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आज की खबर विशेष में हम बात कर रहे हैं झामुमो की बदलाव यात्रा की। झामुमो भले ही पूरी तैयारी से बदलाव यात्रा में जुटा हो। चाहे वह लोकसभा में मुंह की खाने के बाद विधानसभा चुनाव में कितनी भी तैयारी या ताकत झोंकने की तैयारी कर रहा हो, पर जब तक झामुमो नेता खुद में बदलाव नहीं लाते, उनकी बदलाव यात्रा असर नहीं छोड़ सकती। जानकारों का कहना है कि झामुमो नेताओं ने लोकसभा चुनाव में मिली हार से अब तक कोई खास सबक नहीं लिया है। अब भी पार्टी चला रहे नेताओं के दरवाजे आम नेता और कार्यकर्ताओं के लिए नहीं खुले हैं। जब तक ये नेता पार्टी के दरवाजों के साथ दिल के द्वार नहीं खोलते, आम लोगों से जुड़ाव संभव नहीं है। आम लोगों एवं कार्यकर्ताओं से बढ़ती दूरी बड़ा कारण है, झामुमो के इस हाल की। कभी संथाल को अपना गढ़ माननेवाले झामुमो को पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा की सेंधमारी और उससे हुए नुकसान का अंदाजा भली भांति है। हालिया लोकसभा चुनावों में पार्टी को केवल एक लोकसभा सीट से संतोष करना पड़ा है। ऐसे में आसन्न विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिए अच्छा प्रदर्शन करना बड़ी चुनौती है। महागठबंधन में उसके सहयोगी रहे दलों में बिखराव और भाजपा के कुनबे का आकार लगातार बढ़ने से पार्टी चिंतित है। पार्टी के विधायक जयप्रकाश भाई पटेल पहले ही विद्रोह कर किनारा कर चुके हैं। उधर, भाजपा 65 प्लस सीटों के लक्ष्य के साथ झामुमो को झारखंड की राजनीति में गौण करने के लिए सधे चाल चल रही है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या झामुमो की बदलाव यात्रा झारखंड की राजनीति में बदलाव ला पायेगी। पेश है दयानंद राय की रिपोर्ट।

झारखंड विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है। भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के साथ-साथ विपक्षी दल भी अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गये हैं और अपनी चुनावी मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त कर रहे हैं। सत्तारूढ़ भाजपा जहां 65 प्लस के लक्ष्य को लेकर विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है, वहीं इसके रणनीतिकार कई अन्य लक्ष्यों पर भी निशाना साध रहे हैं। अभी भाजपा का खास फोकस पांच विधानसभा सीटें हैं, जो उसके कब्जे में नहीं हैं। इन पांच सीटों को अपने कब्जे में करने के लिए भाजपा हर दांव आजमाने के लिए तैयार है। ये पांच सीटें हैं, बहरागोड़ा, बरही, पांकी, हुसैनाबाद और पोड़ैयाहाट। इन पांच सीटों पर कब्जे का उद्देश्य सीधे तौर पर विपक्ष को यादव विहीन करना भी है। इनमें से दो सीटों, बरही और पोड़ैयाहाट पर यादवों का कब्जा है, तो हुसैनाबाद में यादवों का वोट निर्णायक होता है। पांकी और बहरागोड़ा पर कब्जा जमाने से भाजपा का 65 प्लस का लक्ष्य आसान हो जायेगा। इसलिए विधानसभा के आसन्न चुनाव में इन पांच सीटों पर दिलचस्प और रोमांचक मुकाबला देखने को मिलेगा। इन पांच सीटों पर भाजपा के फोकस के कारणों और उद्देश्यों पर प्रकाश डालती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

रांची। झारखंड में नेतृत्वविहीन कांग्रेस डॉ अजय कुमार के इस्तीफे के बाद से कोमा में है। पार्टी की हालत उस नाव की तरह है, जिसकी पतवार अचानक गिर कर पानी में गुम हो चुकी है। बुजुर्ग नेताओं का बोझ ढो रही पार्टी सांस लेने के लिए भी हांफ रही है। पर वर्तमान नेतृत्व और परिस्थितियां पार्टी में नयी सांसों का स्पेश निर्मित होने ही नहीं दे रही हैं। इन परिस्थितियों में संभावना यह है कि पार्टी आलमगीर आलम या सुखदेव भगत में से किसी एक को पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाये और विधानसभा चुनावों में अपनी चुनावी नैया पार लगाये। प्रदेश अध्यक्ष के दावेदार के रूप में एक नाम सुबोधकांत सहाय तो दूसरी नाम खूंटी के कालीचरण मुंडा का भी है, पर इन दोनों पर पार्टी दांव लगायेगी, इसकी संभावना कम है। प्रदेश अध्यक्ष बनने की अधिक संभावना आलमगीर आलम की है, क्योंकि पार्टी में उनका चेहरा ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर हैं। उनके नाम पर विवाद की संभावना नहीं है। वे पार्टी विधायक दल के नेता भी हैं। पार्टी में डॉ अजय से पहले सुखदेव भगत भी अध्यक्ष रह चुके हैं, पर उनके नाम के साथ विवाद जुड़ा हुआ है और पार्टी फिर किसी विवादित चेहरे को नेतृत्व देकर नया बखेड़ा करना नहीं चाहेगी। उनकी कार्यशैली पर प्रदीप बलमुचू ने सवाल उठाये थे। आलमगीर आलम के साथ प्लस प्वाइंट यह है कि अपने इस्तीफे में जिस नेता की डॉ अजय कुमार ने प्रशंसा की है वह आलमगीर आलम ही हैं। अजय ने उन्हें अपना प्रतिष्ठित सहयोगी बताया है। इस पर प्रस्तुत है दयानंद राय  की रिपोर्ट।

जम्मू-कश्मीर पर केंद्र सरकार के फैसले को भारत के अधिकांश मुसलमान अपने खिलाफ हमला मानते हैं। उनकी इस धारणा को बदलने के लिए कई कोशिशें हुईं, लेकिन वे कुछ हद तक ही कामयाब हो सकीं। देश-विदेश के मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने कई बार इस धारणा को पूरी तरह गलत बताया है। इन बुद्धिजीवियों के लेख अधिकांशत: अंग्रेजी में होते हैं, इसलिए वे आम मुस्लिमों तक नहीं पहुंच पाते हैं। आज के विशेष अंक में आजाद सिपाही दुनिया के दो प्रख्यात मुस्लिम बुद्धिजीवियों के विचारों को सामने रख रहा है, ताकि मुसलमान उन्हें पढ़े-गुनें और अपनी धारणा बदलें। ये दो मुस्लिम बुद्धिजीवी हैं तारिक फतह और जफर सरेशवाला। तारिक फतह पाकिस्तानी मूल के कनाडाई पत्रकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं।  वह मुस्लिम कनाडियन कांग्रेस के संस्थापक हैं और इसके प्रवक्ता रह चुके हैं। उनका लेख कनाडा की प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका ‘टोरंटो सन’ के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है। जफर सरेशवाला मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति और इस्लाम विचारक हैं। रेवती कृष्णन के साथ बातचीत पर आधारित उनका लेख चर्चित वेब पत्रिका ‘दि प्रिंट’ के नौ अगस्त के अंक में प्रकाशित किया गया है।

पिछले साढ़े चार साल से दिन-रात झारखंड के विकास की राह तैयार करने में जुटे मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जब राज्य में कृषि आशीर्वाद योजना की घोषणा की थी, तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि यह झारखंड के लिए कितना क्रांतिकारी कदम साबित होगा। शुरुआत में तो इस घोषणा का मजाक उड़ाया जाता था कि इसे कैसे लागू किया जायेगा, 35 लाख किसानों के खातों को एक साथ कैसे लाया जायेगा, इसमें होनेवाले भ्रष्टाचार पर काबू कैसे पाया जायेगा और इससे लाभ क्या होगा। लेकिन ये बातें वैसे ‘विघ्नसंतोषी’ लोग ही कर रहे थे, जिन्हें न खुद पर भरोसा था और न ही उपलब्ध संसाधनों का। 10 अगस्त को यह योजना सफलतापूर्वक लागू हो गयी और राज्य के किसानों के खातों में पैसा भी पहुंच गया। यह केवल रकम नहीं है, बल्कि किसानों का मजबूत संबल है। यह रकम झारखंड के किसानों की दशा-दिशा बदल सकती है और उनके लिए आपातकालीन राहत हो सकती है। मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना लागू करनेवाला झारखंड पहला राज्य है। इसका असली असर तो बाद में नजर आयेगा, लेकिन राजनीतिक तौर पर यह रघुवर दास का मास्टर स्ट्रोक है और प्रशासनिक तौर पर यह पूरे देश के लिए अनुकरणीय प्रयास। मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना के तमाम पहलुओं को समेटती आजाद सिपाही टीम की खास रिपोर्ट।

झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ अजय कुमार ने आखिरकार अपने पद से इस्तीफा दे ही दिया। शुक्रवार को उन्होंने अपना इस्तीफा पार्टी को भेज दिया और साफ कर दिया कि वह इस पद पर नहीं रहना चाहते हैं। डॉ अजय पिछले पौने दो साल से इस पद पर थे। यह तो बाद में तय होगा कि उनका कार्यकाल कैसा रहा, लेकिन एक बात तय है कि कांग्रेस को दोबारा अपने पैरों पर खड़ा करने की कोशिश में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। यह अलग बात है कि पार्टी के नवग्रहों का साया उन पर हमेशा मंडराता रहा और यह साया लोकसभा चुनाव के बाद खुल कर सामने आ गया था। एक कड़क पुलिस अधिकारी के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके डॉ अजय कुमार का कांग्रेसी अवतार चाहे जैसा भी रहा हो, एक बात तो साफ हो गयी कि कांग्रेस की नाव की कप्तानी आसान काम नहीं है। आज की राजनीतिक परिस्थितियों में यह पद और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है, क्योंकि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी की हालत पूरे देश में खस्ता है। डॉ अजय कुमार के इस्तीफे के बाद झारखंड कांग्रेस की भावी रणनीति और इसकी चुनावी संभावनाओं पर आजाद सिपाही के वरीय संवाददाता दयानंद राय की खास रिपोर्ट।

झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है। सभी राजनीतिक दल अपने-अपने वार रूम को चुस्त-दुरुस्त करने में लग गये हैं। इस मोर्चे पर राज्य की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी और सत्ता का दावेदार झामुमो बेहद कमजोर नजर आ रहा है। इसका वार रूम अब तक अस्तित्व में नहीं आया है, क्योंकि इसका केंद्रीय कार्यालय वैसा नहीं है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर सोशल मीडिया और तकनीकी युग में झामुमो पारंपरिक चुनाव प्रबंधन पर ही क्यों निर्भर है। दूसरी पार्टियों को देखें, तो उन्होंने अपने कार्यालयों को अत्याधुनिक संसाधनों से युक्त कर लिया है। उनका कार्यालय हर नजरिये से दफ्तर लगता है, जहां कार्यकर्ता आते हैं, नेताओं से मिलते हैं और पार्टी के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इसके विपरीत झामुमो का अधिकांश कामकाज शिबू सोरेन या हेमंत सोरेन के आवास से होता है और पार्टी की केंद्रीय समिति की बैठक के अलावा हर कार्यक्रम किसी बैंक्वेट हॉल में होता है। इसके कारण झामुमो का सांगठनिक प्रबंधन कमजोर पड़ता जा रहा है। झामुमो की इस कमजोरी और इसके संभावित असर पर आजाद सिपाही के वरीय संवाददाता दयानंद राय की खास रिपोर्ट।

रांची। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मास्टर स्ट्रोक की चर्चा पूरे देश में हो रही है। इस स्ट्रोक से झारखंड में भाजपा जहां महाबली बनती दिख रही है। वहीं विपक्ष में खलबली है। हो भी क्यों नहीं, कारण इसी साल झारखंड में विधानसभा का चुनाव है। ऐसे में विपक्ष जहां सरकार को घेरने और उसकी नीतियों को लपेटकर अपनी पतंग उड़ाना चाह रहा है। ऐसे में मोदी-शाह की जोड़ी ने इनकी पतंग हवा में उड़ने के पहले ही मास्टर स्ट्रोक से काट दिया है। इस कारण विपक्ष के माथे पर है। वहीं कश्मीर से धारा 370 हटाने के फैसले से झारखंड में भी विधानसभा चुनाव में 65 पार का भाजपा का लक्ष्य आसान हुआ है। वैसे, पहले से ही मास्टर प्लान बना कर भाजपा काम कर रही है। ऐसे में मास्टर स्ट्रोक ने झारखंड भाजपा को और बलशाली बना दिया है। विधानसभा चुनाव को लेकर अक्टूबर में आचार संहिता लागू होने की उम्मीद है। राजनीति के गलियारे में इस मास्टर स्ट्रोक की चर्चा खूब है। विपक्ष खेमा भी परेशान है कि ऐन वक्त पर मारे गये इस मास्टर स्ट्रोक का क्या काट निकाला जाये। इस पर प्रस्तुत है राजीव की रिपोर्ट।

जम्मू-कश्मीर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के अटल फैसले का देश के अन्य हिस्सों में भी इंपैक्ट दिखने लगा है। झारखंड में भी इसका राजनीतिक असर अभी से ही दिखना शुरू हो गया है। इसी साल के अंत में होनेवाले विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे झारखंड के विपक्षी दलों पर यह 370 अटैक हुआ है और उनकी जमीन खिसकती नजर आ रही है। यही कारण है कि झारखंड की सत्ता पर काबिज होने के लिए छटपटा रहे झारखंड मुक्ति मोर्चा और झारखंड विकास मोर्चा ने कश्मीर पर हुए फैसले के बाद भाजपा के सुर में सुर मिला लिया है। कांग्रेस के नेता भी इस फैसले का स्वागत ही कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि मोदी सरकार के फैसले ने न केवल भारत के इतिहास में नयी इबारत लिखी है, बल्कि इसने राजनीति को भी नयी दिशा दी है।
कश्मीर पर केंद्र सरकार के फैसले के बाद झारखंड के विपक्षी दलों की हालत और नयी राजनीतिक परिस्थितियों पर आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास पेशकश।