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    370 मुक्त जम्मू कश्मीर  भारत की दूसरी आजादी है

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskAugust 12, 2019No Comments11 Mins Read
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    आज भारत हिमालय की तरह ऊंचा खड़ा है और इसकी चाल रॉयल बंगाल टाइगर जैसी है

    तारक फतेह
    पिछले सोमवार को भारतीय उप महाद्वीप में उस समय बड़ी घटना हुई, जब भारत सरकार ने अपने एकमात्र मुस्लिम बहुल प्रदेश् जम्मू कश्मीर को दिया गया विशेष दर्जा वापस ले लिया। ऐसा करके भारत ने इस्पात की रीढ़ दिखायी है, क्योंकि यह अरब, तुर्की, फारसी और अफगान इस्लामी आक्रमणों के बाद पुर्तगाली, फ्रांसीसी और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के एक हजार साल बाद किया गया, जबकि इस दौरान उस राज्य को केवल एक व्यंजन बना कर रखा गया था।

    आज भारत हिमालय की तरह ऊंचा खड़ा है और उसकी चाल रॉयल बंगाल टाइगर जैसी शानदार है।उम्मीद के अनुरूप, पाकिस्तान ने इस मामले में भारत के इस्लाम धर्मावलंबियों का स्वघोषित रक्षक मानते हुए हस्तक्षेप किया है। सेना के समर्थन वाले प्रधानमंत्री इमरान खान ने यह कहते हुए कि भारत द्वारा अपने संप्रभु क्षेत्र में लिये गये फैसले को वापस नहीं लेने पर परमाणु हमले की धमकी को बड़ी मुश्किल से छिपाया है।

    खान ने पाकिस्तान की संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए कहा, यदि हम अपने खून के आखिरी कतरे तक युद्ध करते हैं, तो वह युद्ध कौन जीतेगा? वह युद्ध कोई नहीं जीतेगा और इसका पूरी दुनिया पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। अपने गरजने वाले अंदाज और दुनिया में परमाणु विनाश की धमकी को नरम करते हुए उन्होंने यह कहते हुए लोगों को मूर्ख बनाने की नाकाम कोशिश की, यह परमाणु ब्लैकमेल नहीं है।

    इसके बाद खान ने नस्लीय कार्ड खेला: उन्होंने (भारत सरकार) कश्मीर में जो कुछ किया है, वह उनके आदर्शों के अनुरूप है। उनका आदर्श नस्लीय है, जिसमें हिंदुओं को दूसरे धर्मों के ऊपर बताया गया है और उसमें एक ऐसे देश की स्थापना की कल्पना है, जिसमें अन्य सभी धार्मिक समूहों को बलपूर्वक खत्म कर दिया जाये।

    भारत के दो फैसले इसके संविधान के दो अनुच्छेदों को बदलने के माध्यम से किये गये हैं, जिन्हें देश की संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिल गयी है। पाकिस्तान द्वारा परमाणु युद्ध की धमकी देने के बाद इस तथ्य का पता चलता है कि इस देश को आतंकवाद का प्रायोजक यूं ही नहीं कहा जाता, बल्कि यह विश्व शांति के लिए खतरा है, क्योंकि यहां की सरकार सेना के समर्थन से कभी स्वाधीन रहे देश बलूचिस्तान पर कब्जा कर वहां रह रहे अपने ही लोगों का जनसंहार कर रहा है।

    भारत के इतिहास की अपनी विशिष्टता है। सातवीं और आठवीं शताब्दी के दौरान इस्लामी विस्तारवाद के कारण फारसी और मिस्र की सभ्यता के नष्ट होने के बावजूद भारत का हिंदू समाज खुद को संरक्षित रख सका, जबकि अरब के आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम और बाद में तैमूर लंग और मुगल जैसे हत्यारों और बाद में ब्रितानियों ने इसकी पूरी संपत्ति लूट ली और पांच हजार साल पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता को नेस्तनाबूद कर दिया।

    अंतत: 1947 में जब वे अंतिम रूप से विदा हुए, तब ब्रितानियों ने भारत की इस प्राचीन भूमि को तीन हिस्सों में बांट कर इसकी बांह को काट दिया। इसमें भारत की पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर इस्लामी देश पाकिस्तान को खड़ा कर दिया।

    कागजों पर भारत को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली, लेकिन धरातल पर यह आध्यात्मिक भूमि सोमवार तक पूरी तरह आजाद नहीं हो सकी थी।

    अच्छे विश्वास में काम करते हुए और अपने मुस्लिम अल्पसंख्यकों को समाहित कर भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए इसके हिंदू नेताओं ने अपनी विरासत से दूरी बनाये रखी। भारत के पहले शिक्षा मंत्री मक्का के ऐसे परिवार से आते थे, जो खुद को पैगंबर मोहम्मद का सीधा वंशज कहता था।

    दरअसल भारत दुनिया का एकमात्र सभ्यता वाला देश है, जहां आपको अपनी धरोहरों से घृणा करना और जिन आक्रमणकारियों ने इसे बर्बाद किया, उनकी प्रशंसा करना चरणबद्ध ढंग से सिखाया जाता है। और इस मूर्खतापूर्ण हरकत को यहां धर्मनिरपेक्षता कहा जाता है।

    यहां जो कोई भी भारत के हिंदू धरोहरों, इसकी मूल और आदिम आबादी के अधिकारों के लिए खड़ा होता है, जो अपने प्राचीन वैदिक कथनों पर गर्व करता है, उसे धुर दक्षिणपंथी हिंदू राष्टÑवादी कह कर गाली दी जाती है, जबकि जो कोई अरब के ‘गजवा ए हिंद’ के तहत भारत के पूर्ण इस्लामीकरण और इसके प्रत्येक हिंदू मंदिर के उन्मूलन की बात प्रचारित करता है, वह इस नफरत को अपने धर्म के प्रचार का अधिकार होने का दावा करता है।

    लेकिन बॉब डायलन के शब्दों में अब समय आ गया है कि यह सब बदल रहा है। भारत ने इसकी धरोहरों का उपहास उड़ानेवालों और नुकसान पहुंचाने की इच्छा रखनेवालों के पंजों से आजादी हासिल कर ली है।

    इस नयी आजादी में भारत के हिंदू, मुस्लिम, सिख और इसाई कानून के समक्ष बराबर होंगे और ‘विशेष दर्जे’ के पीछे छिप नहीं सकेंगे।

    क्या आरएसएस-विहिप ने मुस्लिमों को यूपीएससी की परीक्षा में शामिल होने से रोका है?

    जफर सरेशवाला

    मैं मुसलमानों से कहना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार न हिंदुओं की है और न मुसलमानों की। मई में लोकसभा चुनाव में जबरदस्त जनादेश के बाद उनके द्वारा दिये गये सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के मंत्र के प्रति मोदी बेहद प्रतिबद्ध हैं।

    कई साल पहले, जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे, मोदी ने मुझसे कहा था कि यदि अहमदाबाद में एक सौ सड़कें बनी हैं और उनमें से 11 मुस्लिम इलाकों में नहीं बनीं, तो आप मुझे जिम्मेदार ठहरा सकते हैं और दोषी बता सकते हैं। अहमदाबाद में हर मुस्लिम मुहल्ला बीआरटी (बस रैपिड ट्रांजिट) प्रणाली से आच्छादित है।

    भाजपा भले ही कुछ भी कहे, लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि सरकार के काम करने का तरीका पार्टी से अलग होता है। यह महत्वपूर्ण है कि पार्टी पदाधिकारियों की बातों को तवज्जो दी जाये, बल्कि फोकस इस बात पर होना चाहिए कि सरकार ने मुस्लिमों के लिए क्या किया। और जहां तक विकास कार्यों की बात है, कहीं से कोई पक्षपात नहीं किया गया है।

    मैं अपने समुदाय के लोगों से कहता हूं कि उन्हें सोशल मीडिया पर मुस्लिमों के बारे में कही जाने वाली बेकार की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, क्योंकि उनका कोई महत्व नहीं है।

    गृह मंत्री अमित शाह ने भाजपा के बड़बोले नेताओं को अच्छी तरह से काबू में किया है। गिरिराज सिंह और प्रज्ञा सिंह ठाकुर अब शांत पड़ गये हैं। यह सरकार चार-पांच लोग चला रहे हैं, जिनमें नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, रविशंकर प्रसाद और पीयूष गोयल शामिल हैं। बाकी सारे लोग महत्वहीन हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कप्तान मोदी है, जिनकी सोच एकदम स्पष्ट है।

    मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं होती रहेंगी, लेकिन हमें इससे भयभीत होने की जरूरत नहीं है।

    मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व

    मेरी प्रमुख दलील यह है कि मुस्लिमों को वास्तविक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसमें सबसे प्रमुख है शिक्षा। क्या आरएसएस और विहिप ने आपको यूपीएससी की परीक्षा में शामिल होने से रोक रखा है। समस्या यह है कि मुस्लिम खुद ही इन परीक्षाओं में नहीं बैठते। मामूली प्रयास से ही मुस्लिम अच्छा परिणाम हासिल कर सकते हैं।

    2015-16 तक केवल 38-39 मुस्लिम ही हर साल यूपीएससी की परीक्षा में सफल होते थे। मैं आठ-10 वैसे संस्थानों में गया, जहां मुस्लिमों को यूपीएससी परीक्षाओं के लिए तैयार किया जाता है। उनमें से एक ने भी यह नहीं बताया कि उनके पास 10 हजार से अधिक आवेदक हैं।

    जब आप परीक्षा में बैठेंगे ही नहीं, तब आप केंद्रीय प्रशासन में मुस्लिमों के कम या केवल ढाई प्रतिशत प्रतिनिधित्व की शिकायत कैसे कर सकते हैं। इसी तरह हर साल आइआइटी में दाखिला पाने के लिए लाखों अभ्यर्थी जोर लगाते हैं, लेकिन उनमें से मुस्लिम कितने होते हैं? कैट की परीक्षा में कितने मुस्लिम शामिल होेते हैं? आजकल तो हर सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा होती है, चाहे वह बैंक हो या सशस्त्र बल। जब चयन का आधार प्रतिभा है, तो मुस्लिमों को इन परीक्षाओं में शामिल होने से कौन रोक रहा है?

    जहां तक कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात है, तो यह तो आजादी के बाद से ही चल रहा है। 1952 में भी मुस्लिम प्रतिनिधित्व दो प्रतिशत था, जबकि 1984 में यह आठ प्रतिशत हो गया। यहां तक कि जब कांग्रेस ने बड़े जनादेश के साथ शासन किया, इसने बड़ी मुश्किल से मुस्लिमों को टिकट दिया। इसलिए यह उम्मीद करना कि भाजपा ऐसा करेगी, मूर्खता के अलावा कुछ नहीं है। राजनीतिक प्रतिनिधित्व या प्रशासनिक प्रतिनिधित्व में से मुस्लिमों को बाद वाले पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

    मुस्लिमों को मेरी सलाह यह है कि वे ड्राइंग बोर्ड के पास वापस जायें। एक समुदाय के रूप में हमें शिक्षा पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए, हमें इस मुद्दे पर बहुत काम करना है। हमें सरकार की जरूरत केवल अंतिम चरण में होगी।

    मॉब लिंचिंग कोई नयी चीज नहीं है

    लोगों की याददाश्त कमजोर होती है और मॉब लिंचिंग या दंगे की खबर दो-तीन दिन तक ही रहती है।

    अखलाक वाली घटना जिस समय सामने आयी, मैं दादरी गया। उसका छोटा बेटा भीड़ की पिटाई से बुरी तरह घायल हो गया था और उसकी खोपड़ी की हड्डी टूट गयी थी।

    लोगों को यह पता नहीं है कि अखलाक के छोटे बेटे का इलाज भाजपा सांसद महेश शर्मा के अस्पताल में हुआ। शर्मा ने स्विटरलैंड से एक विशेषज्ञ को बुलाया, ताकि उसका ठीक से इलाज हो सके। अखलाक का बड़ा बेटा भारतीय वायुसेना में था और उसकी इच्छा थी कि उसका तबादला चेन्नई से दिल्ली हो जाये। मैंने अपने संसाधनों का उपयोग किया और आठ घंटे के भीतर ही उसका तबादला हो गया।

    मैं यह कहना चाहता हूं कि जो लोग मृतक के मानवाधिकारों को लेकर हल्ला मचा रहे थे और विलाप कर रहे थे, उनमें से किसी ने भी अखलाक के परिवार से मुलाकात की?

    हम मॉब लिंचिंग से पार नहीं पा सकते। पिछले पांच साल में मॉब लिंचिंग की करीब एक सौ घटनाएं हुई हैं, लेकिन यह कहना कि यह महामारी का रूप ले रही है, गलत है। इसके अलावा मॉब लिंचिंग की इक्का-दुक्का घटनाएं केवल नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ही नहीं हुई हैं। ऐसी घटनाएं तो आजादी के बाद से ही हो रही हैं।

    आज जिसे हम मॉब लिंचिंग कहते हैं, पहले इसे छुरेबाजी कहा जाता था। पहले इसका रंग सांप्रदायिक नहीं था। इन घटनाओं को मॉब लिंचिंग कहना खतरनाक है। यदि मॉब लिंचिंग इतना ही फैला होता, तो मुस्लिमों के लिए बसों-ट्रेनों में यात्रा करना भी असंभव हो जाता।

    मॉब लिंचिंग तभी रुकेगी, जब नफरत भरे विचारों का स्थान मोहब्बत ले लेगा। यहां पहले से ही एक समस्या है, और उस पर प्रतिक्रिया कर हम एक नयी समस्या पैदा कर रहे हैं। मॉब लिंचिंग के बाद हम हिंसात्मक प्रतिक्रिया देने का खतरा नहीं उठायें। इसके बदले मेरी कामना है कि मस्जिदों में मुस्लिमों को भारत के संविधान के प्रावधानों के बारे में बताया जाये।

    सबसे खतरनाक गृह मंत्री पी चिदंबरम

    मुस्लिमों को फंसाने के मामले पर कोई उस पार्टी के बारे में बात क्यों नहीं करता, जिसने पहली बार खतरनाक कानून लागू किया। टाडा को किसने लागू किया? कांग्रेस के शासनकाल में अनेक निर्दोष मुस्लिमों को आतंकवाद और विध्वंसक गतिविधियां (निवारण) कानून (टाडा) के तहत प्रताड़ित किया गया।

    पी चिदंबरम को इतिहास भारत का सबसे खतरनाक गृह मंत्री के रूप में याद रखेगा। उन्होंने गैर-कानूनी गतिविधियां (निरोधक) संशोधन बिल 2011 संसद में पेश किया, जो बाद में कानून बना। वह चिदंबरम के नेतृत्व वाला गृह मंत्रालय था, जिसने 1968 के शत्रु संपत्ति कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया था।

    मैं अमित शाह को तब से देख रहा हूं, जब वह गुजरात के गृह मंत्री थे। उनके कार्यकाल में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। यह सब कुछ सोच पर निर्भर है। इशरत जहां का मामला एक घटना है, लेकिन यदि हम संपूर्णता में गुजरात को देखें, तो जितने दिन वह गृह मंत्री रहे, न कोई दंगा हुआ, न किसी दिन कर्फ्यू लगा। हमें इसे स्वीकार करना चाहिए।

    अमित शाह के भीतर एक व्यापारी का चरित्र है। उन्हें मुस्लिमों से नफरत नहीं है और उन्होंने मुस्लिम बहुल इलाकों से भी चुनाव जीता है।

    भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी और कांग्रेस को धर्मनिरपेक्ष पार्टी के रूप में चित्रित करना बहुत खतरनाक है। जब कांग्रेस सत्ता में होती है, वह सत्ता से बाहर की भाजपा से अधिक खराब होती है। जब वह सत्ता में नहीं होती है, तब उसे अचानक मुस्लिमों की याद आती है और वह मुस्लिमों के बड़े भाई की भूमिका निभाने की कोशिश करती है।

    कुछेक मुस्लिम खुद को बाहरी और पीड़ित मानते हैं, लेकिन यह बहुत ही छोटा वर्ग है। मेरे हरेक कार्यक्रम में मैं उनसे इस पीड़ित मानसिकता से छुटकारा पाने के लिए कहने की कोशिश करता हूं।

    हत्यारे की सोच वाले एक व्यक्ति के बदले हमारी मदद करने के लिए 10 हिंदू हैं। भारत हमारा भी है।

    370-free Jammu Kashmir is India's second independence
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