झारखंड की उप राजधानी दुमका और कोयला क्षेत्र की प्रमुख सीट बेरमो में तीन नवंबर को होनेवाले विधानसभा उप चुनाव के लिए प्रचार अभियान जोरों पर है। इन दोनों सीटों पर मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस और भाजपा के बीच है। कोरोना काल में हो रहे इस चुनाव में प्रचार का तरीका भी बदल गया है। हालांकि राजनीतिक सभाओं की अनुमति दी गयी है, लेकि
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बिहार की राजनीति को नजदीक से जानने-समझनेवालों ने आसन्न विधानसभा चुनाव के परिदृश्य में जिस एक नेता को सबसे चौंकानेवाला माना है, वह हैं लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान। पिछले साल लोकसभा के चुनाव के दौरान उन्होंने अपने पिता और बिहार की दलित राजनीति के कद्दावर नेता रामविलास पासवान के साथ मिल कर जो राजनीतिक सौैदेबाजी की, उससे उनके रणनीतिक कौशल का अंदाजा मिल गया था, लेकिन अब बिहार विधानसभा चुनाव में उनके फैसलों से
झारखंड पिछले तीन दिन से गंभीर संकट में फंस गया है। यह संकट भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उसके खाते से 1417.50 करोड़ रुपये काट लेने के कारण पैदा हुआ है। केंद्र सरकार के निर्देश पर की गयी इस एकतरफा कार्रवाई से झारखंड ही नहीं, देश के दूसरे राज्य भी सकते में हैं, क्योंकि इस कार्रवाई ने गलत परंपरा की नींव डाल दी है। देश की आजादी के बाद यह दूसरा मौका है, जब किसी राज्य के खाते से बिना उसकी जानकारी के रकम काट ली गयी है। यह रकम डीवीसी के बकाये की पहली कि
आपका आजाद सिपाही पांच साल का हो गया। पांच साल, यानी एक हजार आठ सौ सत्ताइस दिन। यह आजाद सिपाही का नहीं, आपके भरोसे की सालगिरह है। इसलिए आज दीन-दुनिया से अलग हट कर केवल इसकी ही बात होगी। आज हम राजनीति, अपराध, बिजनेस, खेलकूद और सामाजिक क्षेत्र की खबरों की नहीं, अपने पांच साल के सफर पर बात करेंगे कि कहां से हमने आपके भरोसे की पूंजी के साथ यह सफर शुरू किया था
झारखंड के कोयला क्षेत्र की प्रमुख विधानसभा सीट बेरमो से भाजपा ने अपने पुराने प्रत्याशी योगेश्वर महतो बाटुल को एक बार फिर उतारा है। बाटुल के चुनाव मैदान में उतरने से आगामी तीन नवंबर को होनेवाला उप चुनाव रोचक हो गया है, क्योंकि इस पुराने अनुभवी प्रत्याशी को इस बार युवा और और जोश से लबरेज प्रतिद्वंद्वी से मुकाबला करना है। इस लिहाज से बाटुल के लिए इस बार का चुनाव उनके भविष्य के लिए भी निर्णायक हो गया है। बाटुल एक बार बेरमो विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
झारखंड विधानसभा में कोयला क्षेत्र की महत्वपूर्ण सीट बेरमो में तीन नवंबर को होनेवाले उप चुनाव में सत्तारूढ़ महागठबंधन की ओर से कांग्रेस ने कुमार जयमंगल उर्फ अनुप सिंह को मैदान में उतारा है। यह सीट दिग्गज कांग्रेसी राजेंद्र प्रसाद सिंह के निधन के कारण खाली हुई है। अनुप सिंह राजेंद्र बाबू के बड़े पुत्र होने के साथ-साथ उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी भी हैं।
दुमका के दंगल में उतर कर डॉ लुइस मरांडी ने जिस जोश और उत्साह का मुजाहिरा किया है, वह यह साबित करने के लिए काफी है कि वह यह चुनाव किसी अंडरडॉग की तरह लड़नेवाली नहीं हैं। लेकिन वह जानती हैं कि दुमका का उप चुनाव उनके चार दशक लंबे राजनीतिक कैरियर का संभवत: सबसे कठिन चुनाव साबित होनेवाला है, क्योंकि इस बार उनका मुकाबला एक ऐसे प्रतिद्वंद्वी से है, जिस पर वार करने के लिए उनके तरकश में बहुत अधिक तीर नहीं है। शायद इसलिए उन्होंने नामांक
झारखंड की उप राजधानी दुमका विधानसभा सीट पर तीन नवंबर को होनेवाले उप चुनाव के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के उम्मीदवार के रूप में बसंत सोरेन ने नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है। इसके साथ ही वह अपने पिता शिबू सोरेन और बड़े भाई हेमंत सोरेन की राजनीतिक विरासत को सहेजने के लिए जनता की अदालत में उतर चुके हैं। बसंत सोरेन के लिए प्रत्यक्ष चुनाव का यह पहला अनुभव है, हालांकि इससे पहले वह राज्यसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। दुमका को झामुमो का मजबूत गढ़ माना जाता है। शिबू
झारखंड की दो विधानसभा सीटों, दुमका और बेरमो में तीन नवंबर को होनेवाले मतदान की सरगर्मी शुरू हो गयी है। सत्तारूढ़ झामुमो और कांग्रेस के साथ विपक्षी भाजपा ने भी अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। भाजपा ने जहां अपने पुराने योद्धाओं पर भरोसा जताते हुए उन्हें एक बार फिर मैदान में उतारा है, वहीं झामुमो और कांग्रेस ने युवा प्रत्याशियों को अखाड़े में भेजा है। सत्ता पक्ष के दोनों उम्मीदवारों के लिए यह पहला चुनावी अनुभव है। इसलिए मुकाबला जोरदार होगा। दुमका में झामुमो
कोरोना का संकट काल छोड़ भी दें, तो सामान्य दिनों में भी झारखंड की सवा तीन करोड़ आबादी के लिए रांची का रिम्स सबसे भरोसेमंद संस्थान है, जहां आकर लोग अपना मर्ज थोड़ी देर के लिए ही सही, लेकिन भूल जरूर जाते हैं। तमाम खराबियों और कुप्रबंधन के बावजूद राज्य का यह सबसे बड़ा अस्पताल झारखंड ही नहीं, आसपास के राज्यों के गरीब लोगों के भरोसे का केंद्र है। लेकिन हाल के दिनों में इस संस्थान की विश्वसनीयता को कुप्रबंधन और संवेदनहीनता के दीमक ने खोखला बना दिया है। तभी यहां भर्ती मरीज पानी के लिए तड़प कर मर जाता है, तो किसी मरीज को थाली की जगह जमीन पर ही खाना दे
कभी ‘मौसम वैज्ञानिक’, तो कभी ‘सूट-बूट वाले दलित नेता’ के विशेषणों से विभूषित रामविलास पासवान के निधन से भारत के सियासी परिदृश्य से एक ऐसे अध्याय का अवसान हुआ है, जिसे दोबारा लिखने की क्षमता शायद किसी में न हो। बिहार के खगड़िया जिले के एक गांव में एक दलित परिवार में पैदा होकर देश की राजनीति में धमाकेदार इंट्री लेनेवाले रामविलास पासवान में कई ऐसी विशेषताएं थींं, जो उन्हें हमेशा दूसरों से अलग करती थी। अपनी ठेठ बोली और बातचीत का गंवई अंदाज साबि
