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दिसंबर में विधानसभा चुनाव के बाद झारखंड में जब सत्ता परिवर्तन हुआ और पहली बार गैर-भाजपा गठबंधन को स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ, राजनीतिक पंडितों ने भविष्यवाणी की थी कि बदलाव का यह दौर कारगर नहीं होगा। लेकिन करीब छह महीने बाद ऐसा लगने लगा है कि हेमंत सोरेन की सरकार व्यवस्थागत खामियों को उजागर करने और उन्हें दूर करने में लग गयी है। इन खामियों ने पिछले 20 साल में झारखंड की कई संस्थाओं को दागदार बना दिया था। राजनीतिक स्थिरता के नाम पर पिछले पांच साल के कालखंड में मुट्ठी भर नौकरशा

रांची । झारखंड में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रभाव के बीच शनिवार को राहत भारी खबर सामने आयी। शनिवार को…

आजाद सिपाही संवाददाता हुसैनाबाद। हुसैनाबाद थाना अंतर्गत दंगवार ओपी के तीन जवानों द्वारा सिवा बिगहा गांव के अवधेश पासवान को…