विशेष
-झारखंड की राजधानी में उम्मीदवार की नहीं, पार्टी की जीत होती है
-इस बार भी भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधे मुकाबले के हैं आसार
-इंडी अलायंस के लिए बहुत मुश्किल है इस दुर्ग को भेद पाना
झारखंड की राजधानी, यानी रांची लोकसभा सीट पर वैसे तो चुनावी प्रक्रिया 29 अप्रैल को शुरू होगी और वोट 24 मई को पड़ेंगे, लेकिन यहां राजनीतिक गतिविधियां बहुत तेज हो चुकी हैं। भाजपा ने संजय सेठ को लगातार दूसरी बार मैदान में उतार दिया है, तो इंडी अलायंस में अब तक न सीटों का बंटवारा हुआ है और न उम्मीदवारों के नाम की घोषणा। वैसे संकेत यही हैं कि इस बार भी रांची में भाजपा के सामने कांग्रेस का प्रत्याशी ही होगा, जैसा कि पिछले कई चुनावों से होता आया है। रांची संसदीय सीट झारखंड में भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाती है। यहां लगभग हर चुनाव में भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर होती रही है और उम्मीदवार कोई भी हो, पार्टी ही जीतती रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने संजय सेठ को यहां से चुनाव मैदान में उतारा था, जिनका चुनाव लड़ने का पहला अनुभव था। उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व सांसद सुबोधकांत सहाय को हराया था। रांची लोकसभा क्षेत्र रांची, हटिया, कांके, इचागढ़, सिल्ली और खिजरी विधानसभा सीटों को मिला कर बनाया गया है। इनमें से खिजरी अनुसूचित जनजाति के लिए और कांके अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इन छह में से तीन सीटों पर भाजपा का कब्जा है, जबकि सिल्ली सीट भाजपा की सहयोगी आजसू के पास, खिजरी सीट कांग्रेस के पास और इचागढ़ सीट झामुमो के पास है। राजधानी होने के नाते रांची संसदीय क्षेत्र का अलग महत्व है। क्या है रांची संसदीय क्षेत्र का चुनावी परिदृश्य और क्या कहते हैं आंकड़े, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
देश ही नहीं, दुनिया भर में खनिजों के लिए प्रसिद्ध झारखंड की राजधानी और क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी का गृहनगर रांची राजनीतिक रूप से भी बेहद चर्चित है। झारखंड की सत्ता का केंद्र होने के कारण यहां होनेवाली हर राजनीतिक गतिविधि का असर पूरे राज्य पर पड़ता है और उसकी अनुगूंज देश भर में सुनाई देती है। रांची एक खूबसूरत पर्यटक स्थल भी है और औद्योगिक नगरी भी। राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील रांची झारखंड के 14 लोकसभा क्षेत्रों में से एक है।
रांची का भौगोलिक परिदृश्य
रांची लोकसभा सीट को रांची के अलावा सरायकेला-खरसावां जिलों के कुछ हिस्सों को मिला कर बनाया गया है। रांची संयुक्त बिहार के समय से ही राजनीति का मुख्य केंद्र रही है, क्योंकि कभी रांची एकीकृत बिहार की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी रही है। जहां तक रांची लोकसभा सीट का सवाल है, तो यहां पर कांग्रेस और भाजपा के बीच टक्कर होती है। वास्तव में रांची पूरे झारखंड में भाजपा का सबसे मजबूत दुर्ग है। यह ऐसी सीट है, जहां से राज्य की सबसे मजबूत क्षेत्रीय पार्टी झामुमो कभी भी जीत नहीं पायी है। रांची लोकसभा सीट के अंतर्गत छह विधानसभा सीटें (इचागढ़, सिल्ली, खिजरी, रांची, हटिया और कांके) आती हैं। इसमें कांके अनुसूचित जाति और खिजरी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है।
रांची की राजनीतिक पृष्ठभूमि
देश के पहले लोकसभा चुनाव के समय रांची संसदीय क्षेत्र आज जैसा नहीं था। उस समय रांची तीन लोकसभा क्षेत्रों में बंटा हुआ था। रांची नॉर्थ इस्ट, रांची वेस्ट और पलामू-हजारीबाग-रांची लोकसभा सीट। तब से लेकर अब तक रांची लोकसभा सीट पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सबसे ज्यादा दबदबा रहा है, लेकिन पिछले कुछ चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस के इस दबदबे को कम कर दिया है और भाजपा इस सीट को अपने नाम कर रही है।
1952 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने रांची नॉर्थ इस्ट सीट जीती। कांग्रेस पार्टी के अब्दुल इब्राहिम 32.6 फीसदी वोटों के साथ यहां से जीते थे। 1952 के लोकसभा चुनाव में झारखंड पार्टी के जयपाल सिंह ने रांची वेस्ट सीट जीती थी, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के जेठन सिंह खेरवार ने तीसरी लोकसभा सीट रांची, पलामू हजारीबाग रांची लोकसभा सीट जीती थी। 1957 के लोकसभा चुनाव में एक लोकसभा क्षेत्र रांची से अलग कर दिया गया। अब रांची में दो लोकसभा क्षेत्र थे, रांची इस्ट और रांची वेस्ट। 1957 के लोकसभा चुनाव में झारखंड पार्टी के उम्मीदवार एमआर मसानी ने रांची इस्ट से और झारखंड पार्टी के जयपाल सिंह रांची वेस्ट सीट से जीते। 1962 में भी रांची वेस्ट से झारखंड पार्टी के जयपाल सिंह जीते, प्रशांत कुमार घोष रांची इस्ट से जीते। 1967 में रांची एक अलग लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र बन गया और उस साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में प्रशांत कुमार घोष ने जीत हासिल की। 1971 में एक बार फिर प्रशांत कुमार घोष इस सीट से जीते। 1977 में कांग्रेस ने शिव प्रसाद साहू को पहली बार रांची लोकसभा सीट से मैदान में उतारा, लेकिन वह जनता पार्टी के रवींद्र वर्मा के हाथों पराजित हो गये। लेकिन 1980 में कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर शिव प्रसाद साहू को उतारा और उन्होंने पिछली हार का बदला लेते हुए रांची सीट जीत ली। 1984 में एक बार फिर शिव प्रसाद साहू यहां से जीते। उन्होंने भाजपा के रामटहल चौधरी को हराया। लेकिन 1989 में रांची सीट कांग्रेस के हाथ से निकल गयी और उस बार इस सीट पर जनता दल के उम्मीदवार सुबोधकांत सहाय ने जीत हासिल की। उस चुनाव में भाजपा के रामटहल चौधरी दूसरे और कांग्रेस के शिव प्रसाद साहू तीसरे स्थान पर रहे। 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पहली बार रांची सीट जीती। इस बार भाजपा के रामटहल चौधरी ने जीत हासिल की। 1989 में इस सीट से जीते सुबोधकांत सहाय को जनता दल ने टिकट नहीं दिया। उन्होंने झारखंड पार्टी से चुनाव लड़ा और चौथे स्थान पर रहे। जनता दल ने अवधेश कुमार सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था। 1996 के लोकसभा चुनाव में भी रामटहल चौधरी ने कांग्रेस के केशव महतो कमलेश को हरा दिया। 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के रामटहल चौधरी एक बार फिर रांची सीट से जीते। 1999 में रामटहल चौधरी की जीत का सिलसिला जारी रहा और उन्होंने कांग्रेस के केके तिवारी को हराया। 2004 के लोकसभा चुनाव में झारखंड राज्य बनने के बाद रांची सीट पर पहला लोकसभा चुनाव हुआ और इस बार लगातार चार बार रांची से सांसद रहे रामटहल चौधरी को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने सुबोधकांत सहाय को अपना उम्मीदवार बनाया और उन्होंने भाजपा उम्मीदवार को हरा दिया। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी सुबोधकांत सहाय ने कांग्रेस के लिए रांची सीट जीती। उस बार भी उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के रामटहल चौधरी ही थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एक बार फिर से रांची लोकसभा सीट पर कब्जा कर लिया और इस बार रामटहल चौधरी ने कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय को हरा दिया। उस साल रांची में बहुकोणीय मुकाबला हुआ था, जिसमें आजसू पार्टी से सुदेश कुमार महतो, झारखंड विकास मोर्चा से अमिताभ चौधरी और टीएमसी से बंधु तिर्की चुनाव मैदान में उतरे थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी का मैजिक फिर दिखा। हालांकि इस बार भाजपा ने रांची से रामटहल चौधरी को टिकट नहीं दिया, जिन्होंने पांच बार रांची की लोकसभा सीट से भाजपा को जीत दिलायी थी। भाजपा ने संजय सेठ को मैदान में उतारा। इससे नाराज होकर रामटहल चौधरी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। संजय सेठ ने मोदी मैजिक के सहारे कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय को हरा दिया। रामटहल चौधरी तीसरे स्थान पर रहे।
क्या कहते हैं लोकसभा और विधानसभा चुनाव के आंकड़े
रांची लोकसभा क्षेत्र के तहत जो छह विधानसभा क्षेत्र आते हैं, उनमें रांची, हटिया और कांके में अभी भाजपा का कब्जा है, जबकि सिल्ली से आजसू के सुदेश महतो विधायक हैं। खिजरी सीट कांग्रेस के पास है और इचागढ़ झामुमो के पास। 2019 के लोकसभा चुनाव में इन सभी छह क्षेत्रों से भाजपा को बढ़त मिली थी। इचागढ़ से भाजपा प्रत्याशी को 118211 वोट मिले थे, जबकि सिल्ली से 86765, खिजरी से 104871, रांची से 102217, हटिया से 144728 और कांके से 147509 वोट मिले थे। लेकिन विधानसभा चुनाव में इचागढ़ से भाजपा को 38475, खिजरी से 78360, रांची से 79646, हटिया से 115026 और कांके से 119975 वोट मिले थे। सिल्ली से उसने प्रत्याशी नहीं उतारा था। इस तरह लोकसभा चुनाव में भाजपा को 704301 वोट मिले थे, जबकि विधानसभा चुनाव में वह 431482 वोट ही ला सकी। इस तरह उसे 272819 वोट कम मिले। इस बार के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ के लिए यह वोट दोबारा हासिल करने की चुनौती है।
2019 का परिणाम
संजय सेठ भाजपा 706510
सुबोध कांत सहाय कांग्रेस 423730
रामटहल चौधरी निर्दलीय 29539