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    Home»स्पेशल रिपोर्ट»चुनौतियों की कसौटी पर 22 साल की झारखंड विधानसभा
    स्पेशल रिपोर्ट

    चुनौतियों की कसौटी पर 22 साल की झारखंड विधानसभा

    झारखंड की जनता को राज्य की सबसे बड़ी पंचायत से क्या मिला
    adminBy adminNovember 21, 2022No Comments6 Mins Read
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    विशेष
    झारखंड की सबसे बड़ी पंचायत, यानी विधानसभा 22 साल की हो गयी। किसी भी संस्था के लिए 22 साल का कालखंड उसके कामकाज की समीक्षा के लिए काफी होता है और यही कारण है कि झारखंड विधानसभा के अब तक के सफरनामे पर एक दृष्टि डाली जाये। आम तौर पर कहा जा सकता है कि झारखंड विधानसभा ने राज्य की सवा तीन करोड़ आबादी की आकांक्षाओं पर यदि पूरी तरह खरा नहीं उतरी है, तो इसने झारखंड को निराश भी नहीं होने दिया है, हालांकि इसके साथ विवाद हमेशा जुड़े रहे। वर्ष 2000 में जब पहली विधानसभा अस्तित्व में आयी थी, तब से लेकर आज तक हर बार कोई न कोई विवादित मुद्दा इसके साथ जुड़ता रहा। चाहे वह विधानसभा की स्थापना से संबंधित विवाद हो या फिर कार्यवाही के दौरान विभिन्न पक्षों के व्यवहार की। इन विवादों के बावजूद सदन ने कई बार सकारात्मक और सार्थक चर्चा कर झारखंड के हित में महत्वपूर्ण फैसले लिये और ऐसी नीतियां बनायीं, जिन पर चल कर झारखंड को लाभ ही मिला। सरना धर्म कोड, 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति और ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने समेत कई ऐतिहासिक फैसले पांचवीं विधानसभा में हुए। झारखंड विधानसभा के 22 साल के सफरनामे पर नजर दौड़ा रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    आज से ठीक 22 साल पहले 22 नवंबर 2000 को जब झारखंड की पहली विधानसभा अस्तित्व में आयी थी और एचइसी इलाके में स्थित रसियन हॉस्टल के लेनिन हॉल में इसकी पहली बैठक हुई थी, उस समय सदन के पहले उपाध्यक्ष बागुन सुंब्रुई ने कहा था कि इस सदन में झारखंडियों के सपने आकार लेंगे और उन्हें उड़ने की ताकत मिलेगी। उन्होंने कहा था कि लेकिन इसके लिए इसे वयस्क होने तक इंतजार करना होगा। अभी तो इसके खेलने-खाने के दिन हैं। बागुन सुंब्रुई की उस टिप्पणी को उस समय राजनीतिक दृष्टि से विवादित करार दिया गया था, लेकिन आज जब झारखंड विधानसभा अपनी 22वीं सालगिरह मना रही है, यह टिप्पणी बेहद सटीक लगती है। झारखंड की 82 सदस्यीय विधानसभा, जिसमें एक मनोनीत सदस्य शामिल हैं, की अब तक हुई बैठकों का लब्बो-लुआब यही निकाला जा सकता है कि राज्य की सबसे बड़ी पंचायत ने अब तक के अपने सफर में झारखंड को यदि बहुत अधिक दिया नहीं है, तो निराश भी नहीं किया है।
    पिछले 22 साल में झारखंड विधानसभा की 540 दिन बैठक हो चुकी है और इसने सामान्य कामकाज के अलावा 383 विधेयकों को पारित किया है। यह उपलब्धि छोटी नहीं है। लगातार किराये के भवन में काम निबटाते हुए इस सदन ने राज्य की सवा तीन करोड़ आबादी को वह सब कुछ देने का प्रयास किया है, जो उसके लिए जरूरी था। सदन के पहले अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी से लेकर वर्तमान अध्यक्ष प्रो रवींद्रनाथ महतो तक ने राज्य की इस सर्वोच्च संवैधानिक संस्था की गरिमा को हमेशा अक्षुण्ण रखने का ही प्रयास किया। इतना ही नहीं, सदन के नेताओं ने भी, जिनमें बाबूलाल मरांडी से लेकर वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक शामिल हैं, ने हमेशा इस संस्था की पवित्रता को राज्य के लोगों की अपेक्षाओं के अनुरूप बनाये रखने के लिए हरसंभव प्रयास किया।
    इसके बावजूद झारखंड की कोई भी विधानसभा विवादों से घिरने से नहीं बच सकी। कहा जाता है कि हर चमकीली वस्तु का दूसरा पहलू उसका स्याह पक्ष भी होता है। यह कहावत झारखंड विधानसभा के साथ भी लागू होती है। कई बार विधानसभा विवादों में घिरी। चाहे घोटालों को लेकर हो या फिर सदन की कार्यवाही को लेकर, झारखंड विधानसभा का विवादों ने हरदम पीछा किया। खास कर दलबदल संबंधी विवादों को लेकर विधानसभा की छवि पर जो दाग लगे, उसे लेकर झारखंड में चिंता भी जाहिर की गयी। विधानसभा को राजनीति का मंच बनाने की भी भरपूर कोशिश की गयी और जाने-अंजाने इसे हर राजनीतिक दल ने अपने हित के लिए इस्तेमाल किया, जबकि होना यह चाहिए था कि इस मंच का इस्तेमाल केवल राज्यहित के लिए किया जाता। दलबदल के मामले में राज्य की चौथी विधानसभा ने तो रिकॉर्ड ही बना लिया, जब अध्यक्ष ने पूरे पांच साल तक इस मामले की सुनवाई की और सदन की अवधि पूरी होने से ठीक पहले फैसला सुनाया। अब पांचवीं विधानसभा में दलबदल का एक मामला लंबित है और अध्यक्ष कह चुके हैं कि वह बहुत जल्द इस पर फैसला सुनायेंगे। यदि ऐसा होता है, तो यह भी एक रिकॉर्ड ही बनेगा।
    एक और विवाद, जिसने झारखंड विधानसभा को कभी नहीं छोड़ा, वह है इसकी समितियों के कामकाज और उनकी रिपोर्ट पर कार्यवाही का सवाल। हर विधानसभा में विधायकों की समितियां बनीं, उन्होंने अपने-अपने विभागों के कामकाज की समीक्षा की और देर-सबेर रिपोर्ट भी सौंपी, लेकिन उन पर क्या कार्रवाई हुई, यह अब तक सामने नहीं आया है। विधानसभा समितियों के साथ कार्यपालिका के रिश्तों पर भी अक्सर सवाल उठते रहे और विधानसभा ने कई बार चेतावनी भी जारी की, इसके बावजूद इस दिशा में बहुत अधिक सकारात्मक प्रगति नहीं हुई।
    विवादों के बावजूद झारखंड विधानसभा ने राज्य की हकीकतों को दुनिया के सामने रखा है। पिछले 22 साल में देश के संसदीय कामकाज में झारखंड विधानसभा ने अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज करायी है। चाहे पीठासीन पदाधिकारियों का राष्ट्रमंडल सम्मेलन हो या फिर दूसरे आयोजन, झारखंड को प्रतिष्ठा दिलाने में राज्य के प्रतिनिधि कभी पीछे नहीं रहे। इतना ही नहीं, विधानसभा ने आदिवासी सरना धर्म कोड जैसे संवेदनशील और 60 साल से लंबित मुद्दे को सर्वसम्मति से सुलझा कर अनोखी उपलब्धि हासिल की है। इसके अलावा 1932 के खतियान पर आधारित स्थानीयता नीति और ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने का विधेयक पास कर पांचवीं विधानसभा ने झारखंड के आदिवासियों और पिछड़ों की भावनाओं का सम्मान दिया है।
    अब, जबकि झारखंड विधानसभा किराये के भवन से निकल कर अपने खुद के भवन में चली गयी है और इसकी भव्य इमारत पूरी दुनिया में चर्चित हो रही है, उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य की सबसे बड़ी पंचायत का आगे का सफर बागुन सुंब्रुई की टिप्पणी के अनुरूप होगा, जब यह झारखंड के सपनों को पंख लगायेगी और यहां के सवा तीन करोड़ लोगों को उड़ने का हौसला देगी। वैसे भी किसी राज्य की विधानसभा उसके लोगों की आकांक्षाओं का आइना होती है। झारखंड विधानसभा ने अब तक यहां के लोगों की आकांक्षाओं को देखा भर है। अब उसके सामने इन्हें पूरा करने की चुनौती है, जिसकी जिम्मेवारी सदन के सदस्यों की है। उम्मीद किया जाना चाहिए कि झारखंड विधानसभा इस उम्मीद की कसौटी पर खुद को खरा साबित करेगी और तब झारखंड का दौर शुरू होगा।

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