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विनोबा भावे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रमेश शरण और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बीच गहराता जा रहा है। सोमवार को रांची विश्वविद्यालय परिसर में जो भी हुआ, उससे शिक्षा और उससे जुड़ी मर्यादाएं ही तार-तार नहीं हुईं, बल्कि गुरु-शिष्य का रिश्ता कलंकित हुआ तथा गुरुकुल की परंपरा की हंसी भी उड़ी। कौन गलत है, कौन सही, यह तो सक्षम लोग ही तय कर सकते हैं, पर जो बीज बोये जा रहे हैं, वे छात्र और देश के भविष्य के लिए कहीं से भी उचित नहीं है। मामला अब सिर्फ विवाद भर नहीं रह गया है। पानी सिर से ऊपर जा चुका है। ऐसे में अब सक्षम पदाधिकारियों को यह देखने की जरूरत है कि आखिर चूक कहां है। यदि कुलपति कहीं से भी गलत हैं, तो राज्यपाल को कार्रवाई करनी चाहिए। यदि छात्र गलत हैं, तो भाजपा को उन्हें रोकने की पहल करनी चाहिए। इतना ही नहीं, यदि कुलपति प्रो रमेश शरण को लगता है कि उन्हें विवादों में धसीटा जा रहा है और उनमें स्वाभिमान है, तो आगे बढ़ कर पद छोड़ क्यों नहीं देते। एक महीने से चल रहे इस विवाद पर राजभवन की चुप्पी भी समझ से परे है। कुल मिला कर इस मामले से पूरे देश में झारखंड की ही छवि धूमिल हो रही है। पेश है आजाद सिपाही की विशेष रिपोर्ट।

झारखंड की सत्ता पर काबिज होने के लिए छटपटा रहे झारखंड के सबसे बड़े क्षेत्रीय दल झामुमो अपने पहाड़ जैसे प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले के लिए हर दांव अपना रहा है। लोकसभा चुनाव में अपने गढ़ संथाल की राजधानी दुमका से पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन की हार के बाद यह साफ हो गया कि झामुमो में दिशोम गुरु का युग अब अंतिम सांस ले रहा है। शिबू सोरेन के राजनीतिक उत्तराधिकारी और झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने पार्टी को नये सिरे से खड़ा करने की कवायद तेज भी कर दी है। इस क्रम में उन्होंने झारखंड के सबसे ताकतवर गैर-आदिवासी जातीय समूह कुर्मियों की पार्टी के प्रति नाराजगी दूर करने की कोशिश शुरू की है। इसके तहत उन्होंने जमशेदपुर के आस्तिक महतो को पार्टी का सचिव बना कर कुर्मी समाज को एक संदेश देने की कोशिश की है। आस्तिक की प्रोन्नति से इस धारणा को भी बल मिला है कि झामुमो में अभी गुरुजी का दौर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। हेमंत सोरेन के इस कदम राजनीतिक असर का आकलन करती दयानंद राय की खास रिपोर्ट।

रांची। भाजपा झारखंड की 65 से अधिक विधानसभा सीटों पर कमल खिलाने की तैयारियों में जुटी हुई है। कमजोर विपक्ष और बीते लोकसभा चुनावों में 12 सीटों पर जीत हासिल करनेवाली भाजपा इस लक्ष्य के लिए आत्मविश्वास से लबरेज है। पार्टी के झारखंड चुनाव प्रभारी ओमप्रकाश माथुर और सह प्रभारी भाजपा की 65 प्लस की लक्ष्य की घोषणा भी कर चुके हैं। पार्टी यह लक्ष्य आसानी से हासिल कर पायेगी या यह सिर्फ दावा साबित होगा, यह तो विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे बतायेंगे लेकिन जिस तरह से झारखंड में विपक्ष बिखरा हुआ है, उसमें भाजपा के लिए यह लक्ष्य मुश्किल भी नहीं लगता। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्या होगी भाजपा की रणनीति, इस पर दयानंद राय की विशेष रिपोर्ट।