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झारखंड का नाम टेरर फंडिंग के लिए देश भर में चर्चा में है। एनआइए की जांच इस मामले में चल रही है। कई सफेदपोशों के नाम इस अवैध कारोबार में शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि झारखंड के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को इस अवैध कारोबार की जानकारी नहीं थी। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कई अवसरों पर इस अवैध कारोबार पर रोक लगाने का निर्देश भी जारी किया। मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस बारे में लिखित आदेश भी जारी किया, लेकिन पुलिस अधिकारी उस आदेश पर पालथी मार कर बैठ गये। वे अवैध वसूली रोकने के लिए कभी गंभीर ही नहीं हुए और देखते ही देखते यह घाव नासूर बन गया। राज्य की बदनामी हो रही है, सो अलग। टेरर फंडिंग के इस पूरे खेल को कैसे कुछ पुलिस अधिकारियों के समर्थन से प्रोत्साहन मिला, इस बाबत अजय शर्मा की खास रिपोर्ट।

आज की खबर विशेष में हम चर्चा कर रहे हैं उस कारोबार की, जो न सिर्फ नक्सलियों को आर्थिक मदद पहुंचाता है, बल्कि झारखंड के कुछ अफसरों को भी करोड़पति बना रहा है। इसे कोयला तस्करी कहते हैं। झारखंड में यह बड़ी तेजी से फला फूला है। जिसे जहां भी मौका मिलता है, वह इस अवैध कारोबार में डुबकी लगाने से चूकता नहीं। कोयला तस्करी में अगर एक बार शामिल हो गये, तो वह चाहे कोई भी हो, उसकी आर्थिक दशा बड़ी तेजी से बदल जाती है। इस कारोबार में सफेदपोश, कोयला तस्कर, बड़े व्यवसायी, पुलिस, पत्रकार और नक्सलियों की चौकड़ी शामिल है। पेश है अजय शर्मा की रिपोर्ट।