बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम की घोषणा के बाद जब भाजपा ने एनडीए का सबसे बड़ा घटक दल होने के बावजूद नीतीश कुमार को सीएम बनाया, तो इसे राजनीति की नयी परिपाटी की संज्ञा दी गयी। माना गया कि भाजपा ने गठबंधन धर्म का पालन किया है और चुनाव से पहले किये गये वादे के अनुरूप नीतीश को सीएम के पद पर बैठाया है। लेकिन दरअसल खेल इतना भर
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देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के भीतर एक बार फिर तूफान की आहट मिलने लगी है। तारिक अनवर के बाद कपिल सिब्बल ने बिहार में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन को लेकर पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाये हैं, तो राजद नेता शिवानंद तिवारी ने महागठबंधन के पिछड़ने का कारण कांग्रेस को बताया है। पिछले एक साल में यह तीसरा मौका है, जब कांग्रेस के भीतर से बगावत के स्वर फूटे हैं। पहली बार लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ते हुए पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को जिम्मेदार ठहराया था। दूसरी बार पार्टी के 23 वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख कर कार्यसमि
बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में नयी सरकार ने सत्ता संभाल ली है और इसके साथ ही देश में राजनीतिक रूप से सबसे संवेदनशील राज्यों में से एक में सियासत का नया अध्याय भी शुरू हो गया है। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू संख्या बल के हिसाब से तीसरे नंबर पर है, इसलिए मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश की लगातार चौथी और कुल मिला कर सातवीं पारी बेहद चुनौतीपूर्ण होनेवाली है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि नीतीश ने अपने चार दशक लंबे राजनीतिक कैरियर का सबसे चुनौतीपूर्ण सफर का आगाज किया है, जहां उन्हें अपने हर फैसले के लिए अपने सबसे बड़े सहयोगी भाजपा पर निर्भर
हैप्पी बर्थ डे झारखंडहैप्पी बर्थ डे झारखंड। अपना झारखंड 20 साल का हो गया। एक ऐसा युवा राज्य, जिसकी आंखों में तमाम रंगीन सपने हैं, क्षमता है और अपार सभावनाएं हैं। एक आम भारतीय परिवार में जब बच्चा 20 साल का हो जाता है, तो उससे उम्मीद की जाती है कि वह भविष्य की अपनी राह तय कर चुका है और अब उसे उसी रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए परिवार और समाज के समर्थन की जरूरत है, ताकि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके। एक राज्य के रूप में झारखंड ने 20 साल के कालखंड में कई मुकाम हासिल किये हैं, लेकिन यहां के सवा तीन करोड़ लोगों में कहीं न कहीं ‘अबुआ राज’ के
मेहनत जब जीतने के लिए की जाये और नतीजा हार के रूप में सामने आये, तो आत्ममंथन जरूरी होता है। झारखंड विधानसभा की दो सीटों दुमका और बेरमो में हुए उपचुनाव के बाद झारखंड भाजपा को आत्ममंथन की जरूरत है। जरूरत बिहार भाजपा के नेताओं को भी है कि आखिर बिहार विधानसभा चुनाव में जो नतीजे अपेक्षित थे, वे क्यों नहीं आये।
झारखंड विधानसभा ने सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर आदिवासियों के हित में बड़ा कदम उठाया…
बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित किये जा चुके हैं। कांटे के मुकाबले में एनडीए एक बार फिर दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ानेवाले प्रदेश के शासन की बागडोर संभालने के लिए तैयार है। बिहार का चुनाव परिणाम इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाता है कि इसने पिछले छह साल से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मोदी मैजिक के असर को दोबारा स्थापित किया है। इसी मैजिक ने 15 सा
झारखंड की दो विधानसभा सीटों, दुमका और बेरमो में जीत हासिल कर झामुमो और कांग्रेस स्वाभाविक तौर पर बेहद संतुष्ट हैं। इस चुनाव परिणाम से हालांकि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार की सेहत पर कोई अंतर नहीं पड़ा है, लेकिन विधानसभा में सत्ता पक्ष की स्थिति मजबूत होना एक तरह का लाभ ही है। इन दोनों सीटों पर हुए उप चुनाव को जीत कर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी पहली वार्षिक परीक्षा अव्वल नंबरों से पास कर ली है। दूसरी तरफ भाजपा के लिए दिसंबर में हुई पराजय के बाद वापसी की कोशिश को करारा झटका लगा है। पहले ही कहा जा रहा था दुमका-बेरमो जहां हेमंत सोरेन सरकार की परीक्षा है, वहीं भाज
झारखंड की सियासत एक बार फिर गरमा गयी है। इस बार मुद्दा आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड बना है। राज्य में सत्तारूढ़ झामुमो ने इस मुद्दे पर अपना स्टैंड साफ करते हुए इस मांग का समर्थन किया है और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसके लिए विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलाया है। कांग्रेस का इसमें पूरा समर्थन है। लेकिन सबसे आश्चर्यजनक लगती है भाजपा की चुप्पी। कोर कमेटी की बैठक तो हुई, लेकिन उसमें भाजपा ने अपने स्टैंड के पत्ते नहीं खोले। हालांकि पूर्व में भाजपा
झारखंड के तीन मेडिकल कॉलेजों में नामांकन पर नेशनल मेडिकल काउंसिल की रोक का विवाद गहराता जा रहा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एनएमसी को पत्र भेज कर अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। एनएमसी ने कहा है कि दुमका, हजारीबाग और पलामू मेडिकल कॉलेजों में आश्वासन के बावजूद निर्धारित समय में वे सारे संसाधन नहीं जुटाये गये, जिनकी मेडिकल की पढ़ाई में जरूरत होती है। इसलिए इन तीन मेडिकल कॉलेजों में नामांकन नहीं लिया जा सकता। यह
झारखंड सरकार ने देश की प्रतिष्ठित जांच एजेंसी सीबीआइ को बगैर अनुमति राज्य में किसी भी मामले की जांच करने पर रोक लगा दी है। ऐसा करनेवाला झारखंड सातवां राज्य है, लेकिन इस फैसले के साथ एक गंभीर सवाल यह पैदा हो गया है कि क्या भारतीय संघवाद की अवधारणा एक-एक कर बिखर रही है। केंद्र और राज्यों के रिश्तों की बुनियाद पर खड़ी भारतीय संघ की