विशेष
-सिर्फ तीन महीने में घर की चौखट से सदन की देहरी तक का सफर
-विधायक पद की शपथ लेने के साथ ही कई गुना बढ़ गया जिम्मेदारियों का बोझ
-झारखंड को ही नहीं, झामुमो को भी नयी दिशा देंगी शिबू सोरेन परिवार की बहू
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
गिरिडीह की गांडेय विधानसभा सीट से चुनी गयीं कल्पना सोरेन ने झारखंड की पांचवीं विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ ले ली है और इसके साथ ही उनके सियासी करियर का एक महत्वपूर्ण अध्याय शुरू हुआ है। इसी साल 4 मार्च को गिरिडीह के झंडा मैदान से सियासत में इंट्री लेकर कल्पना सोरेन ने इतने कम समय में अपनी जो छाप छोड़ी है, उससे हर कोई विस्फारित नजरों से देख रहा है। एक राजनीतिक परिवार की बहू होने और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद अब तक घर-परिवार की जिम्मेदारियों में व्यस्त रहनेवाली कल्पना सोरेन की सियासत के मैदान में इतनी धमाकेदार इंट्री की उम्मीद राजनीतिक पंडितों को भी नहीं थी, लेकिन परिस्थितियों ने उनके अंदर ऐसा जज्बा पैदा किया कि वह झारखंड की राजनीति के शिखर पर पहुंच गयीं। पति हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद जेठानी सीता सोरेन की परिवार और पार्टी से बगावत ने कल्पना सोरेन को उस मोर्चे पर जूझने के लिए मजबूर कर दिया, जिसकी गवाह वह शादी के बाद से बन तो रही थीं, लेकिन कभी सक्रियता से उसमें शामिल नहीं हुईं। कल्पना का समय घर-परिवार के साथ अपने प्ले स्कूल के साथ बीत रहा था, लेकिन पति की गिरफ्तारी से पैदा हुई परिस्थितियों ने उनके भीतर वह आत्मविश्वास पैदा किया, जो बिरले ही लोगों में होता है। ऐसी परिस्थितियों में या तो लोग टूट जाते हैं या विवश हो जाते हैं, लेकिन कल्पना सोरेन ने इन परिस्थितियों को चुनौती के रूप में लिया और आज उस मुकाम तक पहुंचा दिया, जिसे पाने में जिंदगी खप जाती है। आज कल्पना सोरेन का नाम झारखंड ही नहीं, पूरे देश के सियासी फलक पर सम्मान के साथ लिया जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने स्वभाव, विचार, लोगों से कनेक्ट होने की अपनी क्षमता और अपने विजन से झारखंड की राजनीति को नयी दिशा देने में कामयाबी हासिल की है। उनका नाम आज न सिर्फ झामुमो समर्थकों के बीच सम्मान के साथ लिया जा रहा है, बल्कि उन्होंने इंडिया गठबंधन के आला नेताओं तक में अपनी पहुंच बना ली है। वह चाहे सोनिया गांधी हों या राहुल गांधी, प्रियंका गांधी हों या मल्लिकार्जुन खड़गे, तेजस्वी यादव हों या अरविंद केजरीवाल, सभी आज कल्पना सोरेन के नाम और काम से परिचित हो गये हैं। उनकी तारीफ भी कर रहे हैं। कुछ लोगों ने तो उन्हें शेरनी तक की उपाधि दे दी है। आखिर ऐसी विपरीत परिस्थितियों में कल्पना सोरेन ने तमाम झंझावातों से जूझते से हुए खुद को इस मुकाम पर स्थापित किया, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
झारखंड के पहले राजनीतिक परिवार, यानी शिबू सोरेन परिवार की दूसरी बहू कल्पना सोरेन अब विधायक बन गयी हैं। उन्होंने झारखंड की पांचवीं विधानसभा की सदस्य के रूप में शपथ ले ली है। गिरिडीह की गांडेय विधानसभा सीट पर अभी हाल में संपन्न उप चुनाव में उन्होंने शानदार जीत हासिल की है। कल्पना सोरेन पहली बार विधायक बनी हैं, तो जाहिर है कि इसकी चर्चा होगी ही, लेकिन यह भी एक हकीकत है कि उनका नाम अब झारखंड के साथ ही पूरे देश के सियासी फलक पर अपरिचित नहीं है। इसी साल 4 मार्च को गिरिडीह के झंडा मैदान से राजनीति में इंट्री मार लेनेवाली पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने पिछले तीन महीने में अपनी जो पहचान बनायी है, वह किसी अजूबे से कम नहीं है। विपरीत परिस्थितियों में भी कल्पना सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए संजीवनी बन कर आयीं। जब हेमंत सोरेन को जेल हो गयी, तब झामुमो के समर्पित कार्यकर्ता एक तरह से निराश हो चुके थे। वह झामुमो की दशा और दिशा को लेकर चिंतित थे।
उनमें हताशा का बोध हो रहा था। वे हेमंत सोरेन की कमी को साफ महसूस कर रहे थे। लेकिन कल्पना सोरेन ऐसे वक्त में हेमंत और जेएमएम के कार्यकर्ताओं की हिम्मत बनीं, जब लगा कि झामुमो के राजनीतिक क्षितिज पर घना अंधेरा छानेवाला है। कल्पना सोरेन मैदान में कूद पड़ीं। बात तब की है, जब झारखंड के गिरिडीह जिले के झंडा मैदान में झारखंड मुक्ति मोर्चा का 51वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा था। उस आयोजन में मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के अलावा मुख्य अतिथि के रूप में कल्पना सोरेन भी शामिल हुईं थी। यही वह मौका था, जब कल्पना सोरेन ने पार्टी के स्थापना दिवस के अवसर पर राजनीति में एंट्री मारी। उन्होंने पहली बार जनता को संबोधित किया। संबोधन के दौरान कल्पना की आंखों से आंसू भी निकले और गला भी भर आया, लेकिन कल्पना ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने तुरंत अपने आपको संभाला और उनके मुंह से यह वाक्य निकला कि जेल का ताला टूटेगा, हेमंत सोरेन छूटेगा। झारखंड झुकेगा नहीं। इस नारे के साथ कल्पना सोरेन कूद पड़ी मैदान में। इस नारे ने झामुमो समर्थकों और नेताओं में संजीवनी का काम किया। कार्यकर्ता संकल्पबद्ध होकर कल्पना के साथ हो लिये। कल्पना सोरेन के पिता रिटायर्ड आर्मी कप्तान हैं, इसी लिए कल्पना में भी वही जीवटता है, जो आर्मी वालों में रहती है। कल्पना सोरेन जब 31 मार्च 2024 को इंडिया गठबंधन की महारैली में शामिल हुई और उन्होंने जब मंच से बोलना शुरू किया, तो यह मैसेज दे डाला कि कल्पना सोरेन आने वाले समय में बहुत बड़ी राजनीतिक हस्ती बनने वाली हैं। उन्होंने जिस प्रकार से भाजपा पर हमला बोला था, दिल्ली से लेकर झारखंड के भाजपा नेताओं में यह मैसेज चला गया कि कल्पना सोरेन कोई मामूली महिला नहीं हैं। वह भाजपा को झारखंड में पानी तो पिला ही देंगी। जब गांडेय उपचुनाव और लोकसभा चुनाव की तारीख नजदीक आ रही थी, झामुमो को लगा कि यह जंग आसान नहीं है।
लेकिन जिस तरह से कल्पना सोरेन ने मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के साथ गांडेय उपचुनाव के साथ-साथ, लोकसभा चुनाव की भी कमान अपने हाथों में ली, उसके बाद तो उन्होंने झारखंड का पूरा माहौल ही बदल दिया। झारखंड में जब पहले चरण के चुनाव हुए, तभी भाजपा के नेताओं में इस बात की चर्चा होने लगी कि कहीं इस बार सीटें खोनी नहीं पड़ जायें। भाजपा के बड़े नेताओं के चेहरे पर चिंता साफ दिख भी रही थी। कल्पना सोरेन ने झारखंड में इंडिया गठबंधन को जिस तरह से मजबूती प्रदान की, उसे कोई नकार नहीं सकता। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव का चरण बीतता गया, कल्पना सोरेन की वाणी और राजनीतिक धार और तेज होती गयी। भाजपा के नेता अपने अतिआत्मविश्वास के शिकार होते चले गये, वहीं कल्पना मुर्मू सोरेन सकारात्मक आत्मविश्वास के साथ विरोधियों के सामने चुनौतियां पेश करती चली गयीं। चुनाव के दौरान जब सभा कर के कल्पना निकलतीं, उसके बाद उनकी सभा में दिये गये भाषण की खूब चर्चा होती। सोशल मीडिया पर उनके भाषण सुर्खियां पाने लगे। क्या बोलना है, कितना बोलना है, किन मुद्दों पर बोलना है, कैसे जनता के दिलों के भीतर तक अपनी बातों को उतारना है, उसकी समझ उनमें आ चुकी थी। इसमें समझने के लिए भी कुछ नहीं था, कल्पना पहले से ही घायल शेरनी की तरह मैदान में कूद पड़ी थीं। उन्होंने जनता को अपना माना और विश्वास किया कि जनता भी उन्हें अपना मानेगी। उनके दु:ख को समझेगी। जिस अन्याय की वह बात कर रही हैं, जनता उन्हें न्याय दिलाने के लिए अपना आशीर्वाद देगी। 2024 के लोकसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने तीन सीटों पर झंडा गाड़ा, वहीं कांग्रेस ने दो सीटों पर जीत हासिल की। 2019 के लोकसभा चुनाव में जेएमएम और कांग्रेस को सिर्फ एक-एक सीट से संतोष करना पड़ा था। समझा जा सकता है कि हेमंत के जेल में रहने के बावजूद कल्पना ने ऐसा कमाल दिखाया कि जेएमएम एक से तीन पर पहुंच गया यानी तीन गुणा। इसमें मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन का भी हर पग पर साथ मिला। कांग्रेस की जीत में भी कल्पना का भी अहम योगदान रहा।
कांग्रेस और जेएमएम दोनों ही इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं।
कल्पना सोरेन एक वक्त हॉकी खिलाड़ी रह चुकी हैं, वह एक आर्मी अफसर की बेटी हैं। कल्पना अपने परिवार के साथ-साथ अब राजनीति में भी माहिर खिलाड़ी बन चुकी हैं। राजनीति के गलियारों में उन्हें लेकर तरह-तरह की चचार्एं हैं। सिर्फ तीन महीने में घर की चौखट से सदन की देहरी तक की छलांग जो कल्पना सोरेन ने लगायी है, उसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। आज हेमंत सोरेन को अपनी अर्द्धांगनी पर फख्र हो रहा होगा। उनके बच्चों को अपनी माता में आयडल साफ दिख रहा होगा, शिबू सोरेन और उनकी पत्नी को भी अपनी बहू पर नाज हो रहा होगा। सच में कल्पना सोरेन ने जिस परिस्थिति में खुद को साबित और स्थापित किया है, वह झारखंड की राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना है। कल्पना सोरेन सिर्फ जेएमएम के लिए ही नहीं, झारखंड की राजनीति के लिए भी जरूरी हैं। आज कल्पना सोरेन उन आदिवासियों के लिए आस बन कर उभरी हैं, जो अपनी पीड़ा को दबा लेते थे। कल्पना सोरेन एक नारी हैं और नारी से बेहतर पीड़ा को और कौन समझ सकता है। उस पीड़ा का समाधान नारी से बेहतर और कौन कर सकता है। आज आदिवासियों के एक बहुत बड़े वर्ग में यह उम्मीद जगी है कि हेमंत सोरेन की मौजूदगी में कल्पना सोरेन उनकी आशाओं-आकांक्षाओं की वाहक बनेंगी।