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झारखंड में विधानसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच विपक्षी खेमे का माहौल बेहद तनावपूर्ण है। यहां एक मठ में इतने अधिक जोगी हो गये हैं कि हर कोई दूसरे पर आंखें तरेर रहा है। गठबंधन की कमान चूंकि झामुमो के पास है, इसलिए सबसे अधिक परेशानी उसको ही है। लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन की अप्रत्याशित हार के बाद से झामुमो में नये युग का आगाज हुआ है और हेमंत सोरेन के नेतृत्व को लगातार अपने ही सहयोगी दलों से चुनौती मिल रही है। पहले बाबूलाल मरांडी और फिर कांग्रेस के बाद अब राजद की ओर से तेजस्वी यादव ने भी गठबंधन को चुनौती दे दी है। अपने सहयोगी दलों के इस रवैये से हेमंत सोरेन कहीं न कहीं परेशान जरूर हो रहे हैं, क्योंकि यह चुनाव उनके लिए करो या मरो जैसा है। एक तरफ भाजपा बूथों की मैपिंग के स्तर तक पहुंच गयी है, तो दूसरी तरफ हेमंत सोरेन अपने सहयोगी नेताओं की धमकियों से जूझ रहे हैं। उनके सामने यह खतरा है कि अधिक संख्या में जोगी होने से कहीं मठ ही न उजड़ जाये। विपक्षी खेमे में इस असहज परिस्थिति के संभावित परिणाम पर दयानंद राय की खास रिपोर्ट।

झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर है। सत्ता में वापसी के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने में जुटी भाजपा इस बार हर हाल में जीतना चाहती है। इसके लिए वह अपना घर तो मजबूत कर ही रही है, विरोधियों को कमजोर करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। भाजपा के लिए झारखंड कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव के बाद से पार्टी के कम से कम आधा दर्जन नेता राज्य में प्रवास कर चुके हैं। झारखंड में विरोधियों को ‘चेक मेट’ करने के अभियान में पार्टी के केंद्रीय नेता जुटे हुए हैं। जातीय समीकरणों को खासा तवज्जो दिया जा रहा है और अलग-अलग नेताओं को अलग-अलग जातियों के नेताओं से बात करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी है। इतना ही नहीं, भाजपा ने उन बूथों की पहचान की है, जहां से उसे बढ़त हासिल नहीं होती है। उन बूथों के लिए अलग-अलग लोगों को तैनात किया जा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें, तो भाजपा इस बार साम-दाम-दंड-भेद, सभी हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए पूरी तरह तैयार दिखती है। भाजपा की चुनावी तैयारियों और झारखंड की राजनीति में होनेवाली उथल-पुथल पर आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।