अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने कहा है कि भारत सहित एशियाई देशों की मदद की मदद के लिए अमेरिकी सेनाएंं तैनात की जाएंंगी। उन्होंने कहा है कि जिस तरह एशिया में चीन की हठधर्मिता बढ़ती जा रही है, चीनी हस्तक्षेप का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अमेरिकी सेनाओं को तैनात किया जाना ज़रूरी हो गया है।
अमेरिका यह क़दम उस समय उठा रहा जबकि चीन ने लद्दाख में गलवान घाटी में अपनी सेनाएंं तैनात कर रखी हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री का कथन है कि चीन भारतीय सेनाओं को उकसा रहा है। वह खलनायक है।
दक्षिण चीन सागर के इर्द गिर्द अन्तरराष्ट्रीय जलमार्ग में चीनी सेनाओं का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, तो दूसरी ओर भारत-चीन से सटी सीमाओं पर भी चीनी सेनाओं का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है। चीन ने दक्षिण चीन सागर में विभिन्न स्थलों पर अपने सैनिक अड्डे बना लिए हैं, जबकि उसकी पनडुब्बियांं गहरे सागर मालवाहक जहाज़ों के आवागमन में बाधाएंं खड़ी कर रही हैंं।
पोंपियो ने कहा कि इस संदर्भ में वह अमेरिकी रक्षा मंत्री मार्क एस्पर से बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी सेनाएंं भारत सहित मलेशिया, इंडोनेशिया और फ़िलिपींस में भेजी जाएंंगी। उन्होंने कहा कि रूस के अतिक्रमण के मद्देनज़र यूरोप में ख़ास तौर पर जर्मनी में अमेरिका के 52 हज़ार अमेरिकी सैनिक तैनात हैं। इनमें से आधी संख्या यानी 25 हज़ार अमेरिकी सेनाओं को एशिया में तैनात किया जा सकेगा। इसके लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सहमति है। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में अमेरिकी सेनाएंं भेजे जाने से पहले सम्बद्ध देशों से बातचीत की जाएगी।
हालांकि अमेरिका के इस निर्णय पर जर्मनी सहित यूरोप में विरोध हो रहा है। जर्मनी नाटो सदस्य देश है, लेकिन पिछले कुछ समय से जर्मनी नाटो को अपनी जी दी पी का दो प्रतिशत अंश नहीं डे पा रहा है। इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति नाराज़ बताए जा रहे हैं।