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राजनीति केवल अवसरवादिता का खेल नहीं है। यदि ऐसा होता, तो राजनीतिक दलों के लिए अवसरों की कमी कभी नहीं रही, लेकिन बहुत से अवसर पर इसका लाभ उठाने की उन्होंने नहीं सोची, क्योंकि इसके दूरगामी परिणाम ठीक नहीं होते। झारखंड में भाजपा शायद राजनीति के इस गूढ़ मंत्र को भूल गयी है। तभी पार्टी ने अपने बाहुबली विधायक ढुल्लू महतो के पक्ष में बयान देकर पूरी पार्टी को नये विवाद में डाल दिया है। राज्यसभा चुनाव में पार्टी के विधायकों का अभी क्या महत्व है, इसे तो आसानी से समझा जा सकता है, लेकिन भाजपा ने एक ऐसा मु

आजाद सिपाही संवाददाता रांची। वैश्विक महामारी कोरोना के मद्देनजर ग्रामीण इलाकों में प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत ज्यादा मानदेय…

24 मार्च को जब कोरोना महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन का एलान किया गया था, झारखंड में संक्रमण का कोई मामला नहीं था। लेकिन आज यह संख्या एक हजार के पार जा चुकी है और अगले 24 घंटे में लॉकडाउन खत्म होने का पहला चरण, यानी अनलॉक-1 शुरू होनेवाला है। यह झारखंड के लिए बेहद खतरनाक और चिंतनीय स्थिति है, क्योंकि यहां जिस रफ्तार में संक्रमितों की संख्या बढ़ रही है, राज्य की तबाही की आशंका उतनी ही बलवती हो

झारखंड को जब पहली बार राजनीति की प्रयोगशाला कहा गया, तो बहुत से लोगों को इस पर आपत्ति हुई, लेकिन दो दिन पहले जब राज्य विधानसभा में सदन की विभिन्न समितियों के सभापतियों और सदस्यों की बैठक में कहा गया कि राज्य के अधिकारी इन समितियों को तवज्जो नहीं देते, तो उस कथन की सत्यता का एहसास लोगों को हुआ। यह बात कल्पना से परे है कि राज्य की सबसे बड़ी पंचायत की समितियों को अधिकारी महत्व नहीं देते और उसके बुलावे पर उपस्थित होने की जहमत तक नहीं उठाते। यह झारखंड में ही संभव है, क्योंकि अपने स्थापना काल से ही इस राज्य में कई राजनीतिक प्रयोग हुए हैं। हालांकि पांचवीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव के बाद

सवा दो महीने के लॉकडाउन के बाद झारखंड में राज्यसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ने लगी है। दो सीटों के लिए 19 जून को होनेवाले चुनाव में तीन उम्मीदवार मैदान में हैं और इसी कारण सियासी दांव-पेंच का दौर शुरू हो गया है। पिछले साल दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद झारखंड का यह पहला सियासी खेल है, जिसका मंच लॉकडाउन शुरू होने से पहले ही सज गया था, लेकिन कोरोना ने इस पर अस्थायी रूप से पर्दा गिरा दिया था।

कोरोना के कारण सवा दो महीने के लॉकडाउन से सर्वाधिक प्रभावित प्रवासी मजदूर रहे। सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर से भारी मुसीबतों का सामना कर घर लौटनेवाले इन प्रवासी मजदूरों की सबसे बड़ी चिंता रोजी-रोटी की है। झारखंड में करीब साढ़े छह लाख मजदूर लौट चुके हैं और इनमें से अधिकांश ने अब कभी बाहर नहीं जाने की बात कही है। ऐसे में इनके लिए काम की व्यवस्था करना राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती थी।

कोरोना संक्रमण के कारण सवा दो महीने से जारी लॉकडाउन अब चरणबद्ध ढंग से अनलॉक किया जा रहा है। इसके साथ ही झारखंड का जनजीवन पटरी पर लौटने लगा है। लॉकडाउन के दौरान राजनीतिक गतिविधियों पर भी विराम लग गया था, हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए राजनीतिक दल अपनी सक्रियता बनाये हुए थे। अब स्थिति सामान्य होने के बाद इसमें तेजी आयेगी। सबसे पहले 19 जून को राज्यसभा चुनाव है, जिसमें सत्ताधारी झामुमो-कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच जबरदस्त रस्साकशी देखने को मिलेगी।