राजनीति में चर्चित चेहरों और सीटों की चर्चा स्वाभाविक रूप से हर चुनाव में होती रहती है। झारखंड विधानसभा चुनाव में इस दफा कोयलांचल की झरिया सीट एक ही परिवार की दो बहुओं के बीच चुनावी लड़ाई के लिए चर्चा में है। यहां मुकाबला दिलचस्प और रोमांचक दोनों है। वर्ष 2014 के चुनाव में यह सीट दो भाइयों के संघर्ष के कारण चर्चा में थी। यूं तो इस सीट पर 17 उम्मीदवार चुनाव के मैदान में हैं, पर सिंह मेंशन और रघुकुल की चुनावी टक्कर में इनकी चर्चा कम ही होती है। सिंह मेंशन सूर्यदेव सिंह की विरासत का किला है, तो रघुकुल राजन सिंह के बेटों की आरामगाह। इस बार यहां चुनावी लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच या यूं कहें कि एक ही परिवार से ताल्लुक रखनेवाली दो महिला नेत्रियों के बीच है। इस लड़ाई में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा और किसके हाथ हार आयेगी, यह 23 दिसंबर को पता चलेगा, पर अभी इतना तो दिख रहा है कि इस सीट पर दो बहुओं की लड़ाई हर दिन दिलचस्प होती जा रही है। झरिया सीट पर दो बहुओं की लड़ाई और सिंह मेंशन तथा रघुकुल के अस्तित्व में आने की कहानी बयां करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
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झारखंड में तीसरे चरण के मतदान के साथ ही 81 में से 50 सीटों पर चुनाव पूरा हो गया है। अब दो चरणों में बाकी बची 31 सीटों पर 16 और 20 दिसंबर को मतदान होगा। मतदाताओं के फैसले की जानकारी 23 दिसंबर को मिलेगी। इस चुनाव की सबसे खास बात यह है कि यह चुनाव पूरी तरह भाजपा बनाम विपक्ष के रूप में देखा जा रहा है। इन 81 सीटों में से 10 सीटें ऐसी हैं, जिनके परिणाम पर पूरे देश की निगाहें हैं। इनमें से पांच सीटों पर मतदान हो चुका है। इनके बारे में जितने मुंह उतनी बातें सुनने को मिल रही हैं। जमशेदपुर पूर्वी सीट पर कयासों और अटकलबाजियों की सबसे अधिक जुगलबंदी सुनाई दे रही है। उसी तरह सिल्ली सीट पर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है। इसी तरह कोडरमा, पांकी और विश्रामपुर के संभावित चुनाव परिणामों के बारे में जोड़-घटाव किये जा रहे हैं। चौथे और पांचवें चरण की जिन सीटों के बारे में जीत-हार की चर्चा सबसे अधिक है, उनमें झरिया, चंदनकियारी, बाघमारा, दुमका और पाकुड़ सीट है। झरिया में जेठानी और देवरानी के बीच मुकाबला है, वहीं बाघमारा में दो दबंग आमने-सामने हैं। दुमका में हेमंत और लुईस मरांडी के बीच जंग है तथा पाकुड़ मेेंं आलमगीर आलम तथा अकील अख्तर की साख दांव पर है। चंदनकियारी सीट पर अमर बाउरी और आजसू के उमाकांत रजक के बीच फाइट टाइट है। जैसे रात के आकाश में लाखों तारों के बीच चमक रहे एक चांद की चर्चा अधिक होती है, वैसे ही झारखंड विधानसभा की 81 सीटों में से इन दस सीटों पर हार-जीत के समीकरणों को समझने की रुचि हरेक झारखंडी में स्वाभाविक रूप से है। इन सीटों पर मुख्य उम्मीदवारों और उनकी टक्कर से निर्मित हुई परिस्थितियों की पड़ताल करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
हर भाषण का एक अर्थ होता है। और यदि भाषण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या फिर कांग्रेस के महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसी शख्सियत के हों, तो इसके अपने मायने होते हैं । दस दिसंबर को झरिया के जियलगोरा मानस मंदिर मैदान मेेंं जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी प्रत्याशी पूर्णिमा नीरज सिंह के पक्ष में प्रचार करते हुए कहा कि प्रदेश में महागठबंधन की सरकार बनी, तो झरिया खाली नहीं होगा, हां भाजपा को झरिया सीट खाली जरूर करनी पड़ेगी, तो प्रकारांतर से वह झरिया की जनता की नब्ज पर हाथ रख रहे थे। उनके भाषण के तीसरे दिन 12 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धनबाद के बरवाअड्डा मैदान में आयोजित सभा में गठबंधन के घटक दलों पर प्रहार करते हुए वोटरों को साधने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने देश में एक विचित्र राजनीतिक माहौल बनाया। इसकी वजह से देशवासियों का भरोसा ही घोषणापत्रों से उठ गया। लोगों को लगने लगा था कि नेता चुनाव के दौरान घोषणाएं करते हैं और फिर भूल जाते हैं। देश के अंदर ये भावनाएं भरनेवाली कांग्रेस के कारण यह स्थिति पैदा हुई। राजद, झामुमो और वामपंथियों ने भी यही किया। पर भाजपा ने छह महीने में दिखा दिया है कि संकल्प चाहे कितने भी बड़े हों, उन्हें पूरा करने में हम दिन रात एक कर देते हैं। इस सभा के जरिये जहां नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधा वहीं जनता से पार्टी के प्रत्याशियों के पक्ष में मतदान करने की अपील भी की। जाहिर है कि चौथे चरण की पंद्रह सीटों में से कोयलांचल की नौ सीटें भाजपा और महागठबंधन दोनों के लिए बेहद महत्व की हैं और इन सीटों पर जीत हासिल करने के लिए दोनों ओर से पार्टी के शीर्ष नेताओं ने पूरा जोर लगा दिया है। इन सीटों पर बाहुबलियों और मजदूर नेताओं की राजनीतिक लड़ाई पर प्रकाश डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।
झारखंड में विधानसभा चुनाव की गहमा-गहमी पूरे उफान पर है। 81 में से 33 सीटों पर दो चरणों में पलामू और कोल्हान के इलाके में मतदान हो चुका है और अगले 24 घंटे में 17 सीटों पर मतदान होना है। इसके बाद सोमवार 16 दिसंबर को 15 सीटों पर मतदान होगा। तीसरे और चौथे चरण का चुनाव जहां भाजपा के लिए अपना गढ़ बचाने की चुनौती है, वहीं विपक्षी दल इस भगवा गढ़ को भेदने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। ये 32 सीटें उत्तरी और दक्षिणी छोटानागपुर के साथ कोयलांचल-लालखंड में हैं, जहां भाजपा का दबदबा है। 32 में से 22 सीटें अभी भाजपा के पास हैं। इन सीटों पर इस बार मुकाबला इतना जबरदस्त है कि कौन कहां किस पर कब भारी पड़ जाये, इसका किसी को अंदाजा भी नहीं है। हर दल और उम्मीदवार के अपने-अपने दावे हैं। तीसरे और चौथे चरण में होनेवाले चुनाव और इन सीटों के समीकरणों पर आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
दुमका और बरहेट सीट पर हेमंत सोरेन को घेरना चाहेगी भाजपा
झारखंड में सत्ता की चाबी वर्ष 2014 के विधानसभा में जनता ने भाजपा के हाथों में सौंपी थी। इनमें वे 10 सीटें महत्वपूर्ण थीं, जिन पर तीसरे चरण यानी 12 दिसंबर को मतदान होना है। भाजपा ने इन 17 में से दस सीटों पर जीत दर्ज कर सत्ता के द्वार पर पहुंची थी। उसके बाद भाजपा ने आजसू के साथ और झाविमो के तोड़े गये छह विधायकों को अपने दल में मिला कर रघुवर दास के नेतृत्व में पांच साल तक निर्विघ्न सरकार चलायी। अब एक बार फिर झारखंड चुनावी मोड में है । अब तक दो चरणों के चुनाव हो चुके हैं। स्थिति बहुत साफ नहीं है। राज्य में सत्ता की चाबी किसके हाथ लगेगी, यह बहुत हद तक तीसरे चरण की 17 सीटें तय करेंगी। तीसरे और चौथे चरण की सीटें भाजपा की मजबूत दखलवाली मानी जाती हैं। यही वजह है कि इन सीटों पर भाजपा पूरी ताकत से लड़ रही है। तीसरे चरण की हाई प्रोफाइल सीटों में से एक धनवार सीट पर झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी की प्रतिष्ठा दांव पर है, वहीं सिल्ली सीट पर सुदेश महतो के राजनीतिक भविष्य का फैसला होना है। बरही और मांडू सीट पर इस बार भाजपा के उम्मीदवारों के सामने अपने पाला बदलने के फैसले को सही साबित करना है। पहले और दूसरे चरण की सीटों पर मतदान के का रुझान बहुत साफ नहीं है। ऐसे में भाजपा तीसरे और चौथे चरण की सीटों पर अपनी बादशाहत बरकरार रखना चाहेगी। भाजपा को इस बार गठबंधन के साथ-साथ आजसू और झाविमो से जिस तरह से चुनौती मिल रही है, उसमें पार्टी के लिए यहां खुद को मजबूत बनाये रखना आसान काम नहीं है। नौ दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोकारो और बरही में चुनावी सभाओं को संबोधित कर हवाओं का रुख पार्टी के उम्मीदवारों की ओर मोड़ने की पूरी कोशिश करेंगे। जाहिर है कि इन सीटों पर कब्जा बरकरार रखने की राह भाजपा के लिए आसान नहीं है और भाजपा भी यह सत्य अच्छी तरह जानती है। तीसरे चरण की हाइप्रोफाइल सीटों और मांडू तथा बरही में पार्टी उम्मीदवारों की चुनौतियों पर नजर डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।
लोकतंत्र में बादशाहत किसके हाथ आयेगी, यह जनता तय करती है और यही कारण है कि हर चुनाव में जनता-जनार्दन का आशीर्वाद हासिल करने और उन्हें लुभाने के लिए राजनीतिक दल ‘हर करम अपना करेंगे’ की तर्ज पर जनता का दिल जीतने की कोशिश करते हैं। झारखंड में दूसरे चरण की 20 सीटों पर मतदान के बाद राजनीति के पंडितों की निगाहें तीसरे चरण की 17 सीटों पर जा टिकी हैं। इन 17 सीटों में जहां धनवार में बाबूलाल के सामने अपना दमखम दिखाने की चुनौती है, वहीं सिल्ली में सुदेश महतो को अपना जौहर दिखाना है। बेरमो सीट पर राजेंद्र सिंह को अपनी ताकत दिखानी है, तो रांची सीट पर सीपी सिंह को खुद को साबित करने की चुनौती है। इन 17 सीटों पर उम्मीदवारों के चुनावी दंगल पर प्रकाश डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।
अतीत कई बार अपनी हदें लांघता हुआ वर्तमान से कड़ियां जोड़ लेता है। झारखंड विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की हॉट सीटों में से एक तमाड़ में अतीत जैसे जिंदा हो उठा है। यहां की सियासत एक
ऐसे नाम के इर्द-गिर्द घूम रही है, जो अब इस दुनिया में नहीं है। तमाड़ के विधायक थे रमेश सिंह मुंडा, जो नक्सली हिंसा में मारे गये थे। इस बार यहां जो चुनावी बिसात बिछी है, उसमें रमेश सिंह मुंडा की विरासत के आधार पर राजनीति में आये उनके पुत्र विकास मुंडा का मुकाबला जिस राजा पीटर और कुंदन पाहन से है, वे दोनों ही रमेश सिंह मुंडा हत्याकांड में आरोपित हैं। राजा पीटर पर रमेश सिंह मुंÞडा की हत्या के लिए सुपारी देने का आरोप है, जबकि कुंदन पाहन पर सुपारी लेकर हत्या करने का। रमेश सिंह मुंडा के पुत्र विकास तमाड़ के मौजूदा विधायक हैं, लेकिन उनके लिए आजसू के रामदुर्लभ सिंह मुंडा भी दीवार बन कर खड़े हो गये हैं। उनकी चुनौतियों को भेद पाना आसान नहीं दिख रहा। यहां बन-बिगड़ रहे राजनीतिक समीकरणों की पड़ताल करती स्वरूप भट्टाचार्य की रिपोर्ट।
कभी एक डगर के राही थे, अब रास्ते अलग-अलग हैं। एक पार्टी के सिपाही थे, अब एक-दूसरे पर हथियार ताने आमने-सामने खड़े हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में जमशेदपुर पूर्वी सीट पर यही नजारा है। यह मुख्यमंत्री रघुवर दास की परंपरागत सीट है। यहां उनकी ही कैबिनेट में मंत्री रहे सरयू राय उनके खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं। मुकाबला इतना हाई-प्रोफाइल हो गया है कि नेशनल मीडिया की भी निगाहें इस सीट पर हैं। यहां रघुवर के सामने कांग्रेस के चर्चित राष्टÑीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ और झाविमो के स्थानीय नेता अभय सिंह भी हंै। रघुवर दास के सामने इस सीट पर जीत का सिक्सर लगाने की चुनौती है। वह वर्ष 1995 से यहां लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं, इसलिए उनका आत्मविश्वास से लबरेज रहना स्वाभाविक है, वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी उनका रास्ता रोकने के लिए भरपूर ताकत लगा रहे हैं। दूसरे चरण के चुनाव में एक और सीट पर पूरे झारखंड की निगाहें टिकी हुई हैं। यह सीट है चक्रधरपुर, जहां भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला झाविमो, झामुमो और आजसू से माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव हारने के बाद इस सीट पर जीत हासिल करना गिलुआ के लिए बेहद जरूरी हो गया है, लेकिन यहां जंग का मैदान उनके लिए आसान नहीं है। चक्रधरपुर सीट पर नतीजा क्या निकलेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है, पर इतना तय है कि यहां मुकाबला कांटे का है। दोनों सीटों के राजनीतिक समीकरणों को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
झारखंड विधानसभा के चुनाव के दूसरे चरण के लिए चुनाव प्रचार खत्म होने में अब 12 घंटे से भी कम समय रह गया है और पूरे प्रदेश की निगाहें इन 20 सीटों पर हैं। कहा जा रहा है कि दूसरे चरण का चुनाव ‘महामुकाबला’ है, क्योंकि इन पर जहां भाजपा के सामने ताकत बढ़ाने की चुनौती है, वहीं झामुमो के सामने अपना गढ़ बचाने का चैलेंज है। इस ‘महामुकाबले’ को विभिन्न दलों द्वारा चुनाव मैदान में उतारे गये नये खिलाड़ी बेहद रोमांचक बना रहे हैं। खास बात यह है कि ये सभी नये खिलाड़ी सीटिंग विधायकों के स्थान पर उतारे गये हैं और इनमें से किसी को भी चुनाव लड़ने का कोई अनुभव नहीं है। इन नये खिलाड़ियों के सामने जहां अपने-अपने दल के लिए सीट बरकरार रखने की चुनौती है, वहीं खुद को चुनावी राजनीति में स्थापित करने की महती जिम्मेवारी भी है। इन नये खिलाड़ियों की चुनावी संभावनाओं और इनके कारण रोमांचक हो चुके मुकाबले पर आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।
दीपेश कुमार
रांची। झारखंड में पिछड़े वर्ग को 27 फीसद आरक्षण देने की राजनीति राज्य गठन के बाद से ही शुरू हो गयी थी। सड़क से लेकर सदन तक इस मांग को लेकर आवाजें भी बुलंद होती रही हैं, लेकिन इसकी मांग तब कुछ खास तबके और राजनीतिक दल और उनमें भी खासकर आजसू तक ही सीमित थी। पर झारखंड विधानसभा चुनाव में आज यह मुद्दा हॉट केक बन गया है। चुनाव की घोषणा के साथ ही लगभग सभी विपक्षी दलों ने पिछड़े वर्ग को न सिर्फ साधना शुरू कर दिया, बल्कि इसे अपने चुनावी घोषणापत्र के प्रमुख एजेंडों में शामिल कर लिया। अब तो इस राजनीति में भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के साथ-साथ प्रमुख क्षेत्रीय दल भी शामिल हो चुके हैं।