विशेष
किसी के लिए पहला मौका तो कोई रचेगा इतिहास
बाबूलाल मरांडी के कारण राजधनवार, बन गयी है सबसे चर्चित सीट
कोल्हान के तीन पूर्व सीएम के कारण सरायकेला, जमशेदपुर पूर्वी और पोटका बना चर्चा का केंद्र
अमर बाउरी के कारण चंदनकियारी पर भी हैं निगाहें
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड की छठी विधानसभा के चुनाव के लिए मैदान लगभग तैयार हो गया है। दो चरणों में होनेवाले चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने का काम खत्म हो गया है। दाखिल किये गये नामांकन पत्रों की जांच का पहला चरण भी खत्म हो गया है और अब दूसरे चरण के नामांकन पत्रों की जांच होगी और नाम वापस लेने के बाद मुकाबले की असली तस्वीर साफ होगी। लेकिन इस तस्वीर के साफ होने से पहले ही कुछ मुकाबले ऐसे हैं, जिनसे न केवल वहां चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों, बल्कि उनके दलों की प्रतिष्ठा भी जुड़ी हुई है। जहां तक भाजपा की बात है, तो उसके लिए तो सभी 81 सीटें महत्वपूर्ण हैं, जहां से वह खुद या फिर उसके सहयोगी चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन पांच सीटें ऐसी हैं, जिनके परिणाम पर राज्य ही नहीं, पूरे देश की निगाहें हैं, क्योंकि यहां उतरे प्रत्याशी खास हैं। इन सीटों पर होनेवाला चुनाव वहां से पार्टी के प्रत्याशियों से अधिक पार्टी की दशा-दिशा तय करेंगे। इन सीटों में धनवार, चंदनकियारी, सरायकेला, पोटका और जमशेदपुर पूर्वी सीट शामिल है। इनमें पहली तीन सीटों पर भाजपा के दिग्गज मुकाबले में हैं, तो पोटका और जमशेदपुर पूर्वी में पार्टी के दो दिग्गजों की परिजन पहली बार चुनाव मैदान में उतरी हैं। ये पांच सीटें झारखंड में न केवल भाजपा का भविष्य तय करेंगी, बल्कि झारखंड का रास्ता भी। क्या है इन पांच सीटों का चुनावी परिदृश्य और क्या है इनका चुनावी इतिहास, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
बाबूलाल मरांडी के कारण धनवार पर है सभी की निगाहें
बाबूलाल मरांडी, राजकुमार यादव, निजामुद्दीन अंसारी, निरंजन राय
धनवार विधानसभा क्षेत्र में हमेशा से ही चर्चित रही है और इसका कारण हर बार बाबूलाल मरांडी ही रहे हैं। यह सीट बाबूलाल मरांडी का गढ़ माना जाता है। यहां से वर्ष 2009 और 2019 में झारखंड विकास मोर्चा उम्मीदवार की जीत हुई। वहीं वर्ष 2014 में भाकपा-माले उम्मीदवार को जीत मिली थी। 2019 के चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने झारखंड विकास मोर्चा उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। इस बार बाबूलाल मरांडी भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। इसलिए धनवार सीट पर फिर देश भर की निगाहें हैं। यहां इस बार बाबूलाल मरांडी के सहयोगी रहे निरंजन राय भी मुकाबले में उतर गये हैं। निरंजन राय के अलावा बाबूलाल के सामने भाकपा माले के राजकुमार यादव और झामुमो के निजामुद्दीन अंसारी की चुनौती भी है। इन तीन प्रतिद्वंद्वियों के चक्रव्यूह से बाबूलाल मरांडी कैसे निकलते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा। इस सीट पर भाजपा के डॉ रविंद्र कुमार राय ने वर्ष 2000 और 2005 में जीत हासिल की थी। इसके बाद बाबूलाल मरांडी भाजपा से अलग हो गये और झारखंड विकास मोर्चा का गठन किया। वर्ष 2009 में झाविमो के निजामुद्दीन अंसारी को जीत मिली। उस चुनाव में माले के राजकुमार यादव दूसरे और भाजपा के रविंद्र कुमार राय तीसरे स्थान पर रहे। वर्ष 2014 के चुनाव में बाबूलाल मरांडी खुद झाविमो उम्मीदवार के रूप में यहां से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली। भाकपा-माले के राजकुमार यादव ने करीब 11 हजार वोटों के अंतर से उन्हें पराजित किया। इसके बाद 2019 में झाविमो के बाबूलाल मरांडी ने भाजपा के लक्ष्मण सिंह को पराजित कर धनवार सीट पर कब्जा जमाया। इस बार डॉ रविंद्र कुमार राय यहां से चुनाव लड़ना चाह रहे थे। जब उन्हें टिकट नहीं मिला, तो उनके नाराज होने की खबर मिलते ही पार्टी के आला नेता सक्रिय हुए। उन्हें मनाया गया और प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष बना कर उनकी नाराजगी दूर की गयी। धनवार सीट पर भूमिहारों का अच्छा प्रभाव है। इसलिए माना जा रहा है कि निरंजन राय यहां मजबूत चेहरा हैं। उधर राजकुमार यादव और निजामुद्दीन अंसारी भी अपने-अपने ठोस जनाधार के सहारे बाबूलाल को घेरेंगे।
अमर बाउरी के कारण चंदनकियारी सीट है चर्चा में
अमर बाउरी, उमाकांत रजक
बोकारो जिले की चंदनकियारी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इस सीट पर इस बार मुकाबला काफी रोचक होने वाला है। यहां से भाजपा ने मौजूदा विधायक और नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी को एक बार फिर मैदान में उतारा है। वह लगातार तीसरी बार मैदान में उतरे हैं। वह 2014 और 2019 में इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं। उनके सामने एक बार फिर उमाकांत रजक हैं, जो कुछ दिन पहले ही आजसू छोड़ कर झामुमो में शामिल हुए हैं। 2019 के चुनाव में भी इन्हीं दोनों नेताओं के बीच मुकाबला हुआ था। तब उमाकांत रजक आजसू प्रत्याशी थे। चंदनकियारी सीट पर पिछले दो चुनावों के आंकड़े बताते हैं कि यहां भाजपा का पलड़ा भारी है, लेकिन उमाकांत रजक के मैदान में उतरने से मुकाबला नजदीकी हो गया है। रजक यहां से 2009 में विधायक रह चुके हैं, जबकि 2005 में झामुमो ने यहां से जीत हासिल की थी। 2009 के चुनाव में झामुमो चौथे स्थान पर रहा था, जबकि 2014 और 2019 में वह तीसरे स्थान पर था। 2019 के चुनाव में अमर बाउरी को लगभग 68 हजार वोट मिले थे और उमाकांत रजक 58,528 वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे।
चंपाई सोरेन के कारण सरायकेला बन गयी है हॉट सीट
चंपाई सोरेन, गणेश महाली
कोल्हान के प्रवेश द्वार सरायकेला में साल 2014 और 2019 में झामुमो के टिकट पर चंपाई सोरेन ने भाजपा के प्रत्याशी गणेश महाली को मात दी थी। अब चंपाई सोरेन भाजपा के टिकट पर उसी गणेश महाली के सामने हैं, जो झामुमो के प्रत्याशी हैं। बीते दो विधानसभा चुनाव की बात करें, तो साल 2014 के विधानसभा चुनाव में चंपाई सोरेन ने 1115 वोटों से गणेश महाली को हराया था। चंपाई सोरेन को 94,746 वोट मिले थे, वहीं गणेश महाली को 93,631 वोट मिले। साल 2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो के टिकट से चंपाई सोरेन ने भाजपा के प्रत्याशी गणेश महाली को 15,667 वोटों से हराया था। इस बार मुकाबला पुराने प्रतिद्वंद्वियों के बीच ही है, लेकिन दोनों ने दल बदल लिये हैं। सरायकेला चंपाई सोरेन का गढ़ रहा है और करीब दर्जन भर सीटों पर उनका प्रभाव माना जाता है। झामुमो में नंबर दो की हैसियत रखनेवाले चंपाई दा जब भाजपा में शामिल हुए, तो कहा गया कि यह झामुमो के लिए बड़ा झटका है। लेकिन अब चुनाव में झामुमो ने गणेश महाली के जरिये उनकी जो घेराबंदी की है, उसे तोड़ना भाजपा ही नहीं, खुद चंपाई सोरेन के लिए भी बड़ा चैलेंज है। इसलिए सरायकेला को हॉट सीट माना जा रहा है।
मीरा के लिए खुद को साबित करने के लिए मौका
मीरा मुंडा, संजीव सरदार
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पोटका में इस बार मुकाबला झामुमो के संजीव सरदार और भाजपा की मीरा मुंडा के बीच है। संजीव सरदार सीटिंग विधायक हैं, जबकि भाजपा ने पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को मैदान में उतारा है। पिछले चार चुनावों की बात करें, तो इस सीट से दो बार भाजपा और दो बार झामुमो उम्मीदवार को जीत मिली है। भाजपा की मेनका सरदार ने इस सीट से सबसे अधिक दो बार चुनाव जीता है। पिछले चुनाव में झामुमो के संजीव सरदार ने भाजपा की मेनका सरदार को 43 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। इस सीट पर 50 प्रतिशत आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका निर्णायक मानी जाती है। यहां से आदिवासी समुदाय के भूमिज यानी सरदार समुदाय से आने वाले उम्मीदवार ही अधिकतर बार जीते हैं। इनमें सनातन सरदार, मेनका सरदार, हाड़ीराम सरदार, अमूल्यो सरदार के नाम शामिल हैं। यही कारण है कि झामुमो ने संजीव सरदार को फिर से टिकट दिया है। पिछले चुनाव में संजीव सरदार को सबसे ज्यादा एक लाख 10 हजार 753 वोट मिले थे। इस सीट से आज तक किसी भी उम्मीदवार को इतने वोट नहीं मिले थे। वहीं दूसरे नंबर पर भाजपा की प्रत्याशी मेनका सरदार रही थीं। उनको कुल 67,643 वोट मिले थे, जबकि आजसू की बालू रानी सिंह को 5,735 वोट ही मिल पाये थे। वह तीसरे स्थान पर रही थीं। इस बार आजसू और भाजपा का गठबंधन है। इसलिए एनडीए के वोटों में बिखराव की संभावना समाप्त हो गयी है। मीरा मुंडा के लिए खुद को साबित करने के लिए बेहतरीन मौका है। इसलिए पोटका के मुकाबले को रोमांचक माना जा रहा है।
रघुवर दास की बहू के कारण जमशेदपुर पूर्वी में बढ़ा रोमांच
पूर्णिमा दास साहू, डॉ अजय कुमार
अब बात जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट की, जो 2019 में सबसे हॉट सीट थी। इस बार यहां के मुख्य मुकाबले में नये चेहरे हैं, इसलिए यहां रोमांच बढ़ गया है। भाजपा ने अपने दिग्गज नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में ओड़िशा के राज्यपाल रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास साहू को प्रत्याशी बनाया है, जबकि कांग्रेस ने अपने पुराने नेता और पूर्व सांसद डॉ अजय कुमार को मैदान में उतारा है। इनके अलावा भाजपा के दो वरिष्ठ नेता शिव शंकर सिंह और राजकुमार सिंह भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हैं। इस सीट से कुल 32 उम्मीदवारों के मैदान में होने के कारण मुकाबला दिलचस्प हो गया है। 2019 के चुनाव में यहां से निर्दलीय सरयू राय ने राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को हरा दिया था। यह सीट रघुवर दास का गढ़ मानी जाती है। इसलिए 2019 की तरह इस बार भी यह सीट बेहद हॉट मानी जा रही है।