विशेष
-शीर्ष नेतृत्व के ‘महामंथन’ से पार्टी के भीतर पैदा हुई नयी हलचल
-विभिन्न राज्यों में आंतरिक गुटबाजी खत्म करने पर होगा पहला जोर
-मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की रणनीति का खाका हुआ तैयार
अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर भाजपा में शीर्ष स्तर पर बैठकों का दौर शुरू हो गया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष ने पिछले दो दिन में दो बार मैराथन बैठक कर चुनावी तैयारियों से जुड़े संगठनात्मक पहलुओं को लेकर विस्तार से चर्चा की है। इन तीनों की पहली बैठक सोमवार देर रात भाजपा मुख्यालय के केंद्रीय कार्यालय में हुई। कई घंटे चली इस मैराथन बैठक के बाद तीनों नेता मंगलवार को फिर से बैठे। चूंकि कर्नाटक चुनाव में बीएल संतोष मुख्य रणनीतिकार थे, लिहाजा इस पर भी गौर फरमाया गया कि वहां पार्टी की तरफ से किस तरह की कमी रह गयी थी। इस ‘महामंथन’ ने पार्टी के भीतर नये किस्म की हलचल मचा दी है। इस बैठक को लोकसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर पार्टी को नया रूप-रंग और कलेवर देने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन से लेकर कई प्रदेशों में संगठन में बदलाव का खाका तैयार किया गया है, जिसकी घोषणा पार्टी आनेवाले दिनों में कर सकती है। इसके अलावा बैठक में महसूस किया गया कि यूपी और गुजरात को छोड़ लगभग सभी राज्यों में पार्टी के भीतर गुटबाजी व्याप्त है, जो हाल के दिनों में हिमाचल और कर्नाटक में पार्टी की पराजय का प्रमुख कारण बनी थी। बैठक में इस गुजबाजी को दूर करने के उपायों पर भी गौर किया गया। इसके लिए सबसे पहले मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर भाजपा को ध्यान देना है, जहां इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। भाजपा के ‘मिशन 2024’ के तहत शीर्ष नेतृत्व का यह ‘महामंथन’ आनेवाले दिनों में अपना असर जरूर दिखायेगा। इस बैठक और राज्यों में भाजपा की अंदरूनी स्थिति का आकलन कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
देश में 17वें आम चुनाव में अब एक साल से भी कम का वक्त बच गया है। इसलिए पार्टियों की चुनाव मशीनरी भी सक्रिय हो गयी है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सत्ता लगातार तीसरी बार हासिल करने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा पूरी तरह चुनावी मोड में आ गयी है। चुनाव जीतने के लिए इस बार भाजपा कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहती। इसके मद्देनजर पिछले दो दिन में पार्टी के तीन शीर्ष नेताओं ने दो दौर में 15 घंटे तक दिल्ली में बैठक की। इस ‘महामंथन’ का उद्देश्य आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर पार्टी की संगठनात्मक कमजोरियों को पहचान कर उन्हें दूर करने की रणनीति तैयार करना था। बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष शामिल हुए। बैठक में कई प्रदेशों में संगठनात्मक बदलाव के अलावा राष्ट्रीय पदाधिकारियों की टीम में खाली पदों को भरने के साथ ही दायित्वों में भी बदलाव करने की रूपरेखा तैयार की गयी है। इसके तहत विभिन्न राज्यों में व्याप्त आंतरिक गुटबाजी को दूर करने के उपाय करने पर विचार किया गया। इसके अलावा देशभर से कुछ नये चेहरों को राष्ट्रीय टीम में शामिल किये जाने के संकेत दिये गये। बैठक के बाद जो संकेत मिले हैं, उनके अनुसार लोकसभा चुनाव के मद्देनजर संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने और साथ ही ज्यादा सक्रिय बनाने के लिए कई प्रदेशों के प्रभारी भी बदले जा सकते हैं।
सबसे पहले तीन चुनावी प्रदेशों में होगा बदलाव
भाजपा के लिए पहली चुनौती मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ है, जो अगले चुनावी राज्य हैं, जहां इसी वर्ष विधानसभा का चुनाव होना है। मध्यप्रदेश में अभी भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करना है, क्योंकि भाजपा ने मार्च 2020 में कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरने से एक महीने पहले 15 फरवरी 2020 को लोकसभा सांसद विष्णु दत्त शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया था, जिनका तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है। बताया जा रहा है कि पार्टी आलाकमान जल्द ही मध्यप्रदेश के नये प्रदेश अध्यक्ष के साथ ही कई अन्य प्रदेशों में भी नये प्रदेश अध्यक्षों के नाम का एलान कर सकती है। भाजपा के लिए ये तीनों राज्य लोकसभा चुनाव के हिसाब से भी काफी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि तीनों राज्यों की कुल 65 लोकसभा सीट में से 62 पर अभी भाजपा का कब्जा है। लेकिन तीनों ही राज्यों में भाजपा नेताओं के बीच गुटबाजी चरम पर है। इनमें सबसे ज्यादा गुटबाजी राजस्थान में है। वहां भाजपा की सबसे मजबूत नेता वसुंधरा राजे सिंधिया हैं। वह अपनी मर्जी से राजनीति करती हैं। 2014 के बाद से वह अपने तौर पर लगातार आलाकमान से टक्कर लेती रही हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने राजस्थान में गुटबाजी खत्म करने के लिए कई नेताओं को आगे किया और कई नेताओं को केंद्रीय मंत्री बना कर वसुंधरा राजे को संदेश देने की कोशिश की। इन नेताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्द्धन सिंह राठौर और वर्तमान केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत शामिल हैं। वहीं वसुंधरा राजे के खिलाफ खुल कर बोलनेवाले नेता सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया। उनका कार्यकाल दिसंबर 2022 में पूरा हो गया था, फिर भी उन्हें चुनाव तक रखने की बात चल रही थी। वसुंधरा राजे गुट के कड़े विरोध के बाद मार्च में उन्हें हटाया गया। वसुंंधरा राजे सिंधिया का राजस्थान में दबदबा तो है, लेकिन पार्टी का एक बड़ा खेमा अपने को उपेक्षित महसूस कर रहा है। इस खेमा का मानना है कि वसुंधरा राजे की कार्यशैली के कारण ही राजस्थान में भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी। उनके अड़ियल रवैये के कारण पार्टी कार्यकर्ता नाराज हो गये थे।
मध्यप्रदेश में भी भाजपा की ऐसी ही हालत है। केंद्रीय नेतृत्व काफी लंबे समय से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हटा कर अपने किसी पसंदीदा नेता को मुख्यमंत्री बनाना चाह रहा है। केंद्रीय नेतृत्व के पसंदीदा नेताओं में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर शामिल हैं। कांग्रेस से सिंधिया के बगावत के बाद जब मार्च 2020 में दोबारा भाजपा की सरकार बननेवाली थी, उस समय शिवराज चौहान को बदलने की चर्चाएं चल रही थीं, लेकिन भारी संख्या में विधायक शिवराज के साथ खड़े हो गये। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में आने के बाद गुटबाजी और तल्खी और बढ़ गयी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को नया वर्ग पसंद कर रहा है, लेकिन शिवराज सिंह चौहान उन्हें किसी भी हाल में आगे बढ़ने देना नहीं चाहते। उधर छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को केंद्रीय नेतृत्व अब पहले जैसा भाव नहीं दे रहा है। आलाकमान का मानना है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की हार का एक बड़ा कारण डॉ रमन सिंह थे, जो कांग्रेस की आक्रामक राजनीति के सामने ठहर नहीं सके। हालांकि रमन सिंह पर भ्रष्टाचार के छींटे नहीं हैं, लेकिन मौजूदा राजनीति में उनकी उम्र आड़े आ रही है।
भाजपा नेतृत्व को पता है कि वर्तमान में उत्तरप्रदेश और गुजरात को छोड़ कर करीब सभी बड़े राज्यों में पार्टी के भीतर गुटबाजी शुरू हो गयी है। उत्तरप्रदेश में भी गुटबाजी है, लेकिन वहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्पष्ट निर्णय लेने की क्षमता और अपनी आक्रामक कार्यशैली से अब निर्विवाद रूप से भाजपा के सबसे बड़े नेता बन चुके हैं। गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह का गृह राज्य है, इसलिए फिलहाल यहां राज्यस्तरीय नेताओं के बीच गुटबाजी की कोई गुंजाइश नहीं है। पार्टी को इस बात का एहसास है कि गुटबाजी भाजपा के घर में भी प्रवेश कर गयी है। हिमाचल और कर्नाटक में भाजपा के हारने की वजह सत्ता विरोधी लहर के अलावा आंतरिक गुटबाजी भी रही।
भाजपा का चुनावी मोड में आना और इतनी गंभीरता से संगठनात्मक पहलुओं पर विचार करना साबित करता है कि पार्टी अगले चुनाव में कोई भी रिस्क लेने के मूड में नहीं है। पार्टी उन राज्यों पर विशेष फोकस कर रही है, जहां उसकी सरकार नहीं है, लेकिन संगठन तुलनात्मक रूप से अच्छा काम कर रहा है। बिहार और झारखंड में हालांकि संगठन अच्छा काम कर रहा है, लेकिन इन राज्यों में भी पार्टी के अंदर की गुटबाजी पर भाजपा आलाकमान की नजर है।