राजनीति : नेताओं का शुरू हुआ राम नाम ‘केवलम’, अगले वर्ष होने वाला है चुनाव
उत्तरप्रदेश में अगले वर्ष चुनाव होना है। चुनावी मंच सजने लगा है। राजनीतिक दलों की सक्रियता बढ़ने लगी है। सभी राजनीतिक दलों के नेताओं के लिए ‘अग्नि परीक्षा’ का समय आ गया है। क्योंकि अब शुरू होगा जनतंत्र का ‘खेल’। अब जनता के हाथों में ताकत आनेवाली है। जनता के पास यही एक मौका होता है, जब उसे अपने अधिकार का एहसास होता है। राजनीतिक दल भलीभांति समझते हैं कि जनता को अपनी तरफ लाये बिना, चुनाव जीतना संभव नहीं है। इसके लिए हर दल के नेता रणनीति के साथ दांव खेलने लगे हैं। उत्तरप्रदेश चुनाव में भाजपा जाति आधारित वोटरों के साथ-साथ छोटे दलों पर नजरें टिकाये हुए है। सपा और बासपा भी अपने परंपरागत वोटरों के साथ-साथ भाजपा के वोटरों को तोड़ने में लगी है। इसके लिए सभी एक-दूसरे की घेराबंदी में लगे हैं। सपा नेता अखिलेश यादव के खिलाफ भाजपा घेराबंदी कर रही, तो भाजपा के खिलाफ बसपा नेता मयावती ने मोर्चा खोल दिया है। एक बात सभी दलों को समझ में आ रही है कि उत्तरप्रदेश चुनाव में एक सबसे अहम बात राम मंदिर निर्माण है। इसलिए सभी ने राम नाम ‘केवलम’ का जाप शुरू कर दिया है। राम मंदिर निर्माण को लेकर सभी दल के नेता बयानबाजी करने लगे हैं। उत्तरप्रदेश चुनाव से पहले की घेराबंदी पर आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की विशेष रिपोर्ट।
अखिलेश यादव लाल टोपी पहने समाजवाद का रंग उत्तरप्रदेश के चुनावी माहौल में फैला रहे हैं। वहीं उस रंग को बेरंग करने की दौड़ में मायावती की बसपा भगवा लिये जय श्रीराम के नारे के साथ ब्राह्मण कार्ड का खेला खेल रही है। कभी तिलक, तराजू और तलवार को लेकर विवादित नारे देनेवाली बसपा का यह पैंतरा यूं ही नहीं है। देखा जाये तो 1984-1985 में जब बसपा का गठन हुआ, तब से लेकर 2007 के चुनाव से पहले तक बसपा के मंच से सवर्ण विरोधी नारे आम थे। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कई बार तो बसपा के मंचों से, रैलियों से और सभाओं से यहां तक कहा जाता था कि अमुक जातियों के लोग अगर सभा में बैठें है, या आये हैं तो वे यहां से चले जायें। बसपा ने 2007 में ठीक विधानसभा चुनाव से पहले अपना सुर बदला और सवर्णों पर डोरे डालने शुरू किये। नतीजा ब्राह्मणों के साथ ही क्षत्रियों को संग लेकर बसपा सत्तारूढ़ हुई। लेकिन वक्त के साथ बसपा के हाथी की चाल धीमी होती गयी। उसकी इस सोशल इंजीनियरिंग की धार भोथरी हो गयी। विधानसभा चुनाव 2017 में बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक में वर्ष 2007 की तुलना में 8.2 फीसदी की गिरावट हो गयी। वर्ष 2012 में वह वोट 25.95 फीसदी रहा था और वर्ष 2017 में 22.23 फीसदी के साथ सिर्फ 19 सीटें आयी थीं। बसपा ने अब वोट प्रतिशत बढ़ाने के मद्देनजर ही 75 जिलों में ब्राह्मण संगोष्ठियां करने का फैसला किया है। उत्तरप्रदेश में 16 फीसदी ब्राह्मण हैं, जो किसी भी राजनीतिक पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने का दम रखते हैं। इसी के तहत मथुरा, काशी और प्रयागराज में कार्यक्रम तय किये गये हैं। बसपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा अयोध्या में रामलला के दर्शन करने के बाद ब्राह्मण संगोष्ठी का आगाज हुआ। अगर पूरे उत्तरप्रदेश में अब मंदिरों की डिमांड अचानक से बढ़ जाये तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि बसपा भी अब नरम हिंदुत्व की राह पर चल पड़ी है। बसपा ने एक बार फिर से 2022 में होनेवाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए वही सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाना शुरू कर दिया है, जिससे वह 2007 में सत्ता शीर्ष पर पहुंची थी।
भाजपा की कॉपी राइट पर बसपा का निशाना
2022 के विधानसभा चुनाव में राम के दरबार में अब नेताओं का तांता लगना शुरू हो चुका है। एक तरफ जहां भगवान राम पर भाजपा अपनी कॉपीराइट मानती है, वहीं उस पर क्लेम करने के इरादे से बसपा भी मैदान में आ चुकी है। बसपा कह रही है- जिस राम मंदिर की नींव भी भाजपा सरकार पूरी नहीं कर सकी, उस राम मंदिर का निर्माण अब मायावती सरकार पूरा करेगी। इधर सपा और कांग्रेस की भी नजर अब राम मंदिर के प्रति बदली है। उनमें भी अचानक राम मंदिर के प्रति प्रेम उमड़ आया है। इनके रुख को देख कर भगवान राम भी सोच में पड़ गये होंगे कि राम मंदिर किससे बनवाया जाये, क्योंकि अगर अचानक अखिलेश और प्रियंका राम का नाम जपने लग जायें तो आश्चर्य करने की जरूरत नहीं है। सपा मुखिया अखिलेश यादव कुछ दिन पहले ही चित्रकूट के दौरे पर गये थे। उन्होंने वहां कामतानाथ और अन्य मंदिरों के दर्शन किये और परिक्रमा भी की। 2017 में सत्ता से बेदखल, 2019 के लोकसभा के चुनाव में भी करारी शिकस्त और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हिंदुत्व के तेवर को देखते हुए समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी यह बात समझ गये हैं कि उन्हें मुस्लिम समर्थक छवि से बाहर निकल कर सॉफ्ट हिंदुत्व की सियासी पिच पर उतरना ही होगा। वहीं समाजवादी पार्टी के नेता अभिषेक मिश्रा ने कहा है कि लखनऊ में भगवान श्री परशुराम की 108 फीट मूर्ति के साथ उनका भव्य मंदिर बनाया जायेगा। भगवान परशुराम ब्राह्मण ही थे। इस मंदिर से सपा द्वारा ब्राह्मणों को रिझाने की कवायद में एक कदम माना जा सकता है। अखिलेश कहते रहे हैं कि राम भाजपा के ही नहीं हैं, बल्कि उनके तो राम और कृष्ण दोनों हैं। वहीं उत्तरप्रदेश चुनाव को राममय होता देख और हिंदुत्व के बढ़ते क्रेज को देख अगर प्रियंका भी माथे पर तिलक लगा मंदिर मंदिर घूमने लगीं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
भाजपा गहरी रणनीति के साथ काम कर रही
इधर भाजपा एक अलग रणनीति के साथ काम कर रही। भाजपा की रणनीति को तय करने में संघ बहुत ही अहम किरदार निभा रहा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत के इन दिनों आ रहे बयान को उत्तरप्रदेश चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। संघ की पिछले दिनों चित्रकूट में बहुत ही सीक्रेट बैठक हुई है। भाजपा छोटे दलों को अपनी ओर आकर्षित करने में जुट गयी है। उसमें सफलता भी मिल रही है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में उत्तरप्रदेश के 14 लोकसभा एवं राज्यसभा सांसद मंत्री बनाये गये हैं। प्रदेश में भाजपा के 62 लोकसभा और 22 राज्यसभा सदस्य सहित 84 सांसद हैं, जबकि सहयोगी अपना दल (एस) के दो सांसद हैं। इनमें से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित केंद्रीय मंत्रिमंडल में 15 मंत्री हैं। ऐसा पहली बार हुआ है, जब केंद्र सरकार में इतनी बड़ी संख्या में यूपी को प्रतिनिधित्व मिला है। उत्तरप्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इसे भाजपा का मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है। इस मंत्रिमंडल में पिछड़ी जाति को आगे आने का मौका मिला, वहीं अब चुनाव के मैदान में भी इसका असर तो दिखेगा ही। उत्तरप्रदेश यानी 75 जिला, 18 डिवीजन, 821 ब्लॉक, लगभग 59 हजार ग्राम पंचायतें, 80 लोकसभा सीटें, 403 विधानसभा सीटें और जनसंख्या लगभग 27 करोड़। इस विराट प्रदेश की राजनीति में छोटे दलों की अहम भूमिका हमेशा से रही है और रहेगी। उत्तरप्रदेश में पांच प्रतिशत कुर्मी वोटर हैं। अनुप्रिया पटेल ही वह चाबी हैं, जिससे भाजपा कुर्मी वोटरों को साध सकती है। अनुप्रिया पटेल मोदी मंत्रिमंडल में अब मंत्री हैं। उत्तरप्रदेश की राजनीति में चार प्रतिशत वोटों को प्रभावित करनेवाले निषाद समाज को भी भाजपा अपनी ओर आकर्षित करना चाहती है। इसी प्रकार सपा भी छोटे छोटे दलों को अपनी और आकर्षित करने में जुटी हुई है।
वोट बैक में सेंधमारी, खुलासे का इंतजार
सभी दलों की एक-दूसरे के वोट बैंक में सेंधमारी शुरू हो गयी है। सपा के अखिलेश यादव की इन दिनों राष्ट्रीय युवा लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी से नजदीकियां चर्चा बटोर रही हैं। बता दें कि आरएलडी की बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, बुलंदशहर, मथुरा, हाथरस, अलीगढ़, आगरा, मेरठ और गाजियाबाद में पकड़ काफी मजबूत है। लगभग 40 विधानसभा सीटों पर जाट वोट बैंक निर्णायक भूमिका में हैं। इस छोटे दलों के आकर्षण की होड़ में मायावती जहां सपा को सवर्ण कार्ड खेल कर घेर रही हैं, वहीं ओवैसी मुसलमानों का वोट काटने मैदान में उतर चुके हैं। ओवैसी ने यूपी की 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। उन्होंने कहा- ‘हमने फैसला लिया है कि हम 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे, पार्टी ने उम्मीदवारों को चुनने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उन्होंने यह भी कहा कि वह ओमप्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ हैं। लेकिन जिस तरह से उन्होंने एकतरफा सौ सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है, वह क्या भागीदारी मोर्चा को स्वीकार है, यह बात अभी सामने नहीं आयी है। चर्चा जोरों पर है कि सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर अखिलेश के साथ जायेंगे। उत्तरप्रदेश के गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, आंबेडकर नगर और वाराणसी में राजभर जाति के लोग काफी संख्या में हैं। राजभर वोट बैंक को बहुत हद तक अपने पाले में करने की क्षमता ओम प्रकाश राजभर रखते भी हैं। लेकिन अभी हाल के पंचायत स्तर के सदस्य और अध्यक्ष चुनावों में सपा और भाजपा का प्रदर्शन देखते हुए ओम प्रकाश राजभर कंफ्यूज चल रहे हैं। इन दोनों चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा। मुख्यमंत्री योगी अभी फुलफॉर्म में हैं और प्रधानमंत्री उत्तरप्रदेश की जनता को सौगातें दिये जा रहे हैं। अभी हाल ही में उन्होंने 15 जुलाई 2021 को काशी के विकास के लिए 1500 करोड़ की सैगात दी है। अब यह तो आनेवाले समय में पता चलेगा कि किसने किसके वोट बैंक में सेंधमारी की। जनता किसके साथ गयी। कौन पास हुआ कौन फेल। लेकिन अभी चुनाव तक फिलहाल राजनीतिक दलों के कई रंग आनेवाले दिनों मे देखने को मिलते रहेंगे।