हर दिन झारखंड में विपक्षी दलों के महागठबंधन की बात होती है। सुबह-सबेरे हर दल कभी न कभी इसकी चर्चा कर ही देता है। लेकिन इसकी सच्चाई यही है कि यहां कभी मजबूत महागठबंधन बना ही नहीं। चुनावी वैतरणी पार करने के लिए कुछ दलों की बैठक हुई और महागठबंधन शब्द का उच्चारण कर लिया गया। हां, भाजपा को जवाब देने के लिए जरूर महागठबंधन की रट लगायी जाती रही, लेकिन तल्ख सच्चाई यही है कि विपक्षी दलों के बीच कभी मजबूत गठबंधन हुआ ही नहीं। हां, गांठ-गांठ का बंधन जरूर हुआ। यानी साथ में दल तो बैठे, लेकिन दिल नहीं मिले। इसके पीछे का असली कारण यही है कि विपक्ष का कोई दल अपना नुकसान कर महागठबंधन को स्थापित करने की जोखिम नहीं उठाना चाहता। सभी चाहते तो हैं कि चुनाव में महागठबंधन का लाभ उन्हें मिले, लेकिन वे महागठबंधन में शामिल दलों को कैसे लाभ पहुंचायें, इस पर कभी कोई सीरियस नहीं हुआ। अब तो विधानसभा चुनाव सिर पर है। जैसे-जैसे दिन करीब आ रहे हैं, दलों की गांठ ज्यादा बड़े आकार में सामने आ रही है। करीब दो महीने में झारखंड में विधानसभा के चुनाव होने हैं। मगर महागठबंधन में शामिल दल अब भी अपने-अपने राग अलाप रहे हैं। लोकसभा चुनाव के समय एक कोशिश हुई थी कि महागठबंधन का प्रभाव देखने को मिले। लेकिन चुनाव बाद आये परिणाम ने एक दूसरे के सामने सबको नंगा कर दिया। महागठबंधन के नेता एक-दूसरे पर ही हार का ठिकरा फोड़ने लगे। यह सिर्फ दूसरे दलों तक सीमित नहीं रहा, दल के अंदर भी नेताओं का आरोप एक-दूसरे के खिलाफ लगने लगा। यह सिलसिला यहीं नहीं थमा। समय के साथ उसमें कटुता बढ़ती गयी। अब तो एक-दूसरे के खिलाफ तीखी वाणी के तीर भी चलाने लगे हैं। नेताओं के बोल ने एक साथ चलने पर संशय खड़ा जरूर कर दिया है। कारण महागठबंधन के नेताओं को अपना अस्तित्व बचाने की चिंता भी साल रही है। इसी कारण वह महागठबंधन में रहना तो चाहते हैं, लेकिन खुद का फायदा ज्यादा कैसे हो, सब इसी में लगे हैं। बात चाहे सीट शेयरिंग की हो या फिर विधानसभा में जीत हासिल करने की। नेताओं को बखूबी पता है कि महागठबंधन होने पर भी वोट बैंक दूसरे दल में शिफ्ट नहीं हो पाता है। इसका उदाहरण बीता लोकसभा का चुनाव है।
लोकसभा चुनाव के बाद महागठबंधन के दलों की अलग-अलग हुई बैठकों में यह बात सामने आयी कि उसके कैडरों का वोट ट्रांसफर हुआ, लेकिन अन्य विपक्षी दल उनके उम्मीदवारों को वोट ट्रांसफर नहीं करा पाये। खासकर झामुमो-कांग्रेस के भितरखाने में यह आवाज भी उठी है कि विधानसभा चुनाव अलग होकर लड़ा जाये, हालंकि शीर्ष नेतृत्व इसके फेवर में नहीं दिख रहा है। इसी पर प्रस्तुत है राजीव की विशेष रिपोर्ट।
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फिल्मों में कमाई का जो रिकार्ड एसएस राजमौली की प्रभाष स्टारर फिल्म बाहुबली ने बनाया। सदस्य संख्या के लिहाज से कुछ उसी तरह का कीर्तिमान देश और झारखंड में सत्तारूढ़ भाजपा ने बनाया है। झारखंड में उसके सदस्यों की संख्या 41 लाख पहुंच गयी है। इनमें 23 लाख पहले से सदस्य हैं और 18 लाख लोगों को पार्टी ने सदस्यता अभियान चला कर जोड़ा है। देश के स्तर पर बात करें, तो 18 करोड़ से अधिक सदस्यों वाली भाजपा देश की इकलौती सबसे बड़ी पार्टी है। सदस्यों के लिहाज से झारखंड में भी भाजपा नंबर वन पार्टी हो गयी है, क्योंकि पार्टी के लाखों सदस्यों के बाहु का बल तो पार्टी में समाहित हो ही गया है। देश के साथ झारखंड में भी भाजपा बाहुबली हो गयी है। खास तो यह है कि पार्टी ने यह सफलता बहुत कम दिनों मेंं हासिल की है और भाजपा से जुड़ने का उत्साह आम लोगों में भी लगातार बढ़ रहा है। एक ओर विभिन्न दलों के नेता दूसरी पार्टी से भाजपा में आ रहे हैं, वहीं भाजपा के सदस्य बनने वाले लोग इसकी मेंबरशिप को फेसबुक पर शेयर भी कर रहे हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने कहा कि हमने 25 लाख नये सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा था और अब तक लगभग 18 लाख नये सदस्य बन चुके हैं। भाजपा आॅफलाइन और आॅनलाइन मोड में सदस्य बना रही है और इसके सत्यापन का काम भी चल रहा है। इतने सदस्य बनाने के पीछे भाजपा की क्या है रणनीति और उसका कितना असर पड़ेगा चुनावों पर, प्रकाश डाल रहे हैं वरीय संवाददाता दयानंद राय।
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