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झारखंड एकेडेमिक काउंसिल ने 10वीं, जिसे आम बोलचाल में मैट्रिक कहा जाता है, का परिणाम जारी कर दिया है और साथ ही इस परीक्षा के टॉपरों की सूची भी जारी कर दी है। इस परिणाम से एक बात साफ तौर पर नजर आती है कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती। प्रतिभा को चमकने के लिए न तो बड़े स्कूलों की जरूरत है और न ही अच्छी लाइब्रेरी की। उसे बस केवल अवसर चाहिए और उस अवसर को पहचान कर प्रतिभा को तराशनेवाला। इस बार की टॉपर सूची में कुल 34 विद्यार्थियों ने जगह बनायी है, जिनमें विश्व प्रसिद्ध नेतरहाट स्कूल के दर्जन भर

गुरुवार नौ जुलाई को दुनिया की नाभि कहे जानेवाले उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में जैसे ही एक व्यक्ति ने चिल्ला कर कहा, मैं हूं विकास दुबे, कानपुर वाला, आजाद भारत के इतिहास के संभवत: सबसे दुर्नाम अपराधी को दबोचने की एक सप्ताह से चल रही कवायद थम गयी। विकास दुबे पिछले एक सप्ताह से उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ आंख-मिचौली खेल रहा था और सात राज्यों में उसकी तलाश में 10 हजार से अधिक पुलिसवाले लगे थे। इस

झारखंड में कोरोना का संक्रमण खतरनाक रूप से बढ़ रहा है और अब यह खूबसूरत प्रदेश इस खतरनाक वायरस के चंगुल में बुरी तरह जकड़ता नजर आ रहा है। पिछले साढ़े तीन महीने की कवायद लोगों की लापरवाही के कारण विफल होती दिख रही है। सरकार, मुख्यमंत्री, प्रशासन और चिकित्सकों-विशेषज्ञों की बार-बार की चेतावनी के बावजूद झारखंड के लोग अब

झारखंड एक बार फिर चर्चा में है और यह चर्चा इसके उन माननीयों की वजह से हो रही है, जो सरकारी बंगले का मोह नहीं छोड़ रहे हैं। मंत्री बने, तो अपने नाम एक बंगला आवंटित करा लिया, उसमें लाखों-करोड़ों खर्च कर अत्याधुनिक सुविधाएं लगवा लीं, बंगले की खाली जमीन पर खेती करने लगे और गाय-भैंस का तबेला भी बनवा लिया। मंत्री पद से हटे, तो अब सरकारी बंगला खाली करने के लिए तैयार नहीं हैं। हाइकोर्ट में याचिका दायर कर दी या फिर अधिकारियों को ताकत दिखाने की चुनौती देने लगे।

देश की सर्वोच्च पंचायत, यानी संसद के निचले सदन, जिसे आम बोलचाल में लोकसभा कहा जाता है, में झारखंड के 14 प्रतिनिधि हैं। पिछले साल मई में हुए आम चुनाव में इन सभी ने जीत हासिल की। इन 14 में से 11 सांसद भाजपा के हैं, जबकि झामुमो, कांग्रेस और आजसू के एक-एक सांसद हैं। हाल के दिनों में इन 14 सांसदों में से केवल एक बेहद सक्रिय न

झारखंड में जमीन की राजनीति खूब होती है। यहां उस ‘जमीन’ की बात नहीं होती, जिसे जनता से जुड़ाव के अर्थ में लिया जाता है, बल्कि उस ‘जमीन’ की बात हो रही है, जिस पर अट्टालिकाएं खड़ी होती हैं और उद्योग-धंधे लगते हैं, यानी रीयल इस्टेट की। आज से करीब 20 साल पहले जब झारखंड बना, तो यहां दो चीजें बहुत तेजी से उभरीं और फैलती चली गयीं।

आज भारत के लिए और इसके 130 करोड़ लोगों के लिए गौरव का दिन है। पिछले 18 दिन से अपने 20 जांबाजों की शहादत से गुस्से में उबल रहे देश की छाती को आज तीन जुलाई को उस समय बड़ा सरप्राइज मिला, जब प्रधानमंत्री खुद सीमा की रक्षा में जुटे मां भारती के सपूतों से मिलने लेह पहुंच गये। प्रधानमंत्री ने देश को जहां बड़ा सरप्राइज दिया है, वहीं दुश्मनों को साफ चेतावनी दे दी है कि यह नया भारत है, जो किसी की हेकड़ी को बर्दाश्त नहीं करेगा।

कोयले की कमर्शियल माइनिंग के खिलाफ कोयला उद्योग में तीन दिवसीय हड़ताल शुरू हो गयी है। बहुत दिनों के बाद यह पहला मौका है, जब मजदूर संगठन किसी मुद्दे पर एकजुट हुए हैं और हड़ताल के कारण गुरुवार को कोयले का उत्पादन और डिस्पैच पूरी तरह बंद रहा। कोयला उद्योग में इस हड़ताल का झारखंड में खासा महत्व है, क्योंकि देश को ऊर्जा के इस प्रमुख स्रोत की सबसे बड़ी आपूर्ति यहीं से होती है। स्वाभाविक तौर पर कोयले का झारखंड की राजनीति पर भी गहरा असर रहता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में बड़ा एलान किया। उन्होंने कोरोना संकट के कारण देश में चल रही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को नवंबर तक जारी रखने की घोषणा की, जिसके तहत देश भर के 80 करोड़ जरूरतमंद लोगों को अगले पांच महीने तक मुफ्त राशन मिलता रहेगा। प्रधानमंत्री की इस घोषणा का चारों तरफ स्वागत हुआ है, लेकिन क्या किसी ने इस बात पर ध्यान दिया कि यह मांग सबसे पहले झारखंड से

झारखंड पुलिस के माथे पर कई कलंक लगे हुए हैं और समय-समय पर इन्हें धोने का ईमानदार प्रयास भी होता है। एक संगठन के रूप में झारखंड पुलिस का काम देश के अन्य राज्यों की पुलिस से अच्छा नहीं तो खराब भी नहीं रहा है। लेकिन अपने एक पूर्व डीजीपी के कारण इसके दामन पर जो दाग लगा है, उसने इसे बेहद शर्मनाक स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है।

राजनीति के बारे में बहुत पुरानी कहावत है कि इसमें न कोई स्थायी दोस्त होता है और न कोई स्थायी दुश्मन। परिस्थितियों के हिसाब से नफा-नुकसान तौल कर राजनीतिक रिश्ता बनता-बिगड़ता है। झारखंड में तो यह हिसाब-किताब और भी तेजी से बदलता रहा है। यही कारण है कि एक साल पहले लोकसभा चुनाव में जिस भाजपा ने आजसू के लिए अपनी सीटिंग सीट गिरिडीह छोड़ दी थी, उसी के साथ छह माह बाद विधानसभा चुनाव में रिश्ते तार-तार हो गये और दोनों अलग