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बिहार विधानसभा के चुनाव की घोषणा होने के साथ ही राज्य के 243 विधानसभा क्षेत्रों का सियासी माहौल गरमाने लगा है। राजधानी पटना में विभिन्न राजनीतिक दलों के दफ्तरों में बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया है। बिहार का चुनाव इस बार खास इसलिए भी है, क्योंकि कोरोना काल में यह पहला बड़ा चुनाव होने जा रहा है, जिसमें न जुलूस होंगे, न रैलियां होंगी और न लाउड

बिहार में विधानसभा चुनाव का एलान हो चुका है और इसके साथ ही राजनीतिक अखाड़ों की सेनाएं सजने लगी हैं। रणनीतियां तो पहले से ही बनायी जा रही थीं, लेकिन अब असली संग्राम की तैयारी शुरू हो गयी है। बिहार की राजनीति हमेशा से देश के बाकी हिस्सों से अलग रही है। इसका एक प्रमुख कारण यहां की सामाजिक संरचना और व्यवस्था रही है। जाति के आधार पर राजनीति का इतना स्पष्ट विभाजन देश क्या, दुनिया भर में नहीं मिल सकता है। इसलिए बिहार को राजनीति की य

झारखंड में कोरोना के साथ-साथ दूसरी समस्याओं ने खौफनाक रूप धारण कर लिया है। संक्रमितों की संख्या बढ़ने के साथ राज्य के विकास की गाड़ी का लंबे समय से रुका होना गंभीर चिंता का विषय बन गया है। कोरोना के संक्रमण के कारण अर्थव्यवस्था की गाड़ी बेपटरी हो चुकी है और आम लोगों के साथ-साथ सरकार भी परेशान है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगले साल की पहली तिमाही

झारखंड का सिस्टम अपने हिसाब से चलता रहा है। यहां के कुछ अफसर पूरी तरह बेलगाम हो गये हैं। यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि इन कुछ बेपरवाह अफसरों के कारण गाहे-बगाहे सरकार की किरकिरी होती रहती है। झारखंड में कम से कम चार ऐसे मामले हुए हैं, जिनके कारण राज्य सरकार की किरकिरी हुई या उसके सामने नये किस्म की चुनौती आकर खड़ी हो गयी। लोकतंत्र की

झारखंड की पांचवीं विधानसभा के पहले मानसून सत्र के अंतिम दिन 22 सितंबर को जो कुछ हुआ, वह दो दिन पहले राज्यसभा में हुई घटना से बहुत अलग नहीं था। इन दोनों घटनाओं ने भारत की वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर बड़ा सवालिया निशान लगा दिया है। यह सवाल उठ रहा है कि आखिर संसद और विधानसभा के भीतर सदस्य ऐसा आचरण क्यों कर रहे हैं। क्या संसदीय लोकतंत्र

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत के ऊपरी सदन, यानी राज्यसभा के बारे में कहा जाता है कि इसकी कार्यवाही राजनीतिक कम, बौद्धिक और सकारात्मक अधिक होती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि राज्यसभा का गठन ही गैर-राजनीतिक हस्तियों को देश के नीति निर्धारण की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करने के उद्देश्य के लिए किया गया है। इस सदन के सदस्यों से हमेशा शालीन व्यवहार की उम्मीद लगायी गयी थी, क्योंकि इसके सदस्यों में गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि की प्रमुख हस्तियों को शामिल करने की बात कही गयी थी। लेकिन हमारे संविधान की इस अवधारणा को इतनी बुरी तरह कुचला गया कि अब राज्यसभा भी संसद का सदन कम, किसी छुटभैये क्लब की तरह नजर आने लगा है। रविवार 20 सितंबर को राज्यसभा में जो कुछ हुआ, वह इसका ही एक प्रत्यक्ष उदाहरण था। राज्यसभा में किसी बिल का इ

झारखंड में पिछले कई सालों से निजी स्कूलों की मनमानी और विद्यार्थियों-अभिभावकों के साथ उनके व्यवहार की हकीकत की कहानियां सामने आती रही हैं। सरकार की तरफ से बार-बार उन्हें इस बाबत चेतावनी भी दी जाती रही है। इसके बावजूद राज्य के शिक्षा मंत्री के घर की बच्ची के साथ डीपीएस चास ने जो सलूक किया, वह इस बात का प्रमाण है कि इन निजी स्कूलों को न तो सरकार का कोई डर है और न ही नियम-कायदे की कोई चिंता। बरसों पहले दक्षिण भारत में निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की लॉबी

पिछले करीब साढ़े छह साल से देश पर शासन कर रहे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में पहली बार दरार पैदा होती दिख रही है। लोकसभा में कृषि क्षेत्र से संबंधित तीन विधेयकों के पारित होने के विरोध में शिरोमणि अकाली दल ने केंद्रीय कैबिनेट से अपने मंत्री को हटा लिया है। हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दे दिया है और उसे राष्ट्रपति ने मंजूर भी कर लिया है। यह सही है कि शिरोमणि अकाली दल के एनडीए से अलग होने के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा

पिछले साल मई में 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में झारखंड की जिस एक सीट की चर्चा देश भर में हुई, वह थी दुमका। यहां से भाजपा के युवा प्रत्याशी सुनील सोरेन ने झारखंड के सबसे वरिष्ठ और प्रतिष्ठित नेता शिबू सोरेन को हरा कर पहली बार लोकसभा में प्रवेश की पात्रता हासिल की थी। उन्हें ‘जाइंट किलर’ और ‘झारखंड का भावी नेता’ बताया गया था, लेकिन पिछले 17 महीने में सुनील सोरेन का एक सांसद के रूप में प्रदर्शन बेहद निराशाजनक ही कहा जा सकता है। लोकसभा में उनकी आवाज महज दो बार सुनाई दी है और वह भी शून्यकाल में। इसके अलावा उन्होंने अब तक न कोई सवाल पूछा है और न ही किसी बहस में हिस्सा लिया है।

भारत के बारे में कहा जाता है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र तो है, लेकिन यहां कोई भी बड़ा काम बिना विवाद के पूरा नहीं होता। देश का कोई भी फैसला या कोई भी काम के साथ विवादों का चोली-दामन का साथ होता है। आजादी के बाद से लेकर अब तक ऐसा कोई काम देश में नहीं हुआ, जिसके पूरे होने के रास्ते में विवाद न उठा हो। ताजा मामला अयोध्या में राम मंदिर का है। 130 करोड़ भारतीयों की आस्था के प्रतीक बन चुके अयोध्या के इस मंदिर निर्माण के रास्ते की सभी बाधाएं तो दूर कर ली गयी हैं, लेकिन अब राजस्थान सरकार ने इसके लिए जरूरी लाल पत्थर के खनन पर रोक लगा दी है। इतना

कोरोना महामारी से तबाही की कगार पर पहुंच चुकी भारत की अर्थव्यवस्था से झारखंड भी अछूता नहीं है। आर्थिक गतिविधियां बंद होने के कारण राज्य में विकास योजनाएं लंबे समय से ठप पड़ी हुई हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस मुद्दे पर गंभीर रुख अख्तियार किया है और अपने मंत्रियों के साथ इस पर मंथन किया है। यह एक सराहनीय पहल है और शीर्ष स्तर पर विकास यो