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कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव से अजय शर्मा की खास बातचीत: एनआरसी की जरूरत झारखंड में नहीं, बांग्लादेशियों पर भी होगा विचार

झारखंड की पांचवीं विधानसभा के लिए पांच चरणों में संपन्न चुनाव कई मायनों में खास रहा। सबसे खास बात यह रही कि यह पूरा चुनाव चक्र दो नेताओं के इर्द-गिर्द घूमता रहा। पहला चेहरा स्वाभाविक तौर पर पहली बार राज्य में पांच साल तक सरकार चलानेवाले रघुवर दास का था, तो दूसरा चेहरा झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन का था। भाजपा ने जहां रघुवर दास को अगले सीएम के रूप में पेश किया, वहीं झामुमो के नेतृत्व में कांग्रेस और राजद ने हेमंत सोरेन को अपना नेता घोषित किया था। यही कारण है कि इस चुनाव के परिणाम से इन दोनों का राजनीतिक भविष्य तय होगा। यदि जीते, तो जय-जय होगी और यदि हार हुई, तो उसकी जिम्मेदारी भी इन दोनों को ही लेनी होगी। यही कारण है कि इन दोनों के दिन का चैन और रातों की नींद गायब हो गयी है। सोते-जागते उनके ख्यालों में विधानसभा चुनाव का परिणाम और उसका असर घूमता है। संथाल की 16 सीटें तो उनके लिए खासतौर पर निर्णायक हैं। यही वजह है कि दोनों नेताओं ने इन सीटों को अपनी-अपनी पार्टियों की झोली में डालने के लिए खुद को जुनून की हद तक चुनाव के मैदान में झोंक कर रख दिया। हालांकि संथाल के चुनावी दंगल में झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी, आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो और कांग्रेस समेत दूसरे दलों के साथ निर्दलीयों ने भी अपना दमखम दिखाया, पर यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और झामुमो के बीच ही माना जा रहा है। इन दोनों नेताओं की रस्साकशी और उनकी राजनीति की पड़ताल करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

इरादे बुलंद हों, तो लक्ष्य आसान हो जाता है। झारखंड विधानसभा चुनाव में बुलंद इरादों के साथ उतरी आजसू सुदेश के नेतृत्व में झारखंड में तीसरी बड़ी ताकत के रूप में उभरी है। संथाल की जिन 16 सीटों पर 20 दिसंबर को वोटिंग होगी, उनमें से एक दर्जन सीटों पर आजसू ने उम्मीदवार उतारे हैं। बोरियो, पाकुड़ ,जामा और अन्य दो सीटों पर तो आजसू उम्मीदवार बेहद मजबूत हैं। इनमें से बोरियो से विधायक ताला मरांडी तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ है। वहीं पाकुड़ सीट से पार्टी उम्मीदवार अकील अख्तर यहां से विधायक रह चुके हैं और यहां के वर्तमान विधायक तथा कांग्रेस प्रत्याशी आलमगीर आलम को तगड़ी चुनौती दे रहे हैं। जामा सीट पर स्टेफी टेरेसा मुर्मू आजसू उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं और अपनी पैठ क्षेत्र में बनाने की कोशिश कर रही हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आजसू संथाल में बड़ी ताकत बनकर उभरी है और अपनी रणनीति से इसने विरोधियों को चौंका दिया है। संथाल में आजसू के उभार और उसके उम्मीदवारों की राजनीति पर प्रकाश डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।

झारखंड विधानसभा चुनाव के पांचवें और अंतिम चरण के चुनाव में संथाल में किसकी गोटी होगी लाल, यह लाख टके का सवाल बनकर उभरा है। यह सवाल इसलिए, क्योंकि भाजपा में इस चुनाव में बहुत उलटफेर हुए हैं और झामुमो और कांग्रेस ने भी भाजपा की संथाल में सघन घेराबंदी को देखते हुए अपनी रणनीति बदल दी है। झाविमो संथाल मेें सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहा है और आजसू ने अपने पाले में झामुमो के टिकट पर पाकुड़ से विधायक रहे अकील अख्तर को लाकर पाकुड़ सीट पर कब्जा जमाने की कोशिश की है। अकील के अलावा आजसू ने स्टेफी टेरेसा मुर्मू पर भी भरोसा जताया है। जाहिर है कि आजसू संथाल में अपने पैर जमाने में पूरी तरह जुटी हुई है। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा और झामुमो के बीच यहां कांटे की टक्कर हुई थी और मुकाबला लगभग बराबरी का रहा था। इस बार बदले समीकरणों में चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशियों और दलों के समक्ष चुनौती खड़ी हो गयी है। इन सीटों पर 20 दिसंबर को मतदान होगा। संथाल की 16 विधानसभा सीटों पर विभिन्न दलों के उम्मीदवारों और उनकी चुनौतियोें पर प्रकाश डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।