तिर्की की संपत्ति 1 लाख 12 हजार 121 प्रतिशत बढ़ गयी थी दो चुनावों के बीच
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झारखंड नक्सल मुक्त हो गया है या नहीं, इस पर जारी बहस के बीच में ही नक्सलियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। लातेहार के चंदवा इलाके में शुक्रवार को पुलिस टीम पर हमला कर एक दारोगा समेत चार पुलिसकर्मियों की हत्या कर नक्सलियों ने विधानसभा चुनाव की तैयारियों में बड़ा धमाका कर दिया है। इस घटना ने पुलिस प्रशासन के सामने नक्सलियों पर नकेल कसने और सुरक्षित मतदान के लिए अपनी रणनीति को बदलने की चुनौती पेश कर दी है। चंदवा की घटना ने साबित कर दिया है कि झारखंड में नक्सली कमजोर हुए हैं, लेकिन उनका पूरी तरह खात्मा अभी नहीं हुआ है। चंदवा की घटना ने यह भी साफ किया है कि पुलिस को अभी बहुत काम करने की जरूरत है। इस घटना की पृष्ठभूमि और पुलिस प्रशासन की चुनौतियों को रेखांकित करती संतोष सिन्हा की खास रिपोर्ट।
झारखंड की राजनीति में अटूट गठबंधन माने जानेवाले आजसू और भाजपा का रिश्ता भले ही टूट चुका हो और दोनों फ्रेंडली फाइट में उतर गये हैं, लेकिन अब तक का मुकाबला यही बता रहा है कि दोनों दल एक ही लक्ष्य को लेकर चल रहे हैं और दोनों एक-दूसरे को कठघरे में खड़ा करने से बच रहे हैं। राजनीति और चुनाव में अक्सर फ्रेंडली फाइट को बड़े ही कौतूहल भरी नजर से देखा जाता है और पूछा जाता है कि जब फाइट होगी, तो वह फ्रेंडली कैसे हो सकती है। इस बार झारखंड में भाजपा और आजसू इस फ्रेंडली फाइट का मतलब समझाने में लगी हैं। दोनों दल जहां एक-दूसरे के खिलाफ बोलने से बच रहे हैं, वहीं दोनों अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हुए हैं। भाजपा और आजसू के बीच दोस्ताना संघर्ष के बारे में दयानंद राय की खास रिपोर्ट।
Mumbai: महाराष्ट्र की सियासत शनिवार सुबह कुछ ऐसी बदली जिसकी कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। बीजेपी ने रातोंरात…
मो इरफान चंदवा। नक्सलियों ने चुनाव से ठीक पहले बड़ी घटना को अंजाम दिया। शुक्रवार देर शाम चंदवा थाना से…
भाजपा प्रत्याशियों के नामांकन में शामिल हुए रघुवर, ताबड़तोड़ सभाएं की
चंदवा। भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने शुक्रवार को लातेहार के चंदवा में चुनावी जनसभा को संबोधित किया।…
जरूरतें व्यक्ति को बदल देती हैं और प्लेटफॉर्म यदि राजनीति का हो, तो यहां कुछ भी असंभव नहीं है। यह झारखंड की राजनीति में बदलते समीकरणों का ही कमाल है कि यहां दो धुर विरोधी दल बदलने के बाद राजनीति का अपना तेवर और सुर दोनों बदल चुके हैं। ये सभी नयी भूमिका में नजर आ रहे हैं। बरही विधायक मनोज यादव जब तक कांग्रेस में थे, तो पानी पी-पीकर भाजपा की नीतियों को कोसते थे, आज वह उसी भाजपा के टिकट पर चुनाव के मैदान में हैं और कांग्रेस को कोस रहे हैं। वहीं भाजपा के उमाशंकर यादव अब कांग्रेस में हैं, तो उनके सुर बदल गये हैं। कभी खांटी कांग्रेसी रहे सुखदेव भगत अब भाजपा में आने के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव से दो-दो हाथ करने के साथ नीरू शांति भगत के खिलाफ भी ताल ठोक रहे हैं। वहीं पाकुड़ के अकील अख्तर, जो जब तक झामुमो में रहे, तब तक कट्टर भाजपा विरोधी रहे, लेकिन अब आजसू में आने के बाद और पार्टी का प्रत्याशी बनाये जाने के बाद उनकी भाषा पूरी तरह बदल चुकी है। चुनाव के मैदान में आमने-सामने होने के बाद नीरा यादव और शालिनी गुप्ता भी बदले और आक्रामक तेवर के साथ एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर रही हैं। झारखंड की राजनीति में दलबदल करके आये नेताओं और दलों का रवैया यह दर्शाता है कि यहां न तो कोई दुश्मन होता है और न कोई दोस्त। यह जरुरतें होती हैं जो विभिन्न दलों को एक-दूसरे का दोस्त बनने या फिर दुश्मन का लाबादा ओढ़े रहने पर विवश करती हैं। झारखंड की राजनीति में पाला बदलने के बाद नेताओं के बदले बोल और उसके कारणों की पड़ताल करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
देखना अब यह है कि जनता इन्हें चुनावी स्वाद किस प्रकार चखाती है
70 साल तक झारखंड को छला गया, पांच साल में रघुवर सरकार ने क्रांतिकारी कदम उठा कर सिर्फ विकास किया
झाविमो सुप्रीमो बोले, हमारी सरकार बनी, तो कोई बेरोजगार नहीं रहेगा