बांग्लादेश हमेशा विरोध करता है।

इतिहास गवाह है कि बांग्लादेश की कुछ सरकारों ने भारत विरोधी तत्वों और पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादियों को समर्थन दिया है। सैन्य शासन और बीएनपी (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) के दौर में यह नीति ज्यादा स्पष्ट थी। खालिदा जिया ने तो पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादियों को स्वतंत्रता सेनानी तक कह दिया था। परंतु 2009 में शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद इस नीति में बदलाव आया और उन्होंने भारत के साथ मिलकर उग्रवाद को कुचलने का कार्य किया, जिससे पूर्वोत्तर भारत में शांति बहाल हुई।
भारत के साथ शेख हसीना की सहयोगी नीति और आतंकी तत्वों के खिलाफ कठोर रवैये को बांग्लादेश के कट्टरपंथी और भारत विरोधी ताकतों ने कभी स्वीकार नहीं किया। लेकिन जब पांच अगस्त, 2024 को शेख हसीना की सरकार को सत्ता से हटाया गया और मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार बनी, तो इन तत्वों ने फिर से सिर उठाना शुरू कर दिया। फजलुर रहमान का बयान इस बात का संकेत है कि कट्टरपंथी अब दोबारा सक्रिय हो रहे हैं और भारत विरोधी रणनीतियों को पुनर्जीवित कर रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ भारत के खिलाफ युद्ध की बात की, बल्कि चीन के साथ सैन्य गठबंधन की भी वकालत की। उन्होंने यह भी कहा कि चीन को अरुणाचल प्रदेश पर दावा करना चाहिए। उन्होंने बांग्लादेश को समुद्र का रक्षक बताते हुए भारत के उत्तर-पूर्व को घेरे में लेने की बात की।
मोहम्मद यूनुस भी पूर्वोत्तर भारत को लैंडलॉक्ड कहकर उसे बांग्लादेश पर निर्भर बताने की कोशिश कर चुके हैं। यह एक तरह से रणनीतिक दबाव बनाने की कोशिश है। इसी तरह यूनुस सरकार के कानूनी सलाहकार आसिफ नजरूल ने पहलगाम हमले पर आपत्तिजनक टिप्पणी की, जिसे बाद में हटा दिया गया। वह लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हारून इजहार से भी मिले थे, जिससे बांग्लादेश की आतंकी नीति पर चिंता बढ़ गयी है।
भारत ने इस पूरे घटनाक्रम को गंभीरता से लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिम्सटेक सम्मेलन में मोहम्मद यूनुस को चेतावनी देते हुए कहा कि भारत की क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ बयानबाजी बर्दाश्त नहीं की जायेगी। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी स्पष्ट कहा कि सहयोग का मतलब अपनी सुविधा के अनुसार चुनना नहीं होता।
ऐसे में भारत ने अपने सुरक्षा बलों को बांग्लादेश और म्यांमार की सीमाओं पर सतर्क रहने का निर्देश दिया है। सुरक्षा एजेंसियों को शक है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ अब बांग्लादेश के इस्लामी कट्टरपंथियों का इस्तेमाल कर भारत के खिलाफ षडयंत्र रच सकती है। इससे यह भी साफ है कि चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के कट्टरपंथी अब एक नये रणनीतिक त्रिकोण की रचना कर रहे हैं, जो भारत के खिलाफ काम कर सकता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के इस नये समीकरण के पीछे चीन की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता, जो अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताता रहा है और दक्षिण एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। इन सबके बीच भारत ने बांग्लादेश में चल रही रेल परियोजनाओं पर फिलहाल रोक लगा दी है। यह कदम वहां की राजनीतिक अस्थिरता और भारत विरोधी भावनाओं को देखते हुए उठाया गया है।

मौजूदा स्थिति में भारत के लिए आवश्यक है कि वह पूर्वोत्तर की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे और बांग्लादेश में उभरते हुए राजनीतिक घटनाक्रमों पर गहन निगरानी बनाये रखें। एक अस्थिर और भारत विरोधी बांग्लादेश दक्षिण एशिया की शांति और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, दोनों के लिए खतरा बन सकता है। इतना ही नहीं, बांग्लादेश का भारत विरोधी रवैया और पाकिस्तान-चीन के साथ उसकी बढ़ती नजदीकी भी भारत के लिए नयी समस्या पैदा कर सकती है। भारत को तुर्किये और अजरबैजान पर भी निगाह रखने की जरूरत है। सबसे पहले तो उसकी कमर तोड़ने की आवश्यकता है। पर्यटन बिलकुल बंद होना चाहिए। इन देशों को भी पूर्ण रूप से बॉयकॉट करना ही एकमात्र रास्ता है।

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