पांच महीने पहले झारखंड की सत्ता संभालनेवाले हेमंत सोरेन ने एक और साहसिक फैसला लेकर राज्य में व्याप्त गड़बड़ियों और ताकतवर अधिकारी लॉबी को सकते में डाल दिया है। इस फैसले के बाद उन तमाम राजनीतिक पंडितों की जुबान पर ताला लग गया है, जो कहते थे कि गठबंधन सरकार चलाते हुए हेमंत सोरेन साहसिक और बड़े फैसले नहीं ले सकते।
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कोरोना संकट ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है। अर्थव्यवस्थाएं बर्बादी की कगार पर पहुंच गयी हैं। भारत भी भयानक मंदी की कगार पर खड़ा है और स्वाभाविक तौर पर झारखंड पर भी इसका असर पड़ रहा है। दो महीने से आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह ठप हैं, तो आमदनी भी शून्य हो गयी है। ऐसे में झारखंड जैसे राज्य के लिए एक विशेष आर्थिक खुराक की जरूरत है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पहले ही कह चुके हैं कि राज्य की माली हालत पूरी तरह खस्ता है और खजाना खाली है
आज से ठीक दो महीने पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के खिलाफ जंग की शुरुआत करते हुए देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी, पूरा देश उनके साथ खड़ा था। कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से अरुणाचल प्रदेश तक हर राज्य की सरकारोें ने तमाम राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को किनारे रख कर इस वैश्विक महामारी को हराने के लिए एकजुटता दिखायी और इस कारण आज भारत इस जंग में जीत के मुहाने पर खड़ा है।
घरों में ही नमाज, सोशल डिस्टेंसिंग के साथ मुबारकबाद रांची। कोरोना वायरस के साये में सोमवार को राज्यभर में ईद…
झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को देश के 50 सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तियों में 12वां स्थान दिया गया है। फेम…
सीएम हेमंत सोरेन ने शोक प्रकट किया झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर कहा है कि बेरमो से…
राहुल गांधी एवं सीएम हेमंत सोरेन ने जताया शोक आजाद सिपाही संवाददाता रांची। झारखंड के पूर्व मंत्री, मजदूर नेता और…
मनोज गुप्ता ने अपना नोटिस लिया वापस आपके अपने अखबार आजाद सिपाही की पत्रकारिता एक बार फिर बेदाग साबित हुई…
प्रवासियों के प्रति संवेदनशील बनना ही होगा प्रशासन को प्रवासी भी समझें, सब कुछ सरकार ही नहीं कर सकती लगभग…
कोरोना संकट के कारण पिछले 57 दिन से लॉकडाउन में चल रहे भारत में यदि आज की दो बड़ी समस्याओं के बारे में पूछा जाये, तो लोग महामारी के बाद प्रवासी मजदूरों की तकलीफों का ही नाम लेंगे, लेकिन शायद ही किसी ने उन मजदूरों की समस्या की तरफ ध्यान दिया है, जो अपने ही राज्य के दूसरे जिलों में या तो फंस गये हैं या अपने गांव लौटे हैं। इन्हें न तो कोई विशेष सहायता मिली है और न ही इनकी तकलीफों का किसी को आभास है।
आज से करीब सवा दो सौ साल पहले 1781 में जब गवर्नर जनरल लॉर्ड कॉर्नवालिस ने भारत में पुलिस प्रणाली की स्थापना की थी, तब उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि दुनिया भर में चर्चित उनका यह प्रयोग खुद की वर्दी पर बदनामी के इतने दाग लगा लेगा। भारत में आम जनता के बीच पुलिस की छवि एक ऐसी खौफनाक संगठन की बनती जा रही है, जो आम लोगों की दोस्त नहीं, शोषक है।