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देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की झारखंड इकाई एक बार फिर चर्चा में है, क्योंकि उसके कुछ विधायकों ने सरकार (मंत्रियों) और संगठन के प्रति असंतोष व्यक्त करते हुए केंद्रीय नेताओं के पास शिकायत की है। इन विधायकों की शिकायत यह है कि सरकार और संगठन में इन्हें तवज्जो नहीं दी जा रही है, इनकी बातें नहीं सुनी जा रही हैं।

धूर्त दुश्मनों से घिरे भारत के लिए राफेल विमान उस अक्षय कवच की तरह है, जिसे द्वापर युग में सूर्य ने कर्ण को और त्रेता युग में भगवान राम को गुरु विश्वामित्र ने दिया था। जैसे उस कवच पर किसी भी हथियार का प्रभाव नहीं पड़ता था, ठीक उसी तरह फ्रांस में बने राफेल लड़ाकू विमान को दुनिया की कोई भी आंख न देख सकती है और न मार सकती है।

दिसंबर में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जब झारखंड में नयी सरकार ने कामकाज संभाला था, तभी कहा गया था कि राज्य की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री ने कई अवसरों पर कहा था कि राज्य का खजाना खाली है और आनेवाले दिनों में कई कड़े फैसले लिये जा सकते हैं। ऐसा हुआ भी और हेमंत सरकार ने फिजूलखर्ची पर सख्ती से रोक लगायी और सरकार की

कोरोना महामारी के दौर में झारखंड ने बहुत कुछ सीखा और समझा है, इसकी ताकत सामने आयी है, तो इसकी कई कमजोरियां भी उजागर हुई हैं। जिस तरह पूरे देश में आजकल सिर्फ और सिर्फ कोरोना संकट को लेकर माथापच्ची हो रही है, उसी तरह सरकार के विभागों में सबसे ज्यादा अगर किसी पर ध्यान जा रहा है, तो वह है स्वास्थ्य विभाग। झारखंड की सवा तीन करोड़ जनता का भी ध्यान यहां के स्वास्थ्य विभाग पर है। जनता हर दिन यह जानना चाह

चमकदार कॉरपोरेट दुनिया से सीधे चुनावी मैदान में धमाकेदार इंट्री करनेवाले गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे एक बार फिर चर्चा में हैं। वैसे तो चुनावी राजनीति में 2009 में उनकी इंट्री ही बेहद चर्चित रही थी, लेकिन लोकसभा सांसद के तीसरे कार्यकाल में वह कई तरह के विवाद में फंसते जा रहे हैं। पहले ठगी और जबरन वसूली के आरोप में 2015 में उनके खिलाफ एक

कोरोना के खतरनाक संक्रमण से पूरी दुनिया तबाह है और झारखंड में यह बीमारी खतरनाक ढंग से फैल रही है। 31 मार्च के बाद से अब तक राज्य में संक्रमितों की संख्या साढ़े छह हजार तक पहुंच गयी है, जिसमें से तीन हजार से अधिक लोग स्वस्थ हो चुके हैं। यह सुकून की बात नहीं है, क्योंकि जिस तेजी से यह संक्रमण फैल रहा है, उससे स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है। स्थिति को काबू में करने के लिए साढ़े तीन महीने का लॉकडाउन थोड़ा कारगर जरू

कोरोना संक्रमण, लॉकडाउन और आर्थिक मंदी के निराशाजनक दौर में यदि कोई सकारात्मक सूचना आती है, तो आम लोगों को थोड़ी देर के लिए ही सही, खुशी जरूर मिलती है। पिछले 24 घंटे में झारखंड के लिए तीन अच्छी खबरें आयीं और इसने आम लोगों में निराशा की जगह उम्मीद की किरण दिखायी है। इन सकारात्मक खबरों से साबित हो जाता है कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार लॉकडाउन के दौरान कामकाज के प्रति कितनी गंभीर है और योजनाओं को जमीन पर उतारने के लिए कितना काम हो रहा है।

कोरोना के खिलाफ जंग और चार महीने के लॉकडाउन के दौरान कई बातें हुईं, बहसें हुईं, आरोप-प्रत्यारोप भी खूब लगे और काम भी हुए। लेकिन इस तमाम कोलाहल के बीच हमारे समाज का एक तबका चर्चा से गायब रहा, जो सीधे हमारे भविष्य से जुड़ा है। कोरोना संकट के इस दौर में कभी किसी ने बच्चों की बात नहीं की, उनके बारे में नहीं सोचा। लॉकडाउन के शुरुआती दौर में देश के सामने कई ऐसी तस्वीरें आयीं, जिन्हें देख कर लोगों की आंखें भर आ

झारखंड में कोरोना संक्रमण ने खतरनाक रूप अख्तियार कर लिया है। राज्य में संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे निपटने के लिए कई तरह के उपाय भी किये जा रहे हैं। इन्हीं उपायों के तहत 31 जुलाई तक कुछ रियायतों के साथ लॉकडाउन लागू रखने और बाहर से आनेवाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए 14 दिन के होम क्वारेंटाइन समेत

वैश्विक महामारी कोरोना के कारण जारी लॉकडाउन के चार महीने पूरे होने को हैं। कोरोना वायरस का संक्रमण तो झारखंड में फैल ही रहा है, अब इसका साइड इफेक्ट भी सामने आने लगा है। लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां लगभग बंद हैं। जो थोड़ी-बहुत गतिविधियां चल रही हैं, वे भी मंदी की मार से कराह रही हैं। मॉल और बड़ी दुकानों के बंद रहने से जहां अर्थव्यवस्था को करारा झटका लगा है,